रांची(RANCHI): भगवान बिरसा मुंडा का जन्म दिवस बड़े ही धूम धाम से झारखंड में मनाया जाता है. इसी दिन अलग राज्य की भी स्थापना हुई. झारखंड में सभी की राजनीति भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर चलती है. कई योजनाएं भी इनके नाम पर संचालित की जा रही है. इनके जन्म दिन पर भगवान बिरसा मुंडा के जन्म स्थली पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इसमें मुख्य अतिथि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शामिल होने आ रही है.
इन सब के बीच जब THe news post की टीम राजधानी रांची से 80 किलोमीटर दूर खूंटी जिले के उलिहातू पहुंची. उलिहातू गांव घने जंगल और पहाड़ों से घिरा गांव है. इसी गांव में भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. भगवान बिरसा मुंडा ने इसी गांव से अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान की शुरुआत की थी. अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को संगठित कर लड़ाई छेड़ी थी. लेकिन आज इनके वंशज एक-एक रुपये को मोहताज है.
The News Post भगवान बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा के घर पहुंची. उलिहातू चौक से पास ही उनका घर है. घर के दरवाजे में एक ग्रील लगी हुई है. इस ग्रील से हम अंदर घर में घुसे तो सामने कुछ बाल्टी रखी हुई मिली, उस बाल्टी में रस्सी बंधी हुई थी. फिर हम और आगे बढ़े तो सामने एक और छोटा सा कमरा(रूम)दिखाई दिया. इसमें एक बकरी और मुर्गी थी. वहीं पास में दो तसला और टांगी कुदाली रखी थी.
इससे हम थोड़ा और अंदर गए तो सामने एक पानी की टंकी रखी हुई मिली. उसमें एक नल भी था. लेकिन पानी नहीं. वहीं पास में भगवान बिरसा मुंडा के पोता सुखराम मुंडा बैठे हुए थे. सुखराम मुंडा की उम्र 65 वर्ष से अधिक है. सुखराम अब ठीक से बोल नहीं पाते. लेकिन जब उनसे हमने बात की तो सरकारी सारे वादे और दावे खोखले साबित हो गए.
सुखराम मुंडा के पास पक्का घर तक नहीं है. वह टीना और तिरपाल लगाकर गुजर बसर करते हैं. सुखराम मुंडा ने बताया कि उनके पास जमीन नहीं है कि वह प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेकर अपना पक्का घर बना सके. सुखराम मुंडा ने बताया कि उन्हें बहुत परेशानी है, लेकिन कर भी क्या सकते हैं. अब वह बूढ़े हो गए हैं. उन्हें पीने का पानी काफी दूर कुंआ से लाना पड़ता है. घर में चापा नल नहीं है.
सिर्फ नेता और अधिकारी 15 नवम्बर को गांव पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि उनके दादा पर उन्हें गर्व है कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले लड़ाई शुरू की थी. जो सम्मान उन्हें मिल रहा है इसकी वजह उनके दादा हैं. वह इससे ही खुश हैं.
सुखराम मुंडा ने बताया कि उनके घर पानी दो दिन पहले आया था. घर से दूर मौजूद चुंआ से पानी लेकर आये थे. उन्होंने बताया कि घर में पीने के पानी का कोई साधन नहीं है. वह पानी के लिए दूर जाते हैं तो बाल्टी में पानी लेकर आते हैं. एक बार तो सुखराम मुंडा पानी लेकर आ रहे थे तभी वह गिर गए. जिससे उन्हें चोट भी आयी थी, जिसका दर्द आज भी होता है.
सुखराम मुंडा के घर के आंगन में प्लास्टिक टंगी हुई दिखी. इस पर जब उनसे पूछा तो उन्होने बताया कि बरसात के दिनों में पानी और गर्मी में धूप से बचने के लिए प्लास्टिक लगाए हैं. उनका घर अल्बेस्टर का है, जिसकी खिड़की में होल्डिंग लगा कर खिड़की को बंद किया गया है. उनके घर की हालत भी खराब है. सुखराम मुंडा ने कहा कि अगर सरकार एक पक्का घर दिलवा दे तो ठीक रहेगा. सुखराम मुंडा के घर में जंगल से लाई हुई लकड़ी दिखी. इस पर सुखराम ने बताया कि वह जंगल से काट कर लाते हैं और इस पर ही खाना बनता है. उन्होंने बताया कि अगर किसी दिन लकड़ी काटने नहीं गए तो उस दिन घर में चूल्हा भी नहीं जलेगा.
जब हमने उनसे पूछा कि गैस चूल्हा है कि नहीं तब उन्होंने बताया कि गैस मिला था लेकिन अब कोई काम का नहीं है. उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वह गैस भरवा सके. अब इनकी बदहाली का बस इतने से ही पता चल गया कि ये किस तरह से जीवन बिता रहे है. वहीं पास में सुखराम मुंडा की पत्नी बैठी थी. उनकी पत्नी कुछ भी बोल नहीं रही थी. जब उनसे बात करना चाहा तो उनके पति ने बताया कि वह हिंदी नहीं जानती हैं.