धनबाद(DHANBAD) | धनबाद लोकसभा का चुनाव इस बार सियासी मुकाबले को लेकर रोचक हो गया है. रोचक इसलिए भी हो गया है कि धनबाद लोकसभा का चुनाव अभी भी खुला हुआ है. वोटर भी सीधे तौर पर कुछ बोलने से परहेज कर रहे है. यह जरूर कह रहे हैं की समस्याएं बहुत है. चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी इलाके में आते नहीं है. बावजूद इसके प्रत्याशी जोर लगाए हुए है. जातीय संगठन सहित सामाजिक संगठनों को अपने पक्ष में करने की जोर आजमाइश तेज हो गई है. आज 17 मई है ,23 मई को चुनाव प्रचार का अंतिम दिन होगा. मतलब अब वक्त बहुत कम रह गया है और इस कम वक्त में ही प्रत्याशियों को जोर लगाना है. भाजपा ने बाघमारा के विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने बेरमो विधायक की पत्नी अनुपमा सिंह को उम्मीदवार बनाया है. झारखंड में भाजपा और आजसू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो कांग्रेस के समर्थन में झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद है. जातियों को गोलबंद करने के लिए पूर्व सांसद पप्पू यादव ने भी धनबाद का दौरा किया था और अभी भी अन्य कई लोगों का दौरा जारी है.
वोटरों का मिजाज पढ़ना हो गया है कठिन
यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा के कुछ विधानसभा क्षेत्र में वोटरों का मिजाज पढ़ने की कोशिश की गई तो कोई साफ सुथरी लकीर कहीं दिखाई नहीं पड़ी. धनबाद कोयला राजधानी है और यहां की राजनीति कोयले पर ही चमकती है. झक झक खादी की क्रीच भी कोयल पर ही निर्भर कराती है. चमचमाती गाडियां भी कोयले के पैसे से ही दौड़ती है. धनबाद लोकसभा में घात- प्रतिघात का खतरा भी है. आज ही धनबाद लोकसभा से टिकट के दावेदार ददई दुबे ने गढ़वा में कह दिया है कि झारखंड में इंडिया गठबंधन को एक भी सीट नहीं मिलेगी. लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस से टिकट के दावेदार झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जलेश्वर महतो एवं झारखंड पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष और वरीय कांग्रेस नेता अशोक कुमार सिंह नाराजगी त्याग कर अनुपमा सिंह के पक्ष में काम को तेज कर दिया है. इधर, भाजपा में भी भितरघात के खतरे को संभालने की कोशिश की गई है. लेकिन यह कितना संभला है, यह कहना बड़ा मुश्किल है. धनबाद लोकसभा की कुर्सी धनबाद, झरिया और बोकारो विधानसभा होकर जाती है. एक आकलन के अनुसार धनबाद लोकसभा के 40% वोटर ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं जबकि 60% वोटर शहरी क्षेत्र से आते है.
ग्रामीण क्षेत्र में झामुमो के भी वोटर हैं तो भाजपा के भी
ग्रामीण क्षेत्र में झारखंड मुक्ति मोर्चा के भी वोटर हैं तो भाजपा के भी वोटर है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के वोट के बंटवारे से इनकार नहीं किया जा सकता. इसी तरह शहरी क्षेत्र के वोट में भी बंटवारा संभव है. शहरी क्षेत्र के वोटर किसी एक दल से बंधे हुए नहीं है. सबकी अपनी-आप की राय है. यह बात तो सच है कि वोटो का ट्रांसफर किसी के भी पक्ष में कराना किसी भी नेता के लिए फिलहाल चुनौती बन गया है. धनबाद लोकसभा से भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे है. भाजपा प्रत्याशी ढुल्लू महतो तो अभी तक विधानसभा का ही चुनाव लड़ पाए थे जबकि अनुपमा सिंह पहली बार घर की दहलीज लांघ कर सीधे लोकसभा का चुनाव लड़ रही है. जातीय समीकरण को भी साधने की कोशिश चल रही है. कुल मिलकर कहा जा सकता है कि धनबाद लोकसभा का चुनाव अभी भी पूरी तरह से खुला हुआ है. और यही खुलापन प्रत्याशिओं और उनके समर्थकों को किसी नतीजे पर नहीं पहुंचने दे रहा है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो