धनबाद(DHANBAD): कोयलांचल में फिलहाल कोयले के वैध -अवैध धंधे की खूब चर्चा है. यह अलग बात है कि ई ऑक्शन व्यवस्था लागू होने से वैध धंधे में बहुतों का वर्चस्व टूटा है. इसी क्रम में हम यह बताने की कोशिश करेंगे कि स्वर्गीय सुरेश सिंह राज्य सरकारों का स्पॉन्सर्ड पेपर बेचते और कोयला लिफ्ट कराते कैसे बन गए कोयला किंग. कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद का 1980 का साल रहा होगा. सुरेश सिंह झरिया के कतरास मोड़ में रहते थे. वही, उनके पिता स्वर्गीय तेजन सिंह का निवास था. उस समय झरिया में मनोहर सिंह रहा करते थे. मनोहर सिंह स्पॉन्सर्ड कोयले के पेपर जुगाड़तंत्र के मास्टरमाइंड थे. उन्हीं के संपर्क में सुरेश सिंह आए और फिर स्पॉन्सर्ड पेपर पर काम तेजी से शुरू हो गया. उस वक्त यह व्यवस्था थी कि राज्य सरकारे कोयला कंपनियों को पेपर देकर बताती थी कि उनके राज्य में विभिन्न उद्योगों के लिए अमुख टन कोयले की जरूरत है. इसकी व्यवस्था की जाये. इसी को स्पॉन्सर्ड पेपर कहा जाता था.
बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के भी होते थे
स्पॉन्सर्ड पेपर बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के लिए भी निर्गत कराये जाते थे. फिर डीओ (डिलीवरी आर्डर )के लिए पैसा लगाकर मनोहर सिंह एंड पार्टी खुद कोयले को उठाती थी अथवा पेपर को ही बेच दिया जाता था. धनबाद के एसपी जब अनिल पलटा थे तो उन्होंने इसकी जांच भी कराइ. जांच में पता चला था कि विभिन्न राज्यों के लिए जिन उद्योग के नाम पर स्पॉन्सर्ड पेपर निर्गत किए गए हैं, वहां तो गाय-भैंसों का तबेला चलता है. खैर, उस समय यह धंधा थोड़ा मंदा जरूर हुआ लेकिन खेल पूरी तरह से बंद नहीं हुआ. इसी सिंडिकेट में बाद में फिर संजय सिंह शामिल हो गए और फिर यह तिकड़ी इस खेल की मास्टर बन गई. इन लोगों ने स्पॉन्सर्ड पेपर के खेल में काफी पैसे भी कमाए. कोयले के कारोबार में इन सब की तूती बोलने लगी. जाहिर है दूसरे गैंग भी इसमें हाथ डालने को कोशिश करने लगे और उसके बाद हालात बदलते चले गए. तब तक कोयला के लिफ्टिंग में लगे लोगों से रंगदारी वसूलने का काम भी शुरू हो गया था.
सूर्य देव सिंह के निधन के बाद सिंह मेंशन से शुरू हुआ टकराव
विधायक सूर्य देव सिंह के निधन के बाद सुरेश सिंह का टकराव सिंह मेंशन से भी शुरू हो गया. इस टकराव के पीछे भी रैक से कोयला लोडिंग और स्पॉन्सर्ड पेपर का खेल ही बताया जाता है. आगे चलकर मनोहर सिंह की हत्या लखनऊ के पेट्रोल पंप में कर दी गई. उस घटना में भी धनबाद कनेक्शन को जोड़ा गया था. मनोहर सिंह की हत्या के बाद भी कोयले का यह स्पॉन्सर्ड खेल चलता रहा. फिर रेक लोडिंग का काम तेजी से शुरू हुआ. . रैक लोडिंग के काम में एक तरह से सुरेश सिंह का अधिपत्य बन गया था. 1996 में फिर संजय सिंह की हत्या हो जाती है. लेकिन सुरेश सिंह और सिंह मेंशन की अदावत जारी रही. सुरेश सिंह ने सिंह मेन्शन परिवार के खिलाफ झरिया से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा लेकिन एक बार भी वह जीत नहीं सके. इस बीच 7 दिसंबर 2011 को लुबी सर्कुलर रोड स्थित धनबाद क्लब में उनकी हत्या कर दी गई.
रिपोर्ट: शांभवी सिंह, धनबाद
