धनबाद(DHANBAD): धनबाद लोकसभा का चुनाव चर्चे में था, है और लगता है कि आगे इसकी चर्चा और तेज होगी. उम्मीदवार चाहे बीजेपी का हो अथवा कांग्रेस का, चर्चा दोनों की हो रही है. दोनों पार्टियों के प्रत्याशी दावा कर रहे हैं कि वह धनबाद के विकास के लिए चुनाव लड़ रहे है. लेकिन इन दावों में कभी कुछ ऐसी बातें निकल जा रही है, जिसे लेकर चर्चाएं तेज हो जाती है. वैसे तो धनबाद लोकसभा सीट झारखंड की सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. भाजपा इसे सेफ सीट मानती है. लेकिन 2024 के चुनाव में तीन बार के सांसद रहे पशुपतिनाथ सिंह का टिकट काटकर भाजपा ने ओबीसी कार्ड खेला है. निश्चित रूप से किसी न किसी गुणा -भाग के तहत ऐसा किया गया होगा. क्योंकि टिकट के दावेदारों में यहां के कई विधायक भी शामिल थे. उन्हें निराशा हाथ लगी और टिकट बाघमारा विधायक के हाथ में मिली.
भाजपा उम्मीदवार के कथन को लेकर आरोप -प्रत्यारोप
अभी हाल ही में भाजपा प्रत्याशी ने एक सभा में कह दिया कि पूर्व एस एसपी के खिलाफ सिर्फ ढुल्लू महतो ही है, जो रणधीर वर्मा चौक पर उनको चुनौती दी थी. उसे समय कोई नेता नहीं बोल रहे थे. इसका मतलब था कि या तो वह डरते थे या लेते थे. लेकिन ढुल्लू महतो ना किसी से एक पैसा लेता है और ना किसी से डरता है. इस बात का भाजपा के सांसद और विधायकों में तीखी प्रतिक्रिया भी हुई. निवर्तमान सांसद का यह कहना कि वह भाजपा के साथ हैं, ढुल्लू महतो के साथ नहीं. आखिर इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है. यह बयान उनका ढुल्लू महतो के कथन के बाद आया है. उन्होंने यह भी कहा है कि पहले लोग कहते थे कि पशुपतिनाथ सिंह ने कोई काम नहीं किया है, लेकिन अब सभी यह मानने लगे हैं कि वह बेहतर सांसद साबित हुए.
धनबाद की राजनीति की तासीर ही अलग है
यह अलग बात है कि धनबाद में भाजपा की राजनीति की अलग ढंग और मिजाज है. वैसे तो धनबाद की मिट्टी की ही अलग खुशबू है. यह भी दिख रहा है कि भाजपा के बड़े- छोटे नेता चाहे जितना भी धनबाद का दौरा करें ,लेकिन कार्यकर्ताओं का एक दल शिथिल है. कांग्रेस के साथ भी कमोबेश यही स्थिति है. कांग्रेस में भी जो दिख रहा है, वह बहुत हद तक सच नहीं है. यह बात अलग है कि धनबाद लोकसभा से कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के चयन को लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है. अगर धनबाद सीट को बीजेपी बचा लेती है तब तो सबकी बल्ले बल्ले रहेगी अन्यथा कुछ को "कट टू साइज" का सामना करना पड़ सकता है. इसी तरह की स्थिति कांग्रेस के साथ भी है. कांग्रेस उम्मीदवार पर तो जिला और प्रखंड समितियों को "बाईपास" करने के आरोप लग रहे है.
भाजपा से सीट छिनना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती
भाजपा के हाथों से धन्यबद सीट को छिनना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. इस चुनौती के लिए अपने-अपने ढंग से घेराबंदी की जा रही है. घेराबंदी में कौन कितना सफल होगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा. यह बात भी सच है कि अब किसी भी दल में कार्यकर्ताओं की संख्या कम गई है. पहले भूखे पेट भी कार्यकर्ता किसी के लिए जी जान से जुट जाते थे. वह सब अब नहीं दिख रहा है. यह सब भाजपा के साथ है तो कांग्रेस के भी सेवा दल के कार्यकर्ता अब दिखते नहीं है. विशेष आयोजनों पर भले ही गांधी टोपी पहने लोग दिख जाए, लेकिन सेवा दल की सक्रियता पूरे देश में कम गई है. धनबाद में सामाजिक और जातीय संगठन भी काम करते है. अब भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार उन्हें अपने पक्ष में करने का प्रयास तेज कर दिए है. देखना है कि कौन किसे कितना दिल कि दिमाग से समर्थन देता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो