धनबाद(DHANBAD) : संथाल परगना में फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा की पकड़ मजबूत बनी हुई है. हालांकि इस मजबूत पकड़ को ढीला करने के लिए भाजपा सहित अन्य दलों ने कई प्रयास किये. लेकिन बहुत हद तक सफलता नहीं मिली. वैसे, झारखंड मुक्ति मोर्चा की पकड़ संथाल परगना में कोई एक दिन में मजबूत नहीं हुई है. 1977 में धनबाद के टुंडी से झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन दुमका शिफ्ट हो गए. फिर उनकी राजनितिक जमीन फैलनी शुरू हो गई. झारखंड मुक्ति मोर्चा 1980 के विधानसभा चुनाव में पहली बार संथाल में किस्मत आजमाया. संथाल परगना इलाके के 18 में से सात सीटों पर जीत हासिल की. उसके बाद से यह मजबूत क्षेत्रीय दल के रूप में उभरना शुरू हुआ. 1980 के विधानसभा चुनाव में पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी, सूरज मंडल, देवी धन बेसरा सहित अन्य झामुमो के टिकट पर चुनाव जीते.
1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का चुनावी राजनीति में हुआ था प्रवेश
1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सिर्फ संथाल परगना में ही नहीं बल्कि छोटा नागपुर के भी कुछ सीटों पर चुनाव लड़ा. हालांकि अपेक्षित सफलता नहीं मिली. लेकिन संथाल परगना में पहले चुनाव में 7 सीट जीतकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराइ. इधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति को जानने वाले यह भी बताते हैं कि 5 साल बाद 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने फिर संथाल में 7 सीट जीती. 1990 के विधानसभा चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. झामुमो को संथाल परगना के 18 में से 8 सीटों पर जीत मिली.1990 में बोरियों से लोबिन हेंब्रम और बरहेट से हेमलाल मुर्मू पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. दोनों सीट पर उससे पहले कांग्रेस का कब्जा था. लिट्टीपाड़ा सीट से विधानसभा चुनाव जीते साइमन मरांडी राजमहल से सांसद बन गए थे और उनकी जगह उनकी पत्नी सुशीला हांसदा पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी और जीती. शिकारीपाड़ा से नलिन सोरेन विजयी हुए. दुमका सीट से स्टीफन मरांडी तीसरी बार चुनाव जीते. जामा सीट पर शिबू सोरेन की जगह मोहरी मुर्मू चुनाव लड़े और जीत दर्ज की.
पोड़ैयाहाट से सूरज मंडल 1990 में चुनाव जीते थे
पोड़ैयाहाट से सूरज मंडल 1990 में फिर चुनाव जीते. यह अलग बात है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना धनबाद में एके राय, विनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन ने मिलकर की थी. लेकिन धीरे-धीरे एके राय की राह अलग होती गई और वह झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली. लेकिन विनोद बाबू, शिबू सोरेन के साथ रहे और झारखंड मुक्ति मोर्चा आगे बढ़ता रहा. पार्टी को जानने वाले यह भी बताते हैं कि एक समय था, जब शिबू सोरेन और सूरज मंडल एक देह, दो प्राण हुआ करते थे. लेकिन समय ने ऐसा पलटा खाया कि सूरज मंडल की शिबू सोरेन से नहीं बनी और सूरज मंडल झामुमो से अलग हो गए. वह भाजपा ज्वाइन किया था. झामुमो की बागडोर हेमंत सोरेन के हाथों में आई और उसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन में ही सही, सत्ता पर काबिज हुआ. हालांकि इसके पहले भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार गठबंधन में ही सही, बनती रही है. देखना है 2024 के चुनाव का परिणाम किस करवट बैठता है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो