टीएनपी डेस्क (TNP DESK ): रांची में यूं तो अनगिनत शिव मंदिर हैं. लेकिन शहर में सबसे प्रख्यात शिव मंदिर पहाड़ी मंदिर है. इसके नाम से ही आपको अंदाज़ा लग चुका होगा की यह मंदिर पहाड़ों के बीचो-बीच स्थित है. जानकारी के अनुसार पहाड़ी मंदिर का क्षेत्र 26 एकड़, 13 कड़ी के गोलाकार हिस्सा में फैला हुआ है. लेकिन इसकी सुंदरता पर अब दाग लगने लगा है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मंदिर परिसर के आस-पास शिव के मुख्य मंदिर को छोड़ कर अगल-बगल और निचले हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है. अगर आप कभी पहाड़ी मंदिर जाएं, तो देख कर पता चलेगा कि पहाड़ी मंदिर के चारों तरफ जुग्गी-झोपड़ी का निर्माण कर लिया गया है. मंदिर के पिछले हिस्से में सबसे ज़्यादा अतिक्रमण किया गया है. देखा जाये तो अगर यहां अतिक्रमण नहीं हटाया गया तो जुग्गी-झोपड़ी की संख्या इतनी बढ़ जाएगी की फिर मंदिर के चारों तरफ बस्ती ही बस्तियां दिखाई देंगी.
अतिक्रमण हटाने के बाद भी नहीं रुके लोग
जानकारी के अनुसार प्रशासन को जब-जब मंदिर के क्षेत्र में अतिक्रमण की शिकायत मिलती है, वह अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाती है और क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करा दिया जाता है. लेकिन कुछ ही दिनों में यहां लोगों द्वारा फिर से अतिक्रमण कर लिया जाता है. बता दें कि मंदिर प्रबंधन ने कुछ साल पहले मंदिर परिसर की घेराबंदी की थी, लेकिन इसके निचले हिस्से को छोड़ दिया गया था. इसी का नतीजा है की आज मंदिर पूरी तरह से अतिक्रमण के जाल से घिरा हुआ है.
बड़ी संख्या में उमड़ती है भक्तों की भीड़
सावन के दिनों में पहाड़ी मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. जिसके तैयारी महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है. पहाड़ी मंदिर रांची में सभी प्रख्यात शिव मंदिरो में से एक है. जो कि रांची रेलवे स्टेशन से महज 7 किलोमीटर की दूर पर स्थित है. मंदिर परिसर से पूरे शहर का नज़ारा देखा जा सकता है. शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां शिव भक्तों की बड़ी भीड़ लगी रहती है. ऐसे में मंदिर के आस-पास वाले क्षेत्र में थोड़ा खुला जगह होना ज़रूरी है. ताकि श्रद्धालुओं की भीड़ को आसानी से नियंत्रित किया जा सके. सावन के महीने में शिव पर जलार्पण करने के लिए यहां कई किलोमीटर तक शिव भक्तों की कतार लगती है. ऐसे में अगर अतिक्रमण के कारण मंदिर के आस-पास जगह ही न बचे तो शिव दर्शन करने पहुंचे लोगों को काफी परेशानी हो सकती है.
पहाड़ी मंदिर में फ्रीडम फाइटर्स को दी जाती थी फांसी
बहुत कम लोगों को पहाड़ी मंदिर के रोमांच भरे इतिहास के बारे में पता होगा. अगर आपने कभी इसके बारे में कहीं पढ़ा या सुना होगा तो निश्चित ही अपने मन में भी पहाड़ी मंदिर के इतिहास को जानने की जिज्ञासा होगी. राजधानी रांची के पहाड़ी मंदिर की कहानी बेहद ही रोचक है. पहाड़ी मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था, जो आगे चलकर ब्रिटिश के कार्यकाल के दौरान समय में 'फांसी टुंगरी' में बदल दिया गया था. पहाड़ पर स्थित भगवान शिव का यह मंदिर देश की आजादी के पहले अंग्रेजों के कब्जें में था और अंग्रेज के राज में यहां फ्रीडम फाइटर्स को फांसी दी जाती थी. लेकिन अगर अब आप पहाड़ी मंदिर जायें और उस जगह को ढूंढे जहां फ्रीडम फाइटर को फ़ांसी दी जाती थी तो शायद आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा. अब वहां की मरम्मत कुछ इस तरह कर दी गयी है कि मंदिर परिसर की चारों ओर आपको बस शांति और भक्ति का माहौल ही मिलेगा.
पहाड़ी मंदिर में भगवान के झंडे के साथ राष्ट्रीय झंडा भी फ़हराया जाता है, जानते हैं क्यों?
रांची में आजादी के बाद पहला तिरंगा झंडा पहाड़ी मंदिर में फहराया गया था. पहली बार रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चन्द्र दास ने पहाड़ी मंदिर में तिरंगा झंडा फहराया था. यहां राष्ट्रीय झंडा शहीद हुए इंडियन फ्रीडम फाइटर्स की याद और सम्मान में फहराया जाता है. तब से हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर यहां तिरंगा फहराया जाता है.