जामताड़ा:- सियासत में रंजिशें विचारधाराओं की होती है, इसकी बिसात पर वक्त ही दोस्त और दुश्मन बनाता है. पर इसका वसूल यही है कि सभी अपने मकसद के लिए ये सब करते हैं. यहां कोई स्थायी न तो दोस्त होते हैं और न ही दुश्मनी निभाते हैं. क्योंकि, सत्ता और हुकूमत चिज ही ऐसी होती है.
अब ताजा तरीण उदाहरण दुमका लोकसभा को ही लीजिए, किसे मालूम था कि शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन भगवा झंडा थाम कर जेएमएम को चुनौती देगी और सोरेन परिवार के लिए ही चुनावी अखाड़े में चुनौती देकर आंखों में खटकेगी . अगर समझा जाए तो यही सियासत है, जो वक्त के साथ करवट लेते रहती है.
दुमका में तो इस बार सोरेन परिवार का कोई सदस्य जेएमएम से चुनाव नहीं लड़ रहा, बल्कि नलीन सोरेन को तीर-धनुष थमा कर सीता के सामने उतारा गया है. सीता के सामने लड़ाई अपने परिवार के किसी सदस्य से नहीं, बल्कि नलीन सोरेन से हैं.
लेकिन, दुमका लोकसभा का इतिहास जाने तो बीजेपी की टिकट पर पिछली बार शिबू सोरेन को पटखनी सुनील सोरेन ने दी थी, इस बार भी उन्हें पार्टी ने टिकट दे दिया था. लेकिन, सीता के भाजपा में जुड़ने के बाद सुनील का टिकट काटकर दरकिनार कर दिया गया और दुमाक से बीजेपी की नई उम्मीदवार सीता सोरेन बन गई.
लेकिन, याद रहे कि सीता सोरेन के पति दिवंगत दुर्गा सोरेन ने ही सुनील सोरेन को अपमानित कर, एक अज्ञात कमरे में बंधक बनाकर रख दिया था. इस हरकत के बाद सुनील को यह बेइज्जती हमेशा याद रही. लेकिन, वक्त के साथ अब उनकी ये कड़वी यादे खत्म और ओझल सी हो गई. अब जिम्मेदारी दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन के पक्ष में चुनाव प्रचार करने और जीताने की है. दूसरी तरफ यही सीता सोरेन हर जगह अपने स्वर्गीय पति दुर्गा सोरेन के सपने और संकल्प को याद दिलाती है और उसे पूरा करने के लिए आतुर है.
जब सुनील सोरेन पर दिवंगत दुर्गा सोरेन लगातार प्रहार कर रहे थे, तो उस वक्त सुनील सोरेन के संकटमोचक बाबूलाल मरांडी बनें थे और उनके खैवनहार भी रहे थे. उस दरम्यान जामा विधानसभा से सुनील सोरेन ने सीता के पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन को हराया था. फिर दुमका लोकसभा से शिबू सोरेन को पटखनी दी थी.
लेकिन, वक्त का पहिया तो घूमता रहता है और इसकी चाल को कोई नहीं रोक सकता है. आज विडंबना देखिए , या फिर इस सियासत की तासीर समझिए कि , आज बाबूलाल मरांडी स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता को जीत दिलाने में लगे हुए हैं. अगर समझा जाए तो बाबूलाल ने एक वक्त सुनील सोरेन को बचाया था औऱ आज सीता सोरेन को उनके राजनीतिक करियर के सबसे बड़े फैसले में खड़े नजर आ रहे हैं.
अगर सीता भाजपा में नहीं आती, तो सुनील सोरेन ही दुमका के दंगल में कमल फूल लेकर उतरते. लेकिन, यकायक सबकुछ बदल गया . दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन भाजपा में शामिल हो गयी और अपने परिवार से मिले दर्द और उपेक्षा को दुनिया के सामने साझा कर दिया . आखिर उनके साथ उनके पति के निधन के बाद क्या-क्या नहीं सोरेन परिवार में सहने पड़े. अपनी बेटियों के लालन-पालन के लिए क्या-क्या कुर्बानियां नहीं देनीं पड़ी . उन्होंने इसी पीड़ा और परेशानी के चलते ही परिवार से बगावत करके मोदी के परिवार में जुटी .
इधर, सुनील सोरेन के लिए एक वक्त वो था कि सीता के पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन के खिलाफ बोलते थे, आज ये हालात है कि उनकी पत्नी सीता सोरेन के चलते टिकट मिलने के बाद बेटिकट होना पड़ा . अब यही भाजपा में ही रहकर सीता सोरेन का साथ देना पड़ेगा. जो कभी उनके निशाने पर रहा करती थी.
मुश्किल वक्त में तो सिर्फ सीता का नहीं रहा, बल्कि सुनील का भी था और अभी फिर चलने लगा है. इस कठीन वक्त में अब उनकी क्या आगे की रणनीति है. ये तो समय बतायेगा. लेकिन, अंदर ही अंदर एक दर्द तो है ही, जो बाहर से दिखाई नहीं पड़ता है.
हर वक्त संकटमोचक का किरदार निभाने वाले बाबूलाल आखिर कौन से मर्ज की दवा सुनील सोरेन को देंगे. जिससे सबकुछ ठीक हो जाए. इसी पर सबकी नजर इस दुमका लोकसभा चुनाव में रहेगी, क्योंकि यहां भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही सीता सोरेन को ही नहीं जीतना है, बल्कि सुनील सोरेन को भी संभालना और समझना होगा, जिनके अंदर पीड़ा, दर्द और एक गुस्सा पल रहा है.
रिपोर्ट- आर.पी सिंह