धनबाद(DHANBAD): आलू ने धमाल मचा दिया है.सरकार की किरकिरी भी हो रही है. बंगाल सरकार झारखंड को आलू देने को तैयार नहीं है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि जरूरत पड़ी तो आलू के मुद्दे पर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री से खुद बात करेंगे. इधर, बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि आलू उत्पादन में पश्चिम बंगाल देश में दूसरे स्थान पर है. फिर भी मुनाफाखोरी की वजह से बंगाल में आलू की किल्लत है. उन्होंने साफ कहा है कि आलू, प्याज दूसरे राज्यों में भेजे जाने से पहले बंगाल को प्राथमिकता दी जाए. उन्होंने टास्क फोर्स को निर्देश दिया है कि वह दूसरे राज्यों में भेजे जा रहे आलू पर नजर रखें.
झारखंड में धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश और पंजाब से आलू की गाड़ियां पहुंच रही
इधर, बंगाल के व्यापारी यह मांग कर रहे हैं कि दूसरे राज्यों में आलू भेजने की अनुमति दी जाए. वैसे सातवें दिन भी पश्चिम बंगाल और झारखंड के बॉर्डर पर आलू लदे ट्रकों को झारखंड में प्रवेश नहीं करने दिया गया. वैसे, जानकारी मिली है कि झारखंड में धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश और पंजाब से आलू की गाड़ियां पहुंच रही हैं. इस वजह से स्थिति सामान्य हो सकती है और बंगाल की निर्भरता भी टूट सकती है. कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश और पंजाब से ढुलाई खर्च कुछ अधिक जरूर है. लेकिन वहां बंगाल की अपेक्षा आलू सस्ता उपलब्ध है. इस वजह से दाम में बहुत असर नहीं होने जा रहा है. ऐसी बात नहीं है कि झारखंड की मिट्टी में आलू का उत्पादन नहीं हो सकता. झारखंड के हजारीबाग का आलू उच्च गुणवत्ता का माना जाता है. झारखंड के लोग आलू के उत्पादन से परहेज इसलिए करते हैं कि यहां कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है. किसानों को आलू उत्पादन के साथ ही उनकी बिक्री कर देनी होती है. इस वजह से भी लोग आलू के उत्पादन में रुचि नहीं रखते हैं.
आलू को लेकर आए संकट के बाद अगर झारखंड में कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की दिशा में सरकार सक्रिय हो जाए ,तो झारखंड खुद का आलू उत्पादन करने में सक्षम है. वैसे भी खेती को लेकर झारखंड में किसान खुश नहीं है. किसानों के पास जमीन तो है, हुनर भी है. लेकिन साधन नहीं है. नतीजा होता है की जमीन का मालिक होते हुए भी किसान संकट में घिरे होते हैं. घोषणाएं तो बहुत की जाती हैं, लेकिन अमली जामा नहीं पहनाया जाता है.
आलू को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अपने निर्णय पर अडिग
आलू को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अपने निर्णय पर अडिग है, तो झारखंड के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि जरूरत पड़ी तो वह खुद बात करेंगे. 2024 के विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को झारखंड के लोगों ने प्रचंड बहुमत दिया है. उम्मीद भी अधिक है. लेकिन चुनाव के बाद लोगों के पॉकेट पर दबाव बढ़ने के आसार दिखने लगे हैं. बिजली बिल को एक उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है. सब कुछ अगर प्रस्ताव से हुआ तो बिजली उपभोक्ताओं को ढाई रुपए प्रति यूनिट अधिक बिजली का भुगतान करना पड़ सकता है. देखना है कि झारखंड की जनता को राहत देने के लिए सरकार आगे कौन-कौन सी कदम उठाती है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो