धनबाद(DHANBAD): गिरिडीह के गांडेय विधानसभा के विधायक डॉक्टर सरफराज अहमद ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से इस्तीफा दे दिया है. इसके साथ ही अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है. सवाल किया जा रहा है कि क्या झारखंड कांग्रेस के नए प्रभारी गुलाम अहमद मीर से दोस्ती ने डॉक्टर सरफराज अहमद का झारखंड मुक्ति मोर्चा से मोह भंग कर दिया? मीर और डॉक्टर सरफराज अहमद में अच्छे संबंध रहे है. अभी झारखंड में अविनाश पांडे की जगह मीर को कांग्रेस का प्रभारी बनाया है. इधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहते हुए डॉक्टर सरफराज अहमद घुटन महसूस कर रहे थे. जिस तरह 2019 में कांग्रेस से पल्ला झाड़ कर झारखंड मुक्ति मोर्चा से चुनाव लड़ा और गांडेय विधानसभा से चुनाव जीत गए. ठीक उसी तरह क्या इस बार भी झारखंड मुक्ति मोर्चा को उन्होंने अलविदा कहा है? क्या उन्हें कांग्रेस से कोई भरोसा मिला है ?
क्या अब वह कांग्रेस में ही अपनी राजनीतिक जमीन तलाशेंगे ?
क्या अब वह कांग्रेस में ही अपनी राजनीतिक जमीन तलाशेंगे ? चर्चा तो यह भी है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा से विधायक बनने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि अल्पसंख्यक कोटा से उन्हें मंत्री बनाया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अल्पसंख्यक कोटा से हाजी हुसैन अंसारी को मंत्री बनाया. उसे वक्त डॉक्टर सरफराज अहमद पिछड़ गए थे. जब हाजी हुसैन अंसारी का निधन हुआ तब उन्हें एक बार फिर उम्मीद जगी कि अब हो सकता है कि उन्हें अल्पसंख्यक कोटा से मंत्री बना दिया जाए. लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने प्रयोग के तौर पर बिना विधायक रहे हाजी हफीजुद्दीन अंसारी के बेटे को मंत्री बना दिया और बाद में चुनाव लड़वाकर उन्हें विधायक बनवाया. इस समय भी सरफराज अहमद गच्चा खा गए. इधर, हो सकता है कि मीर के रूप में उन्हें डुबते को तिनके का सहारा नजर आया हो और वह झारखंड मुक्ति मोर्चा को अलविदा कह दिए. अभी इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है कि वह कांग्रेस में शामिल हुए हैं या होंगे अथवा नहीं. लेकिन चर्चाओं का बाजार गर्म है.
2019 के विधानसभा चुनाव में थमा था झामुमो का दामन
2019 के विधानसभा चुनाव में गांडेय विधानसभा क्षेत्र झारखंड मुक्ति मोर्चा के खाते में आया था. उस वक्त उन्होंने बिना विलंब किए कांग्रेस को छोड़कर झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थामा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर विजई रहे. वैसे, सरफराज अहमद का कांग्रेस में राजनीतिक कैरियर चार दशक से भी अधिक का रहा है. अभिवाजित बिहार में वह प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. गिरिडीह से सांसद भी बने थे. उनका परिवार भी राजनीति में था. उनके पिता भी गिरिडीह से सांसद रह चुके है. डॉक्टर सरफराज अहमद के झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलविदा कहने के और कई वजह हो सकते हैं लेकिन तात्कालिक रूप से यही कहा जा रहा है कि मीर से उनकी दोस्ती में एक आशा की किरण दिखाई दे रही है. वैसे चुनाव नजदीक आते-आते बहुत सारे उलट फेर दिखेंगे.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो