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देश में शिक्षा माफियाओं के आगे सब फेल,  किताबों में 2-3 चैप्टर बदल करोड़ो की कमाई, ना कोई बोलने वाला ना कोई टोकने वाला

देश में शिक्षा माफियाओं के आगे सब फेल,  किताबों में 2-3 चैप्टर बदल करोड़ो की कमाई, ना कोई बोलने वाला ना कोई टोकने वाला

TNP DESK: देशभर में प्राइवेट स्कूलों में कॉपी किताब के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है. प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक स्कूल की मनमानी से परेशान हैं.  अप्रैल माह से स्कूल में नए सत्र की शुरुआत हो रही है और ऐसे में सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के सभी निजी स्कूलों में रिजल्ट भी जारी कर दिए गए हैं या कहीं-कहीं किसी स्कूल में रिजल्ट जारी किए जा रहे हैं. रिजल्ट के साथ ही अब नए सेशन के लिए बच्चों को नई किताबें भी लेनी होगी. इसके लिए अभिवावकों को किताबों लिस्ट की लिस्ट और नोटिस भी थमा दी गई है.  लेकिन इस बार भी हर साल की तरह सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के निजी स्कूलों ने सभी बुक में कुछ ना कुछ बदलाव कर दिया है. अब जब बुक में बदलाव हुआ है तो अभिभावक को नई किताबें लेनी होगी. किताबों के बस दो-तीन चैप्टर ही बदले गए हैं और वह इसलिए ताकि बच्चे पुरानी किताबों से पढ़ाई ना कर सके और उन्हें नई किताबें लेनी ही पड़ी इतना ही नहीं किताबों के दाम में भी हर साल की तरह वृद्धि की गई है.

नए सत्र में अभिभावकों पर एक बोझ  बढ़ गया है.  नए सत्र में तीन से लेकर पांच फीसदी तक सभी वर्ग की किताबें महंगी हो गई हैं. ऐसे में अभिवावक की जेब पर सीधा असर पड़ रहा है. अभिवावक न चाहते हुए भी महंगी किताबें खरीदने को मजबूर हैं.

नए सत्र में बढ़े किताबों के दाम से अभिभावक परेशान

आपको बताते चलें कि इस बार सीबीएसई की किताबों की  नए सत्र में तीन फीसदी तक दाम बढ़े हैं. इसके अलावा आईसीएसई की किताबों पर करीब पांच फीसदी तक महंगाई बढ़ी है. 

मालूम हो कि पिछले साल तीन हजार से 35 सौ में मिलने वाली किताबें इस बार चार हजार से 42 सौ तक में मिल रही हैं. इसके अलावा हर साल निजी स्कूल अपने स्तर से किताबें तय करते हैं. यहां तक की कॉपी भी कुछ स्कूल अपने स्तर से ही उपलब्ध कराते हैं. साथ ही स्कूल यूनिफॉर्म और अन्य चीजें भी स्कूल से ही खरीदने को कहा जाता है. इससे अभिभावकों की परेशानी बढ़ी रहती है.

स्कूल प्रशासन और बोर्ड की मिलीभगत से होता है सबकुछ तय 

यह पूरा खेल स्कूल और बोर्ड की मिलीभगत से चलता है जिसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ता है. अभिभावकों की जेब पर इसका असर पड़ता है लेकिन वह अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए इस पर कोई सवाल भी खड़ा नहीं कर पाते हैं. बोर्ड प्रशासन की और स्कूलों की मनमानी ऐसी चल रही है कि ना तो इन्हें कोई रोकने वाला है ना टोकने वाला. यह हर साल अपने हिसाब से किताब के कुछ चैप्टर बदलकर अभिभावकों को और बच्चों को नई किताबें लेने पर मजबूर करते हैं. साथ ही किताबों के दाम में भी वृद्धि कर दी जाती है. अभिभावक इन मुद्दों को लेकर समय-समय पर बात करते हैं कि हर साल किताबें नहीं बदली जाए और किताबों के दामों में वृद्धि नहीं की जाए लेकिन एक दो अभिभावकों के बोलने से स्कूल प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं होता है.

सिलेबस में मामूली बदलाव कर नई किताबें खरीदने को किया जाता है मजबूर 

शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों में खुले निजी विद्यालयों में नामांकन के साथ ही स्कूल में खुले दुकानों में कॉपी व किताब दी जाती है जिसे लेने के लिए अभिभावक लंबी लाइन लगते हैं. इन स्कूलों में बच्चों के परीक्षा का रिजल्ट आते ही नए कक्षा के लिए ड्रेस किताब कॉपी और अन्य स्टेशनरी सामान खरीदने का दबाव दिया जाता है जिसे हर हाल में अभिभावकों को खरीदना ही पड़ता है. हर वर्ष किताबों के सिलेबस में मामूली बदलाव कर किताब बदल दी जाती है जिससे पूरी पुरानी किताबों से बच्चे पढ़ाई ना कर सके. इतना ही नहीं कुछ स्कूलों द्वारा बाजार के कुछ निश्चित दुकानों से मिली भगत कर उनके द्वारा स्कूल ड्रेस व कॉपी किताब की बिक्री कराई जाती है. दुकानदारों द्वारा स्कूल प्रबंधन को मोटी कम दी जाती है. कुछ स्कूल तो किताबों के साथ यूनिफॉर्म, बेल्ट स्कूल बैग भी बेच रहे हैं. कुछ स्कूलों ने अलग-अलग दुकान सेट किए हुए हैं जहां से आप उनके स्कूल में चलने वाली किताबें खरीद सकते हैं यह किताबें आपको दूसरे दुकान में नहीं मिलेंगे. इसके लिए स्कूल निजी दुकान से अपना कमीशन सेट करके रखते हैं.

एनसीईआरटी की किताबों के साथ निजी प्रकाश की किताबें खरीदना अनिवार्य 

स्कूल प्रशासन खुद अपना सिलेबस तय करके अपनी सुविधा के अनुसार पुस्तक छपवाकर उसकी मनमानी कीमत निर्धारित कर देते हैं जिससे उन्हें बड़ा मुनाफा मिल सके. सरकारी स्कूलों की एनसीईआरटी की किताबें बहुत ही बेहतरीन होती है और सीबीएसई बोर्ड के स्कूलों में क्लास सिक्स के बाद से ही एनसीईआरटी की किताबें चलने भी लगती है. लेकिन इसके बावजूद भी स्कूल प्रशासन 8 से 10 रेफरेंस बुक के नाम पर निजी प्रकाश की किताबें खरीदवाते हैं. उनका कहना होता है की पढ़ाई करने के लिए एनसीईआरटी की किताबें ही सिर्फ काफी नहीं होती है उन्हें निजी प्रशासन की किताबों से भी पढ़ना पड़ेगा. स्कूल प्रशासन इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि एनसीईआरटी की किताबें काफी सस्ती होती है और उन पर उन्हें कोई कमीशन नहीं मिलता है. इसीलिए वह अन्य पब्लिकेशन की किताबें बच्चों को सजेस्ट करते हैं ताकि बच्चे उस किताब को खरीदें और उन पर उन्हें कमीशन मिल सके और उनकी कमाई हो सके. ऐसे में अभिभावकों की मजबूरी होती है कि उन्हें बच्चों के लिए किताब लेनी ही पड़ती है.

ऐसे में आप सोच सकते हैं कि आज की शिक्षा व्यवस्था किस स्तर पर पहुंच गई है. एक मिडिल क्लास फैमिली को अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना कितना मुश्किल होते जा रहा है. 

Published at:20 Mar 2025 03:12 PM (IST)
Tags:Jharkhand news Ranchi newsPrivate school expensive book New session school निजी स्कूलों की मनमानी Private school fee increase in new session New session private school book pricePrices of CBSE books increased in the new session
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