दुमका: पूरे देश में लोकसभा चुनाव चल रहा है. सात चरणों में संपन्न होने वाले चुनाव का अंतिम चरण कल यानी 1 जून को है. 1 जून को झारखंड के संथाल परगाना प्रमंडल के तीन सीटों पर मतदान होगा, जिसमें दुमका, राजमहल और गोड्डा सीट शामिल है.
भाजपा का रहेगा दबदबा कायम या झामुमो वापस लेगी यह सीट
दुमका सीट की बात करें तो यह झामुमो का गढ़ माना जाता है, क्योंकि पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन आठ बार यहां से सांसद निर्वाचित हो चुके हैं. इसके बावजूद वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने दिसोम गुरु शिबू सोरेन को पराजित कर इस सीट पर कब्जा जमाया. वर्ष 2024 में भी दुमका लोकसभा सीट पर काफी रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है. भाजपा ने सुनील सोरेन से टिकट वापस लेकर परिवार और पार्टी से बगावत कर भाजपा का दामन थामने वाली सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा. वहीं झामुमो ने सीता सोरेन के सामने शिकारीपाड़ा से 7 टर्म के विधायक नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है.
सीता सोरेन: कमल या तीर कमान, उलझ ना जाए मतदाता
लगभग चार दशक बाद यह पहला चुनाव होने जा रहा है जिसमें शिबू सोरेन परिवार का कोई सदस्य झामुमो प्रत्याशी के रूप में चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि भाजपा से चुनाव लड़ने वाली सीता सोरेन शिबू सोरेन परिवार का सदस्य है. सीता सोरेन का जब भी जिक्र होगा तो यही कहा जाता है की दिसोम गुरु शिबू सोरेन की बड़ी पुत्रवधू और स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन है. संथाल समाज के मतदाताओं में दिसोम गुरु का एक अलग स्थान है. साथ ही झामुमो के चुनाव चिन्ह तीर कमान का विशेष महत्व है. वैसे तो भाजपा ने पार्टी प्रत्याशी के रूप में सीता सोरेन का जमकर प्रचार किया है लेकिन सवाल उठता है कि क्या सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र के वैसे मतदाता जो निशान देखकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं उन तक यह मैसेज पहुंच पाया कि सीता सोरेन का चुनाव चिन्ह कमल छाप हो गया है. यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि तीन बार जामा से विधायक का चुनाव जीतने वाली सीता सोरेन तीर कमान चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव जीतने में सफलता प्राप्त की है. वैसे तो भाजपा का दावा है कि आम जनमानस तक यह संदेश गया है कि सीता सोरेन भाजपा प्रत्याशी है और कमल छाप चुनाव चिह्न है. इस दावे में कितनी सच्चाई है इसका पता तो चार जून को ही चल सकेगा जब चुनाव परिणाम सामने आएगा. लेकिन इतना जरूर है कि दुमका लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है.
रिपोर्ट: पंचम झा