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डेनमार्क की बंदूक झारखंड के हाथियों को भी कैसे कर सकेगी कंट्रोल, क्या होंगे फायदे!

डेनमार्क की बंदूक झारखंड के हाथियों को भी कैसे कर सकेगी कंट्रोल, क्या होंगे फायदे!

धनबाद(DHANBAD): हाथियों के उत्पात  से झारखंड हमेशा परेशान रहता है.  जंगली हाथी भारी नुकसान करते है.  पटक कर जान भी ले लेते है.  साधन के अभाव में वन विभाग हाथियों को नियंत्रित नहीं कर पाता है.  दावे और इंतजाम तो बहुत किए गए, लेकिन अभी भी मशालचियों के भरोसे ही हाथियों के झुंड को भगाया मात्र जाता है.  हाथियों के कॉरिडोर की बात संचिकाओं में धूल फांक  रही है और हाथी इधर-उधर जंगल से निकलकर भटक रहे है.  संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं, जान ले रहे है .   धनबाद के टुंडी और तोपचांची में तो हाथियों का उत्पात   सिर  चढ़कर बोलता है.

जरुरत पड़ने से बंगाल के बाकुड़ा से बुलाये जाते है ट्रेंड लोग 
  
हाथी जब ज्यादा परेशान करने लगते हैं तो बंगाल के बांकुड़ा से मशालची  बुलाए जाते है.  बताया जाता है कि वहां के मशालची अधिक ट्रेड होते है.  इधर, जानकारी मिली है कि अब बंगाल के बांकुड़ा जिले को डेनमार्क निर्मित  ट्रेंकुलाइजर गन मिला है. यह बंदूक झारखंड के लिए भी लाभदारी हो सकती है. इस बंदूक से हाथियों को नियंत्रित करने और बस्तियों में उनके प्रवेश को रोकने में मदद मिल सकती है. झारखंड के ज़िलों के अनुरोध पर बांकुड़ा से यह अत्यधिक और हल्की गन चलाने वाले ट्रेंड लोग  झारखंड को भी मिल सकते है.   अभी तक जो रेगुलर ट्रेंकुलाइजर गन थी, वह वजन में भारी  थी.  इस वजह से चलाने वालों के लिए चुनौती बन जाती थी.  

बंगाल में पहुंची है अत्याधुनिक बंदूक ,झारखंड को भी होगा लाभ 

बताया जाता है कि डेनमार्क से पांच अत्यधिक हल्की और प्रभावी ट्रेंकुलाइजर गन बंगाल में लाई गई है.  इनमें से एक बांकुड़ा जिले को भी मिली है.  बांकुडा  ज़िला हाथियों से प्रभावित क्षेत्र माना जाता है.  बांकुड़ा  को यह  अत्यधिक गन मिलने से झारखंड को भी  लाभ हो सकता है.  क ई बार हाथियों को नियंत्रित करने के लिए झारखंड वन विभाग को बांकुड़ा के विशेषज्ञ कर्मचारियों, विशेषकर मशालची दस्ता, की सहायता लेनी पड़ती है.  बांकुड़ा के ये कर्मचारी हाथी नियंत्रण में माहिर माने जाते है.  ऐसे में अत्याधुनिक  गन का वहां उपलब्ध होना, झारखंड के लिए भी राहत की उम्मीद बन सकती है. 

हाथियों की औसतन आयु 60 से 70 साल तक की होती है. 
 
बता दे कि  एक अध्ययन के अनुसार झारखंड में हर साल लगभग 100 हाथी बंगाल से पहुंच जाते है. यह  भोजन  की तलाश में झारखंड आते है.  आकलन के अनुसार एक हाथी प्रतिदिन 150 से 200 किलो खाना खाता है और उसे 200 लीटर पानी की जरूरत होती है.  अगर खाना और पानी नहीं मिलता है तो इसकी तलाश में वह जंगल से बाहर निकल जाते है.  एक हाथी सामान्य तौर पर एक दिन में 4 से 10 किलोमीटर तक विचरण करता है.  हाथियों की आयु 60 से 70 साल तक की होती है. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो

Published at:29 Nov 2025 06:46 AM (IST)
Tags:DhanbadElephantGunDenmarkBangal
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