धनबाद(DHANBAD): पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र से जो पैसे चलता है, चवन्नी भी लाभुकों तक नहीं पहुंचता. बात में थम तो थी. सरकार की तो योजनाएं आकर्षक बनती है लेकिन अमलीजामा पहनाने वाले ईमानदारी नहीं दिखलाते. जिम्मेवारी भी तय नहीं होती, इसलिए भी अधिकारी बेफिक्र रहते हैं. कोयलांचल की बात करें तो यहां की हालत भी कुछ वैसी ही है. धनबाद में अभी ई-रिक्शा के स्टैंड को लेकर विवाद चल ही रहा था कि मंगलवार को एक नया मामला सामने आया. यह मामला सीधे तौर पर नगर निगम से जुड़ा है. पीड़ित लोगों की बातों पर भरोसा करें तो झारखंड सरकार की गरिमा योजना के अंतर्गत धनबाद नगर निगम को जितनी ई-रिक्शा बांटनी थी, नगर निगम ने उसका वितरण नहीं किया. गरिमा योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2016-17 में नगर निगम को 125 ई-रिक्शा बांटने की जिम्मेवारी मिली थी लेकिन केवल दो दर्जन ई-रिक्शा बांटकर नगर निगम निश्चिंत हो गया.
पांच सालों से काट रहे हैं निगम का चक्कर
सूची के हिसाब से लाभुक ई-रिक्शा लेने के लिए निगम का चक्कर पांच सालों से काट रहे हैं लेकिन आज तक उनसे कोई भरमुंह बात तक नहीं करता. कई बार झारखंड रिक्शा मजदूर संघ के बैनर तले विरोध किया गया, धनबाद के उपायुक्त से लिखित शिकायत भी की गई. बावजूद ई-रिक्शा नहीं मिली. लाभुकों का कहना है कि निगम का चक्कर काटते-काटते वह परेशान हो गए है. अब तो भुखमरी के कगार पर पहुंच गए है. ई-रिक्शा मांगने वालों ने मंगलवार को कहा कि निगम कार्यालय गए थे, लेकिन नगर आयुक्त से बात नहीं हुई. वह कार्यालय में नहीं थे. उसके बाद उन्होंने मीडिया के समक्ष अपनी फरियाद की. यूनियन राजेंद्र सिंह ने बताया कि 125 ई-रिक्शा का आवंटन हुआ था लेकिन केवल 24 को दिया गया. मुख्यमंत्री तक उन लोगों ने फरियाद की लेकिन सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला. उन्हें मिलेगा या नहीं, इसकी भी जानकारी नहीं दी जा रही है. योजना के तहत अगर ई-रिक्शा की खरीद हुई होगी तो फिर ई-रिक्शा तो सड ही रही होगी. सरकारी योजनाओं का यह हाल देखकर व्यवस्था के कथनी और करनी में फर्क का आकलन किया जा सकता है.
रिपोर्ट : शाम्भवी सिंह, धनबाद