रांची (RANCHI) : झारखंड में राजधानी रांची से लेकर सुदूरवर्ती गांव में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अक्सर देखने और सुनने को मिलती हैं. कहीं कोई ठेला पर शव को ले जाता है, उसे एंबुलेंस नहीं मिलता. रिम्स में मशीन खराब रहती हैं. पैथ लैब की स्थिति खराब है और पारा मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है. स्वास्थ्य कर्मियों में सेवा के प्रति उत्साह का भी अभाव है. झारखंड हाई कोर्ट फटकार लगाता रहता है.
दवाइयों के साथ-साथ पैरामेडिकल स्टाफ की कमी
सरकारी अस्पतालों में दवाइयों का अभाव रहता है. इसके अलावा डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी या उनकी लापरवाही के समाचार अक्सर सुनने को मिलते हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था की इस राज्य में बदहाली का एक बड़ा कारण हम आपको बताने जा रहे हैं.
मेडिकल सुविधा के लिए करोड़ो खर्च करती है सरकार
प्रत्येक राज्य में स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत संरचना और सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ओर से प्रत्येक साल एक बड़ी राशि मिलती है. पिछले 5 साल का आपको हिसाब बता रहे हैं. भारत सरकार ने झारखंड को 2017 से 2022 तक 7966.90 करोड़ रुपए दिए.अब जानिए इतनी बड़ी राशि में से राज्य का स्वास्थ्य विभाग मात्र 4680.54 करोड़ रुपया खर्च कर पाया. स्वास्थ्य विभाग के खजाने में 3286.36 करोड़ रुपए पड़े रह गए. इनका उपयोग नहीं हो पाया.
अपर मुख्य सचिव ने जताई चिंता
स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने इस स्थिति को गंभीर मानते हुए चिंता जताई है. विभाग ने उनके हस्ताक्षर से एक संकल्प जारी किया है जिसमें स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए एक योजना शुरू करने का उल्लेख है. इस योजना का नाम है स्वास्थ्य कर्मी प्रोत्साहन सम्मान योजना.
उत्कृष्ट स्वास्थ्य कर्मियों को किया जाएगा सम्मानित
यह योजना स्वास्थ्य कर्मियों को बेहतर सेवा देने के लिए प्रेरित करेगी. ऐसा विभाग सोच रहा है. योजना को अलग-अलग प्रखंडों में श्रेणी बंद करके लागू किया जाएगा. अब देखना होगा कि योजना से झारखंड में बदहाल स्वास्थ्य सेवा कितनी बेहतर हो पाएगी. इसके तहत उत्कृष्ट स्वास्थ्य कर्मियों को उनकी बेहतर सेवा के लिए पुरस्कृत किया जाएगा. हर स्तर के स्वास्थ्य कर्मियों के लिए अलग-अलग प्रोत्साहन राशि निर्धारित की गई है.बहरहाल, ऐसी स्त्री के लिए विभाग के मंत्री,अधिकारी को क्यों नहीं जिम्मेदार माना जाए यह प्रबुद्ध जनों का मानना है. कुछ भी हो स्थिति सोचनीय है.