टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- सियासत में कब सांझ हो जाए और कब संभावनाओं का सूरज उदय हो जाए कोई नहीं जानता . इसकी डगर ही अगर-मगर वाली और डावांडोल होती है . यहां सबकुछ सीधा-साधा और सपाट नहीं होता, आपको इसकी बिसात पर चाल भी चलनी पड़ती है और वक्त पड़ने पर चुपचाप इंतजार भी करना पड़ता है. कुल मिलाकर सियासत का यहीं रंग है औऱ इसके कंटीले झांड़ भी हैं, जो वक्त के साथ चुभते रहते हैं.
किस्मत औऱ बदकिस्मत साथ-साथ किसी न किसी सियासतदान के साथ चलते रहता है. अब जमीन घोटाले में गिरफ्तार हेमंत सोरेन को ही लीजिए, जो कल तक राज्य के मुखिया थे और अब ईडी के शिकंजे में है. ये उनकी बदकिस्मती है. वही, चंपई सोरेन को देखिए, जो कभी हेमंत के मंत्रीमंडल में मंत्री थे और आज राज्य के मुख्यमंत्री बनने की रेस में हैं. यानि चंपई सोरेन की किस्मत जाग गई . यहीं तो इस राजनीति का खेल है
किस्मत ने दिया दगा
हेमंत सोरेन के साथ किस्मत ने दगा दिया और बेचारे सीएम पद से मजबूरन विदा होना पड़ा . महज एक साल से भी कम वक्त बचा था. अगर पूरा कर लेते ते रघुवर दास के बाद झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री होते, जिन्होंने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया हो. अचानक जमीन घोटाले में उनका नाम आया, काफी बचने की मश्शकत की , कोर्ट गये औऱ कानून का सहारा लिया. लेकिन,ईडी के शिकंजे से बच नहीं सके . आखिरकर सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा. उनके सियासी करियर में दो बार मुख्यमंत्री पद पर पहुंचे. लेकिन, दोनों बार पांच साल का कार्यकाल पूरा करने में चुक गये.
2013 में बनें पहली बार मुख्यमंत्री
हेमंत सोरेन 13 जुलाई 2013 को भी जल, जंगल औऱ जमीन के प्रदेश झारखंड के मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी. उस दौरान भी राष्ट्रपति शासन के बाद कांग्रेस और राजद के सहयोग से सीएम बनें और एक साल पांच महीने 15 दिन तक सरकार चलाई. इसके बाद विधानसभा चुनाव 2014 में हुए. जहां जेएमएम ने अकेले चुनाव लड़ा और 19 सीटें मिली. जबकि बीजेपी को सरकार बनाने का बहुमत मिला और रघुवर दास मुख्यमंत्री बनें.
2019 को हुए चुनाव में हेमंत सोरेन की अगुवाई में जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी उभर कर आयी. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सबसे ज्यादा 29 सीटें जीती और कांग्रेस, राजद के साथ मिलकर सरकार बनायी . हेमंत सोरेन दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बनें. सबकुछ ठीक चल रहा था. कही कुछ गड़बड़ नहीं लग रहा था. लगा कि हेमंत पांच साल तक आसानी से सीएम के पद पर बनें रहेंगे. लेकिन, जमीन घोटाले में यकायक ईडी की पड़ताल में उनकी भूमिका संदिग्ध दिखी और आखिरकार उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके चलते एकबार फिर हेमंत सोरेन का पांच साल तक सीएम बनें रहने का सपना पूरा नहीं हो सका.
सिर्फ रघुवर दास पांच साल तक रहे सीएम
हकीकत को देखे तो झारखंड में सत्ता की लड़ाई और राजनीतिक अस्थिरता हमेशा से रहीं है. इसका इतिहास ही उथल-पुथल वाला रहा है. सिर्फ हेमंत ही नहीं, बल्कि बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन औऱ मधु कोड़ा भी मुख्यमंत्री बने. लेकिन, पांच साल तक कुछ न कुछ वजहों के चलते नहीं बन सकें. हेमंत के पिता शिबू सोरेन तो तीन बार राज्य के सीएम बनें. लेकिन, उनकी भी बदकिस्मती रही की , कभी पांच साल तक इस कुर्सी पर काबिज नहीं हो सके. बीजेपी नेता अर्जुन मुंडा भी तीन-तीन बार राज्य की बागडोर संभाली . लेकिन, उनके साथ भी वही हुआ, कभी पांच साल तक सीएम नहीं बन सके. सिर्फ बीजेपी नेता रघुवर दास ही एक ऐसे मुख्यमंत्री रहे. जिन्होंने पांच साल की अपनी अवधि पूरा किया.