रांची(RANCHI): सियासत की शतरंज पर सज गए हैं मोहरें. सबकी अपनी-अपनी चाल है सबके अपने-अपने दांव हैं. इस शाह और मात के खेल में झारखंड सरकार और ईडी की ये बिसात रोज एक नई चाल से खेल को जारी रख कर राज्य की जनता और एक दूसरे की बीपी हाई करने का काम कर रही है. पिछले कई दिनों से झारखंड मुंह ताक रहा कि अब आगे क्या होगा. सियासी गलियारों में बढ़ती हलचल को देखकर इस शहर के तापमान का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां एक ओर ईडी समन पर समन भेज के हेमंत के करीबियों को ईडी दफ्तर आने के लिए कह रही. वहीं, राज्य की पुलिस मंत्री और खुद सीएम ईडी के इस कार्रवाई से तिलमिला से रहे हैं और बार-बार ईडी को केंद्र का मोहरा बताकर इस पूरी कार्रवाई को सियासी रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन जी तोड़ कोशिशों के बाद भी कभी ईडी सरकार पर भारी पड़ती है तो कभी सरकार ईडी को अनदेखी कर मनमानी करती है. इसी कड़ी में बीते सोमवार ईडी ने साहेबगंज के पूर्व डीएसपी को समन भेज कर ईडी ऑफिस में हाजिरी लगाने को तलब किया था. लेकिन राह ताकते रहे अधिकारी और नहीं आए साहबगंज डीएसपी. बाद में इस मामले मे सीएम हेमंत सोरेन ने आगे आकार सफाई दी कि हम जानने की कोशिश कर रहे हैं की ईडी राज्य के उच्च अधिकारियों को तलब कर सकता है या नहीं. क्या ईडी को अधिकार है कि राज्य की पुलिस को तलब करें. यही जानने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट में रीट फ़ाइल किया है. जबतक सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला नहीं देती तबतक ईडी के समक्ष हाजिर होने में डीएसपी असमर्थ है. बता दें कि ये मामला झारखंड के खनन घोटाले से जुड़ा हुआ है जहां ईडी को झारखंड में बालू गिट्टी और खनिज के टेंडर मामले में सत्ता का दुरुपयोग करते हुए मुख्यमंत्री सोरेन के करीबी पंकज मिश्रा को लिप्त पाया है साथ ही जांच में पता चला की पंकज और आलमगीर आलम सहित साहेबगंज की पुलिस भी अपने कर्तव्यों का पालन न करते हुए अवैध तरीके से दोषियों को 24 घंटे के अंदर ही क्लीन चिट दे दिया था. इसी मामले में ईडी ने 12 दिसंबर को साहेबगंज के डीएसपी को ईडी कार्यालय में पूछताछ के लिए समन भेजा था. लेकिन साहेबगंज डीएसपी ईडी के बुलाने पर नहीं आए और उल्टे हेमंत सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट में रीट दायर कर अधिकारियों के अधिकार का ही ब्योरा मांग लिया है. झारखंड में ये पकड़म पकड़ाई अपने शीर्ष पर है, जहां शह और मात का खेल ईडी और सरकार तंत्र के बीच चल रहा लेकिन उससे पहले इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि सरकार ने जो रीट दायर किया है वो आखिर है क्या? जिसके चलते ईडी के समन को भी एक किनारे रख डीएसपी पूछताछ के लिए नहीं उपस्थित हुए.
जानिए क्या है पूरा मामला
बता दें साहेबगंज जिले के बड़हरवा में टेंडर विवाद में मारपीट मामले में पुलिस का पूरा अनुसंधान कटघरे में आ गया है. इस विवाद में साहेबगंज पुलिस की भूमिका संदेहास्पद पाई गई है. ईडी से पुलिस का पीछा छूटता नहीं दिख रहा है. ईडी पहले ही इस कांड के अनुसंधानकर्ता (आइओ) एएसआइ सरफुद्दीन खान से पूछताछ कर चुकी है. खान ने ईडी की पूछताछ में बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि पंकज मिश्रा व मंत्री आलमगीर आलम को उन्होंने नहीं, कांड के पर्यवेक्षणकर्ता तत्कालीन डीएसपी प्रमोद कुमार मिश्रा ने प्राथमिकी दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर ही क्लीन चिट दे दी थी. इसी बयान के आधार पर ईडी साहेबगंज पुलिस के एसडीपीओ राजेन्द्र दुबे से पूछताछ कर चुकी है और इसी मामले में डीएसपी को भी तलब किया गया था. लेकिन डीएसपी ईडी के बुलावे पर नहीं उपस्थित हुए और उलटे हेमंत सोरेन ने ईडी के ही विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में रीट फाइल कर दिया और ईडी को अपने ना आने का यही हवाला देखर कहा की जबतक सुप्रीम कोर्ट का निर्देश नहीं आता तबतक राज्य की पुलिस ईडी के सामने पेश होने मे असमर्थ है. बता दें कि अवैध खनन मामले में बड़हरवा के टेंडर विवाद के जिस केस को आधार बनाकर ईडी ने मनी लांड्रिंग के तहत अनुसंधान शुरू किया था, उस केस के आरोपी पंकज मिश्रा व मंत्री आलमगीर आलम को साहिबगंज पुलिस ने क्लीन चिट दे दिया था.
जानिए किन सवालों के साथ ईडी को है डीएसपी का इंतजार
ईडी के पास कई ऐसे प्रश्न हैं जो साहेबगंज पुलिस को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. अब इन्हीं सवालों से भागते फिर रहे हैं कानून के रक्षक , बता दें साहेबगंज के डीएसपी को ईडी के कई प्रश्नों का उत्तर देना होगा. उन्हें यह बताना होगा कि टेंडर से हटाने के लिए शिकायतकर्ता शंभूनंदन कुमार को धमकाने वालों के फोन की जांच के लिए उन्होंने क्या कदम उठाया. जब फोन पर धमकाया गया तो उस रिकार्डिंग की आवाज का मिलान के लिए उन्होंने क्या किया और उक्त आवाज की जांच के लिए फोरेंसिक लैब का सहारा क्यों नहीं लिया गया? बता दें कि बड़हरवा थाने में 12 जून 2020 को पाकुड़ के हरिणडंगा बाजार निवासी शंभूनंदन कुमार के बयान पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी. इसमें तपन सिंह, दिलीप साह, इश्तखार आलम, मुंख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, मंत्री आलमगीर आलम, तेजस भगत, कुंदन गुप्ता, धनंजय घोष, राजीव रंजन शर्मा, निताई, टिंकू रज्जाक अंसारी व अन्य अज्ञात आरोपित बने थे. इसमें आरोपितों पर मारपीट का आरोप लगा था. छानबीन में पंकज मिश्रा व आलमगीर आलम के विरुद्ध साक्ष्य नहीं मिला, जिन्हें निर्दोष पाते हुए अन्य आठ आरोपितों के विरुद्ध 30 नवंबर 2020 को चार्जशीट दाखिल किया गया था.
कोर्ट ने जताई थी चिंता
बड़हरवा टेंडर विवाद मामले की सुनवाई शुक्रवार को जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत में हुई थी . जिसमे अदालत ने इस पूरे मामले में पुलिस की कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि पुलिस की इस तरह की कारवाई कई सवाल खड़े करती है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि पुलिस ने जानबूझकर मंत्री आलमगीर आलम और पंकज मिश्रा पर चार्जशीट दायर नहीं की है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों को बचाने के लिए पुलिस ने चार्जशीट नहीं की है. कोर्ट ने इस बात पर चिंता भी व्यक्त की थी कोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई के अलावा मंत्री को भी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि दोनों संवैधानिक पद पर बैठे हैं और ऐसे में उनके द्वारा किसी को ठेका की प्रक्रिया में शामिल नहीं होने की धमकी देना चिंता का विषय है. इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि मंत्री आलमगीर और पंकज पर गंभीर आरोप होने के बावजूद पुलिस ने क्लीन चिट दे दी, यह और चिंता का विषय है. बताते चलें कि मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी. मालूम हो कि अदालत में सुनवाई के दौरान जज ने सीबीआई और ईडी से भी जवाब दाखिल करने को कहा है. वहीं, कोर्ट ने अगली सुनवाई के दौरान ईडी को साक्ष्य पेश करने को कहा था. कोर्ट की टिप्पणी के बाद पुलिस, मंत्री आलमगीर आलम और पंकज मिश्रा तीनों की मुसीबत बढ़ सकती है. ईडी ने इसी कारवाई के तहत डीएसपी को समन भेज था और 12 तारीख को डीएसपी से पूछताछ होनि थी परंतु हेमंत सोरेन की रिट फ़ाइल करने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से जजमेंट आने के बाद ही ईडी आगे की कारवाई कर सकेगी.
आईए जानते हैं क्या है रिट और क्यों ले रहे हैं हेमंत सोरेन इसका सहारा
रिट (writ) या प्रादेश या समादेश का अर्थ प्रशासनिक या न्यायिक अधिकार से युक्त किसी संस्था द्वारा दिया गया औपचारिक आदेश है. रिट भारतीय संविधान के तहत उपलब्ध एक उपाय है. जिसको लोगों के मौलिक अधिकारों को सुदृढ़ करने के लिए मदद मांगने के लिए एक अदालत के समक्ष एक रिट याचिका दायर की जाती है. 'रिट्स' शब्द का अर्थ लिखित में एक आदेश है और यह अदालतों द्वारा जारी किया जाता है, संबंधित प्राधिकारी या व्यक्ति को एक विशिष्ट कार्य करने के लिए आदेश देता है. एक रिट याचिका किसी भी व्यक्ति, संगठन या अदालत द्वारा न्यायपालिका में प्रस्तुत की जा सकती है. भारतीय संविधान भाग III के तहत 'मौलिक अधिकारों' का प्रावधान करता है. इन अधिकारों में समानता का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार आदि शामिल हैं. रिट यह सुनिश्चित करते हैं कि इन मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाए और जरूरत पड़ने पर लोगों को मिले. इन मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए, भारतीय संविधान अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत रिट का प्रावधान प्रदान करता है, जो लोगों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने का प्रावधान देता है. इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय भी यह सुनिश्चित करने के लिए रिट जारी कर सकता है कि निचली अदालतें मौलिक अधिकारों को बरकरार रखें. बता दें बड़हरवा टॉल प्लाजा मामले में ED द्वारा झारखंड पुलिस को तलब किए जाने के खिलाफ हेमंत सोरेन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रीट पिटेशन फ़ाइल किया है . बड़हरवा टॉल प्लाजा मामले में ED द्वारा झारखंड पुलिस को तलब किए जाने के खिलाफ हेमंत सोरेन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रीट पिटेशन फ़ाइल किया है. बड़हरवा केस में पुलिस अनुसंधान की समीक्षा या निगरानी करने का अधिकार क्या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकार क्षेत्र में आता है या इसी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने एक रिट दायर की है. बरहरवा टोल प्लाजा मामले में सोमवार को ईडी से नदारद रहे झारखंड पुलिस के डीएसपी प्रमोद कुमार मिश्रा ने यह दावा किया और कहा कि इस वजह से वह ईडी के पास नहीं जा सके.