धनबाद(DHANBAD): धनबाद- झरिया की राजनीति कोयले से चमकती है. चुनाव तक में कोयला मजदूरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कोयला मजदूरों के बीच यूनियन काम करती हैं और इन्हें यूनियन के आसरे राजनीतिक व्यवस्था चलती रही है. यूनियन की राजनीति कर कई नेता विभिन्न पार्टियों के विधायक, सांसद और मंत्री बन गए. पंडित बिंदेश्वरी दुबे तो इसके उदाहरण है, जो बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी से लेकर केंद्रीय श्रम मंत्री तक पहुंचे. कांग्रेस के बड़े नेता राजेंद्र सिंह का भी नाम इसमें सुमार है. सूर्य देव सिंह चार बार के विधायक रहे. शंकर दयाल सिंह विधायक, सांसद और प्रदेश के मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. एके राय विधायक ,सांसद बने.
तीन सीटों पर तो सीधे टकरा रहे उम्मीदवार
इस बार भी धनबाद के कम से कम तीन सीटों पर मजदूर यूनियन के लोग तो सीधे टकरा रहे है. निरसा से बात की अगर शुरुआत की जाए, तो भाजपा से अपर्णा सेनगुप्ता मैदान में है तो माले से अरूप चटर्जी चुनाव लड़ रहे है. अपर्णा सेन गुप्ता जनता मजदूर संघ (कुंती गुट ) की पदाधिकारी है. इससे पहले वह फारवर्ड ब्लॉक में रहते हुए सीटू से जुड़ी हुई थी. भाजपा में आने के बाद वह कुंती गट से जुडी. अरूप चटर्जी बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के महामंत्री है. इसका गठन 1970 में हुआ था.
झरिया विधानसभा में तो है रोचक मुकाबला
अब अगर झरिया चले, तो झरिया में देवरानी और जेठानी के बीच मुकाबला है. कहा जा सकता है कि दो यूनियन से जुड़ी महिलाएं आमने-सामने है. कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा नीरज सिंह जनता मजदूर संघ (बच्चा गुट ) की अध्यक्ष है. वहीं भाजपा प्रत्याशी रागिनी सिंह जनता श्रमिक संघ की महामंत्री है. बाघमारा की बात की जाए तो भाजपा से शत्रुघ्न महतो चुनाव मैदान में है. शत्रुघ्न महतो यूनाइटेड कोल्ड वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष है. उनके छोटे भाई सांसद ढुल्लू महतो यूनियन के महामंत्री है. वही कांग्रेस से खड़े जलेश्वर महतो झारखंड कोलियरी श्रमिक यूनियन से जुड़े बताएं जाते है. वैसे तो धनबाद से कांग्रेस प्रत्याशी अजय दुबे भी मजदूर संगठन से जुड़े हुए हैं, तो टुंडी से झामुमो के प्रत्याशी मथुरा महतो झारखंड कोलियरी कामगार यूनियनके केंद्रीय उपाध्यक्ष है.
झामुमो नेताओं ने भी बनाई यूनियन
साल 2000 में झारखंड गठन के बाद बिहार कोलियरी कामगार यूनियन से अलग होकर झामुमो नेताओं ने इस यूनियन का गठन किया था. वैसे भी धनबाद, झरिया, निरसा इलाके में मजदूर संगठनों का एक अपना महत्व होता है. कहा जाता है कि कोयला मजदूर जिस भी इलाके में जिस और पूरी तरह से झुक गए, वहां उस दल की जीत पक्की हो जाती है. झरिया में तो दो यूनियन की महिलाएं आमने-सामने है, तो निरसा का भी यही हाल है. बाघमारा भी कुछ इसी राह पर है. 2019 के विधानसभा चुनाव में धनबाद की छह विधानसभा सीटों में चार पर भाजपा का कब्जा था. एक पर कांग्रेस की जीत हुई थी तो एक झामुम के खाते में गया था. 2024 के चुनाव में देखना है कि क्या परिणाम निकलकर सामने आता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो