धनबाद(DHANBAD) : कलियुग नहीं, घोर कलियुग कहिये! बेटा-बेटी, नाती-पोता के रहते हुए बुजुर्ग महिला आश्रय ढूंढ रही है. तारीफ करनी होगी, धनबाद के SNMMCH के डॉक्टरों की, जिन्होंने पहल कर महिला का ऑपरेशन किया. उसकी कमर की हड्डी को ठीक किया. उसके बाद भी घर-परिवार वाले उसे ले जाने को तैयार नहीं है. अब वह महिला धनबाद के SNMMCH के लावारिस वार्ड में आश्रय पाएगी. ऐसी बात नहीं है कि उस महिला के परिवार में कोई सदस्य नहीं है. परिवार भरा पूरा है, फिर भी उसे देखने वाला कोई नहीं है. महिला की कहानी भी पीड़ा दायक है. समाज के चहरे को बेनकाब करने वाली है. बेटा, पोता सहित भरा पूरा परिवार के रहते अगर बीमार बुजुर्ग महिला बोझ बन जाए, तो इसे आप क्या कहेंगे.
ऐसे नाती-पोता, बेटा -बेटी के रहने का क्या फ़ायदा. बुजुर्ग सावित्री देवी को घर वालों ने महीनों पहले अस्पताल के ओपीडी में छोड़कर भाग गए थे. सावित्री की कमर में फ्रैक्चर था. चीखती-चिल्लाती महिला पर जब कर्मचारियों की नजर गई, तो महिला का हाल-चाल लिया. फिर अस्पताल के ओपीडी में डॉक्टर से जांच करा कर ऑर्थो वार्ड में भर्ती करा दिया. लेकिन सवाल था कि महिला का इलाज कैसे हो, ऑपरेशन करने के पहले नो ऑब्जेक्शन कौन देगा. खैर, उसका इलाज भी हुआ और ऑपरेशन भी हुआ. अब सावित्री पूरी तरह से स्वस्थ है, लेकिन घर वाले उसे ले नहीं जा रहे है.
यह अलग बात है कि धनबाद के SNMMCH में सावित्री कोई अकेली महिला नहीं है. सावित्री जैसी कई बुजुर्ग महिला भी पीड़ा झेल रही है. परिवार वाले इन महिलाओं को भी अस्पताल में छोड़कर गए, फिर देखते नहीं आये. इधर ऑर्थो डिपार्मेंट में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ने से डॉक्टर भी परेशान है कि नए मरीजों को कहां भर्ती करे. सावित्री को अब अस्पताल के लावारिस वार्ड में शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है. सावित्री का घर धनबाद के तेलीपाड़ा में है. डालसा के हस्तक्षेप पर पुत्र एक-दो दिन अस्पताल आया और सावित्री का हाल लेकर चला गया. सावित्री का ऑपरेशन तो हो गया,अब डिस्चार्ज करने की बारी आई तो अस्पताल मैनेजमेंट पसोपेश में पड़ गया है. आखिर, मरीज को लेकर जाएगा कौन. चिकित्सकों ने वृद्ध आश्रम से संपर्क किया तो वह भी टालमटोल करने लगे. तब जाकर लावारिश वार्ड में शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है.
यह अभागी मां अपनी कोख पर रोए कि समाज में बुजुर्गों के तिरस्कार पर आंसू बहाये. कहा जाता है कि बेटे की पीड़ा एक मां समझ सकती है. समझती भी है. बच्चे जब बड़े होते हैं, जब बुजुर्गों को उनके सहारे की जरूरत होती है तो उन्हें बेसहारा छोड़कर निश्चित हो जाते हैं. अगर आप किसी ओल्ड एज होम पहुंच जाइए, तो ऐसी ऐसी कहानी सुनने को मिलेगी, जो दिल को दहला देगी. सोचने पर मजबूर कर देगी कि क्या इसी के लिए एक मां ने 9 महीने का कष्ट झेल कर बेटा या बेटी को पैदा किया. उसके बाद भी कितना कष्ट झेल कर बच्चों को बड़ा किया. पढ़ा-लिखा कर काम धंधे लायक बनाया और जब उस मां को बेटे की जरूरत हुई तो बेटा-बेटी ने उसे छोड़ दिया.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो