गुमला (GUMLA) : झारखंड के अलग राज्य बनने के 24 साल पूरे हो गए हैं. इन दो दशकों से अधिक समय में, आधुनिक तकनीकों और सरकारी पहलों ने राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाई है. हाईवे से लेकर डिजिटल क्रांति तक, झारखंड ने कई क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों को छुआ है. परंतु इस विकास की चमक के बीच, आज भी कई गांव ऐसे हैं जो मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. इसी में से एक है, गुमला जिला जो झारखंड के आदिवासी बहुल जिलों में से एक है, इस जिले के कई सुदूरवर्ती इलाकों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. जिला प्रशासन के प्रयासों के बावजूद इन क्षेत्रों में विकास योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं. खासकर, बिशुनपुर, घाघरा, डुमरी, चैनपुर, जारी, बसिया, और कामडारा जैसे क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाएं अब भी लोगों की पहुंच से दूर हैं.
विकास की राह देख रहा गांव
चैनपुर प्रखंड के पीपी बामदा पंचायत का असुर खपराटोली गांव विकास की राह देख रहा है. यह गांव जंगल और पहाड़ों के बीच बसा है और यहां रहने वाले आदिम जनजाति के लोग दूषित चुआ का पानी पीने को मजबूर हैं. जल जीवन मिशन के तहत सोलर जलमीनार तो लगाया गया है, लेकिन उसमें पानी की आपूर्ति कभी शुरू नहीं हो पाई. इसके साथ ही गांव में रोजगार की स्थिति भी बेहद खराब है. अधिकांश ग्रामीण ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए पलायन करने को मजबूर हैं. रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता ग्रामीणों की जीवनशैली को प्रभावित कर रही है.
गुमला उपायुक्त लगातार इलाकों का कर रहे दौरा
जिला प्रशासन ने विकास को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास किया है. गुमला के उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी लगातार सुदूर इलाकों का दौरा कर रहे हैं. सड़कों और संसाधनों की कमी के बावजूद वे बाइक और पैदल चलकर गांव-गांव तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने इन क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने का आश्वासन दिया है. उपायुक्त ने ग्रामीणों के साथ बैठकें कर उनके मुद्दों को प्राथमिकता देने की बात कही है. हालांकि, फंड की कमी और दुर्गम इलाकों तक पहुंचने की चुनौतियां विकास योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने में बाधा बन रही हैं.
रिपोर्ट. सुशील कुमार सिंह