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विलुप्त हो रही खोरठा भाषा को कविता के जरीये सहेज रहे है फाल्गुनी मरीक कुशवाहा! विनोबा भावे विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल की गई कविता

विलुप्त हो रही खोरठा भाषा को कविता के जरीये सहेज रहे है फाल्गुनी मरीक कुशवाहा! विनोबा भावे विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल की गई कविता

देवघर(DEOGHAR):झारखंड में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा खोरठा है.उत्तरी छोटानागपुर और संताल परगना प्रमंडल के सभी जिलों में खासकर अधिकांश लोग इसी भाषा का उपयोग करते हैं,लेकिन अब यह भाषा धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है.इसे सहेजने के लिए राज्य के कुछ विश्वविद्यालय में इसकी पढ़ाई भी शुरू की गई है. 90 के दशक से लेकर आज तक इस भाषा को अपने कविता, लेखनी और सम्मेलन से पटल पर लाने के लिए हरसंभव प्रयास करने वाले देवघर के फाल्गुनी मरीक कुशवाहा की कविता को विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के स्नातक के पाठ्यक्रम में शामिल करके इन्हें एक नई पहचान दी गई है.इससे फाल्गुनी मरीक कुशवाहा बहुत प्रफुल्लित है.

केंवराक गमक नामक पुस्तिका में पढ़ेंगे विद्यार्थी

खोरठा की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को रांची विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ गजाधर महतो प्रभाकर द्वारा खोरठा भाषा के विद्वानों द्वारा लिखी कविता या काव्य पाठ्य को संग्रहित कर केंवराक गमक नामक पुस्तक को प्रकाशित किया गया है.इसी पुस्तक में देवघर के फाल्गुनी मरीक कुशवाहा द्वारा लिखी आपन करनी परक दोष शीर्षक नामक कविता को विद्यार्थी पढ़ेंगे.फाल्गुनी मरीक ने इस कविता के माध्यम से आधुनिकता के दौर में कैसे आजकल की पीढ़ी पुरानी सभ्यता और संस्कृति को भूल रही है उसे दर्शाया है.फाल्गुनी मरीक की माने तो विनोबा भावे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में इनकी कविता शामिल होने से इन्हें खोरठा भाषा के प्रति समर्पण को बल मिला है जिससे वे इस भाषा के विलुप्त होने से बचाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे.

सिधो कान्हो विश्वविद्यालय में भी खोरठा विभाग की हो स्थापना

संताल परगना प्रमंडल में खोरठा भाषा सभी जिलों में बोली जाती है,लेकिन उपराजधानी दुमका में स्थित सिधो कान्हो मुर्मू विश्वविद्यालय में खोरठा भाषा की पढ़ाई नही होती है.ऐसे में फाल्गुनी मरीक कुशवाहा ने एसकेएम विश्वविद्यालय में खोरठा विभाग की स्थापना कर खोरठा की पढ़ाई कराने की मांग की है.फाल्गुनी मरीक कुशवाहा पेशे से वकील, पत्रकार और कवि है.इनके द्वारा खोरठा भाषा की लगभग 150 कविता विभिन्न पत्र, पत्रिका और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रकाशित हो चुकी है.इनके द्वारा दो कविता और काव्य की पत्रिका का भी प्रकाशन किया गया है.इनकी रचनाओं पर कई प्रतियोगिता परीक्षा में ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न भी पूछे गए हैं.फाल्गुनी मरीक खोरठा भाषा को बचाने के लिए आगे कई कार्यक्रम भी आयोजन करेंगे.

रिपोर्ट-रितुराज सिन्हा

Published at:11 Jan 2024 10:55 AM (IST)
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