धनबाद(DHANBAD): भारत को किंग को लिमिटेड का इस वित्तीय वर्ष में उत्पादन लक्ष्य 41 मिलियन टन का है. अभी तक जो प्रोडक्शन की रफ्तार है, उसे उम्मीद की जाती है कि कंपनी उत्पादन लक्ष्य के आसपास पहुंच जाएगी. लेकिन तरीके पर सवाल पहले भी किये जाते थे ,आज भी किये जाते है. पिछले 2 सालों से कंपनी मुनाफे में है लेकिन कोरोना और उसके पहले के नुकसान की भरपाई के लिए संघर्ष जारी है. कंपनी का भी उत्पादन तरीका बिल्कुल बदल गया है. 90% या उससे भी अधिक उत्पादन आउटसोर्स के जरिए हो रहा है. आउटसोर्स में जिस तरह से कोयले की कटाई हो रही है, वह बिल्कुल वैज्ञानिक अथवा सिस्टमैटिक नहीं है. कोयला कंपनियां अपनी देखरेख में ही आउटसोर्स कंपनियों से कोयले की कटाई करा रही है. लेकिन कोयला उत्खनन क्षेत्र का भविष्य क्या होगा, इस पर बहुत ध्यान केंद्रित नहीं किया जा रहा है.
कोयला रिज़र्व पर असर का आकलन नहीं होता
कोयला निकालने के लिए कितने कोयला रिज़र्व को तहस नहस किया जा रहा है. इसका भी आंकलन नहीं किया जा रहा है. जिस तरह से कोयले का उत्पादन पिछले दो दशक से हो रहा है, उससे इलाके की भौगोलिक स्थिति भी बिगड़ गई है. हो सकता है कि कोयला उत्पादक कंपनी को तत्काल लाभ मिल रहा हो, लेकिन भविष्य में परेशानी बढ़ेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है. राष्ट्रीयकरण के पहले जिस ढंग से कोयले का उत्पादन होता था, लगभग उसी ढंग से बिना किसी योजना, प्लानिंग के कोयला निकाला जा रहा है.
रेगुलर मजदूरों की संख्या घटती जा रही है
कंपनी के रेगुलर मजदूरों की संख्या घटती जा रही है, नई बहाली नहीं हो रही है और छोटे-छोटे पैच आउटसोर्स कंपनियों को दिया जा रहा है. आउटसोर्स कंपनियां भी एनआईटी के नियमों का पालन नहीं करती. इस पर कई बार सवाल होते रहे है. आउट सोर्स कंपनियों को तो सिर्फ अधिक से अधिक कोयला निकालने से मतलब होता है. भूमिगत खदान तो लगभग बंद हो गई है. मुनीडीह की बात अगर छोड़ दी जाए तो गिनी चुनी, एक -दो भूमिगत खदानें ही चल रही है. हालांकि चार भूमिगत खदानों को चलाने के लिए अभी हाल ही में बीसीसीएल ने इकरारनामा किया है, लेकिन प्राइवेट कंपनियां उत्पादन चालू करती है अथवा नहीं, यह देखने वाली बात होगी. धनबाद कोयलांचल में कोकिंग और नॉन कोकिंग कोल दोनों ही उपलब्ध है. कोकिंग कोल् का ग्रेड काफी उत्तम माना जाता है. ऐसे में अगर बेढंगे तरीके से कोयला खनन से राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान हो रहा है तो इसका भी आकलन होना चाहिए. निजी कंपनियों पर यदि लगाम नहीं लगाया गया तो इसका असर भविष्य में तो खराब पड़ेगा ही.
उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा कोयला चोर उठा ले जाते हैं
आउटसोर्सिंग कंपनियों से उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा कोयला चोर भी उठा ले जाते है. आउटसोर्सिंग कंपनियों कोयला चोरों के प्रवेश को वर्जित करने के लिए लगातार बैठकें होती है, नियम बनते हैं, टीम बनाई जाती है लेकिन कोयला चोरी रुकती नहीं है. कोयला चोरी रोकने का जब भी प्रयास होता है, हंगामा हो जाता है. अभी बुधवार की देर शाम को ही वासुदेवपु इलाके में कोयला चोरों को रोकने पर पत्थरबाजी कर कर्मियों को घायल कर दिया गया. यह केवल वासुदेवपुर कोलियरी का मामला नहीं है. हर जगह इसी तरह कोयला चोर उत्पात मचा रहे है. मतलब आज तो उत्पादन हो रहा है, तो कंपनी की पीठ थपथपाई जा रही है लेकिन अभी का मुनाफा, भविष्य में कितना नुकसान दे सकता है, इसकी भी चर्चा शुरू हो गई है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो