धनबाद(DHANBAD) : धनबाद के कारोबारी पहले एक आवाज पर जुट जाते थे. एकमत रहते थे, लेकिन आज अपने में लड़ रहे है. दांवपेंच का खेल खेल रहे हैं. पुराना बाजार में दो चैंबरों के बीच के विवाद में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है. पुराना बाजार चेंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा दो पूर्व अध्यक्ष सहित तीन सदस्यों को 6 साल के लिए निष्कासित करने की घोषणा के बाद यह सब एक बार फिर शुरू हो गया है. फेडरेशन अध्यक्ष चेतन गोयनका की प्रतिष्ठा दांव पर है. सोमवार को चेंबर ऑफ कॉमर्स, पुराना बाजार ने आपात बैठक बुलाई. कई सवाल उठाये गए.
निष्काशन को असंवैधानिक बता रहा नाराज गुट
कार्रवाई को असंवैधानिक बताया गया. कहा गया कि पुराना बाजार चेंबर ऑफ कॉमर्स का 23-25 के कार्यकाल के लिए हुआ चुनाव पूरी तरह से चेंबर बायलॉज के विरुद्ध था. यह भी कहा गया कि जब हम लोगों ने अपना अलग संगठन बना लिया है, तो निष्कासन समझ से परे है. यह सारा जोड़ घटाव पद पर बने रहने के लिए है. बता दें कि पुराना बाजार चैंबर के लिए एक समानांतर कमेटी गठित की गई है. धनबाद में चेंबर का गठन के पीछे की कहानी भी रोचक है. रंगदारी की घटना ने कारोबारियों को एक मंच पर आने को विवश किया था. लेकिन आज चेंबर में भी पावर और पद की लड़ाई शुरू हो गई है. बता दें कि धनबाद के कारोबारी 40-45 साल पहले एकजुट नहीं थे. परिस्थितियों ने उन्हें एकजुट कर दिया.
बैंकमोड़ की एक घटना ने सबको एक मंच पर ला दिया था
उस वक्त बैंकमोड़ ही धनबाद का बड़ा बाजार हुआ करता था. बदमाशों की करतूत से कारोबरी परेशान रहते थे. कपडे की एक दुकान में ऐसी घटना हुई कि कारोबारी एक प्लेटफॉर्म पर आ गए. उसके बाद बैंक मोड़ चेंबर ऑफ कॉमर्स का गठन हुआ. गठन में भी एक ऐसे "आजादशत्रु" की भूमिका रही, जिसका कारोबार से दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं था. फिर फेडरेशन ऑफ धनबाद जिला चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज बना. दरअसल 80 के दशक में बैंक मोड़ के कपड़े की दुकान में रंगदारी की घटना हुई थी. कहा तो यह जाता है कि बिहार के उस समय के एक मंत्री के आदमी सर्किट हाउस से निकलकर दुकान पहुंचे थे. कुछ कपड़े की खरीदारी की थी, लेकिन पैसे को लेकर विवाद हुआ और मारपीट की घटना हो गई. यह सब घटना भुवनेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ मास्टर साहब के सामने हुई. इस घटना ने मास्टर साहब को विचलित कर दिया. पेशे से टीचर होने के बावजूद वह दुकानदारों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया और इसमें सफल भी रहे. जब तक वह जीवित रहे, आजीवन अध्यक्ष रहे.
मास्टर साहब के निधन के बाद बदलते गए हालात
लेकिन उनके निधन के बाद परिस्थितियों में बदलाव आया. गुटबाजी शुरू हुई, वोटिंग से चुनाव होने लगे. फिलहाल तो फेडरेशन ऑफ धनबाद जिला चैंबर आफ कमर्स एंड इंडस्ट्रीज में 58 चैंबर सदस्य है. मास्टर साहब सरकारी शिक्षक थे, लेकिन बैंक मोड की घटना ने उन्हें व्यवसाईयों के बीच आने का न्योता दिया. व्यवसायी भी उनकी बातों पर सहमत हुए. यह बात अलग है कि भुवनेश्वर प्रसाद सिंह की बातों को काटने का साहस कोई भी कारोबारी नहीं करता था. उनका व्यवहार भी कुछ ऐसा ही था. दूध का दूध और पानी का पानी करने में विलंब नहीं करते थे. उनके निधन के बाद चेंबर के कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए गए. उसके बाद पहली बार हुए चुनाव में फेडरेशन के अध्यक्ष मोती लाल अग्रवाल चुने गए. यह बात भी सच है कि फिलहाल फेडरेशन ऑफ धनबाद जिला चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के सदस्यों की हालत "कानी गाय की अलग बथान" जैसी हो गई है. कारोबारियों में एकता नहीं है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो