धनबाद(DHANBAD): कोयला राजधानी के नाम से प्रसिद्ध धनबाद एक ऐसा जिला है, जो पहले बंगाल में था, फिर बिहार में आया और अब झारखंड में है. 24 साल से यह जिला झारखंड में है. धनबाद को अब तक 10 सांसद मिल चुके हैं. 2024 के चुनाव परिणाम आने के बाद 11वां सांसद भी मिल जाएगा. लेकिन 2024 का चुनाव भी संभवत धनबाद में पुराने मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा. जनता के मन में इन्हीं मुद्दों को लेकर सवाल होंगे. प्रत्याशियों को इसका सामना भी करना पड़ेगा. धनबाद में विकास के मुद्दे इस बार भी हावी रह सकते हैं.
धनबाद में समस्याएं एक नहीं है, समस्याएं अनंत हैं
धनबाद को सांसद तो 10 मिले, दो राज्यों के बाद तीसरी राज्य में फिलहाल धनबाद है ,लेकिन समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं. चुनाव दर चुनाव बीतता चला गया. लेकिन समस्याएं वही की वही बनी रही. यह अलग बात है कि एक बार फिर उम्मीदवार समस्याओं के निदान का वादा करेंगे ,लेकिन परेशानियां खत्म होगी अथवा नहीं, यह कहना मुश्किल है. समस्याएं एक नहीं है, समस्याएं अनंत हैं .सड़क की समस्या, पानी की समस्या, बिजली की समस्या, प्रदूषण की समस्या, पलायन की समस्या, ट्रैफिक की समस्या, चिकित्सा की समस्या, सिंचाई की समस्या यथावत बनी हुई हैं. शहर से गांव तक पानी की समस्या मुंह बाए खड़ी है. शहरी क्षेत्र में 2015 से 700 करोड रुपए की योजना चल रही है. लेकिन योजना का लाभ नहीं मिल पाया. हर गर्मी में झरिया, कतरास, निरसा,भूली इलाके में पानी संकट की समस्या बहुत गंभीर हो जाती है. शहर की मुख्य सड़कों को तो हाल, फिलहाल में बनाया गया, लेकिन मोहल्ले की सड़कों का हाल बेहाल है. नगर निगम, पथ निर्माण विभाग, विशेष प्रमंडल द्वारा सड़क बनाई जाती हैं. कई सड़कों का हाल बहुत बुरा है.
देखिए क्या क्या है समस्या
प्रदूषण की बात करिए तो 2016 में धनबाद को देश का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया था. लेकिन अभी भी धनबाद की हवा स्वच्छ नहीं हो पाई है. धनबाद नगर निगम को हवा को ठीक करने की जिम्मेवारी मिली है. झरिया, कतरास की हवा में प्रदूषण इतना अधिक है कि वहां रहने वाले लोग और असाध्य बीमारियों की चपेट में जा रहे हैं. धनबाद एक कृषि प्रधान जिला है, धनबाद लोकसभा के तीन विधानसभा क्षेत्र के लोग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर हैं. किसानों के समक्ष सिंचाई सबसे बड़ी समस्या है. यहां की खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है. धनबाद जिले में मात्र 10% खेतों में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है. धनबाद के कई इलाकों में फ्लाई ओवर बनाने की मांग पिछले 20 वर्षों से की जा रही है .कई जनप्रतिनिधि आए और गए. कई सरकार बदल गई. लेकिन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया. नतीजा यह है कि 10 मिनट की यात्रा लोगों को घंटे में पूरी करनी पड़ रही है. पलायन की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा है. धनबाद के टुंडी, सिंदरी और चंदनकियारी से काफी संख्या में मजदूर हर साल नौकरी की तलाश में बाहर जाते हैं. लॉकडाउन के समय भारी संख्या में मजदूर दूसरे राज्यों से घर वापस लौटे थे. उस समय मजदूरों का कहना था कि उन्हें अगर अपने प्रदेश में नौकरी मिल जाए ,तो बाहर क्यों जाएंगे. एम्स तो देवघर चला गया, लेकिन धनबाद में चिकित्सा व्यवस्था में सुधार करने का कोई प्रयास नहीं किया गया.ट्रॉमा सेंटर की मांग तो बहुत पुरानी है. यह मांग आज भी उसी तरह बनी हुई है. धनबाद लोकसभा का अब तक 10 लोगों ने प्रतिनिधित्व किया. सबसे अधिक प्रतिनिधि भाजपा के ही रहे .प्रोफेसर रीता वर्मा चार बार सांसद रही, तो पशुपतिनाथ सिंह तीन बार सांसद रहे .कांग्रेस के भी उम्मीदवार यहां से सांसद रहे. लेकिन समस्याएं बनी रही. यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा सीट फिलहाल हॉट केक बन गया है. इस सीट की चर्चाएं दूर-दूर तक हो रही हैं. भाजपा ने तो यहां बाघमारा के विधायक ढुल्लू महतो को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. लेकिन इंडिया ब्लॉक की ओर से अभी चुप्पी है. लेकिन 2024 के चुनाव में प्रत्याशियों को इन मुद्दों का सामना करना पड़ेगा. उन्हें वोटरों को जवाब देना पड़ेगा. भरोसा देना पड़ेगा. यह अलग बात है कि आश्वासन और भरोसा पूरे होंगे अथवा नहीं, यह वक्त बताएगा.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो