Tnp Desk: देश में 1966 में आई भीषण आकाल ने भूखमरी का जो संकट खड़ा किया था. वह शायद ही बताने की जरुरत पड़े . देशभर में अन्न के गहराये संकट के चलते झारखंड भी अछूता नहीं था. लेकिन, जल, जंगल की जमीन वाले प्रदेश झारखंड में एक इलाका ऐसा भी था. जहां की मिट्टी और कुदरत की नेमत ने जो सौगात बख्शी थी कि यहां कोई भूखे पेट नहीं सोया. बल्कि यहां की पैदवार ने लोगों की जान बचा ली .झारखंड के गढवा जिले के अधीन आने वाले हेठार और गोवावल क्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है. पलामू गेजेटियर में भी इन इलाकों की ख्याति धान उत्पादक क्षेत्र के तौर पर होने का उल्लेख मिलता है.
क्यों बोला जाता है ''धान का कटोरा''
गोवावल क्षेत्र में चारों तरफ नदियों से घिरा हुआ है. उत्तर में कोयल, दक्षिण में अन्नराज तो पुरब में तहले और पश्चिम में दानरो नदी है. इसके चलते यहां सिंचाई की समस्या नहीं रहती है. 1966 में पड़े भीषण आकाल में भी यहां धान की खेती हुई और अच्छी पेदवार के चलते किसी के सामने भुखमरी जैसी नौबत नहीं आई.
काली मिट्टी के चलते बेहतर पैदवार
इस इलाके में एक कहावत है कि खेत में दाना डाल दिया तो हसुआ लगेगा ही. मतलब इसका यह है कि अगर किसान ने यहां बीज डाल दिया है, तो फिर वह फसल की कटाई भी करेगी. यहां पर इस तरह के जुमले के पीछे सच यही है कि यहां की ज्यादतर मिट्टी काली है. जो काफी उपजाऊ मानी जाती है. यहां यह भी बोला जाता है कि धान की पैदवार अभी भी बहुतायत होती है. वही, कांडी प्रखंड के ही अंतर्गत आने वाले हेठार क्षेत्र की पहचान भी चावल उत्पदान के लिए मशहूर है. यह इलाके तीन नदियों से घिर हुआ , जिसमे सोन, कोयल और पंडी नदी है. यहां की जमीन भी बेहद उपजाऊ रही है. हालांकि, एक विडंबना ये है कि यहां नदी में तटबंध नहीं रहने के चलते इस क्षेत्र को काफी जमीने नदी में समा चुकी है. इसके चलते मियाजा यहां के किसानों को भुगतना पड़ रहा है.
सोन नदी में समायी जमीनें
इस इलाके को जो तमगा धान का कटोरा का मिला था. अब वह खोता जा रहा है. धान की खेती अभी भी होती है. लेकिन, मुक्कमल सुविधाओं के अभाव के चलते हालात विपरीत हो गये हैं. सोन नदी में तटबंध नहीं रहने के चलते तकरीबन ढाई किलोमीटर जमीन नदी में समा गई. इसके चलते भी किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ा और इसका असर धान की खेती पर भी पड़ा . इधर, गोवावल क्षेत्र में सिचाई का इंतजाम तो है. लेकिन , यह सुविधा हेठार क्षेत्र में नहीं है. जिसके चलते भी किसान कई चिजों से महरूम रह जाते हैं. अभी भी पटवन का सही इंतजाम नहीं हो सका है.