देवघर(DEOGHAR):मासव्यापी राजकीय श्रावणी मेला अब अपने अंतिम पड़ाव पर है यानी आज से 9 दिन ही बच गया है, लेकिन कांवरिया पथ पर बोल-बम और हर-हर महादेव का जयकारा लगाते बाबाधाम पहुंचने वाले कांवरिया के उत्साह में अभी भी कोई कमी नहीं आई है.बाबा का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालू अपने सामर्थ के अनुसार नंगे पाव बाबाधाम पहुंचते है. कोई कांधा पर कांवर लेकर तो कोई पैदल तो कोई हाथ में जलपात्र लेकर बाबाधाम पहुचते है और बाबा पर जलार्पण कर मनोकामना प्राप्त करते है,लेकिन इन सभी बमो से अलग इन दिनों कांवरिया पथ पर दिखाई दे रहे है, ऐसे दर्जनो बम जो अपने हठयोग का उदाहरण देते हुए दंडवत बाबा के दरबार में हाजरी लगाने पहुंच रहे है.इनके इसी हठयोग पर इन सभी का नाम ही दंडी बम पड़ गया है.
कोई मनोकामना लेकर तो कोई मनोकामना पूर्ण होने पर दंड यात्रा कर रहे है
कांवर में गंगा जल भर कर नंगे पांव गंगाघाम से बाबाधाम की कष्टप्रद यात्रा करने की अति प्राचीन परंपरा है.कहते है कि तप से सिद्धि की प्राप्ति होती है.भक्त कठोर तप कर अपने आराध्य बाबा बैद्यनाथ को प्रसन्न करने की कोशिश करते है.कोई कांधे पर कांवर लेकर नंगे पांव बाबा धाम पहुंचते है.कोई डाक बम बन कर दौड़ते हुए जलपात्र लेकर पहुंचते है.जबकि कुछ तो एक कदम और आगे बढ़कर हठयोग का सहारा लेते हुए दंड देते बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते है.इस तरह दंड देते हुए 105 किलामीटर की कांवर यात्रा लगभग 30 से चालिस दिनों में पूरी होती है,लेकिन बाबा के इन भक्तो की माने तो यह शक्ति उन्हे बाबा की अनुकंपा से मिलती है.
इस नियम के अनुसार यात्रा की जाती है पूरी
दंड देते हुए जल लेकर बाबाधाम की इस यात्रा के भी कई नियम है जिनका कड़ाई से इनके द्वारा पालन अवश्य किया जाता है.प्रत्येक दिन तीन से चार किलोमीटर की यात्रा इनके द्वारा तय की जाती है और पड़ाव पर पहुंच कर जमीन पर एक आकृति बनायी जाती है और पूरी श्रद्धा के साथ इस आकृति को नमन किया जाता है.उस खास दिन की यात्री की यह लक्ष्मण रेखा होती है अगले दिन फिर उसी जगह से उसी आकृति की पूजा कर आगे की यात्रा शुरु की जाती है.इतना ही नही दंड देते हुए एक दिन की यात्रा तय कर फिर पैदल वापस चल कर अपना जलपात्र इस पड़ाव तक लाते है.दंड देने वाले वैसे शिव भक्त है जो अपनी मनोकामना लिए आते है या फिर उनकी मनोकामना को बाबा पूर्ण कर देते है.
भोलेनाथ ही देते है दंडी बमों को शक्ति
आस्था और श्रद्धा से सामर्थ का सृजन होता है और यही इन दंडी शिव भक्त कांवरिया को दंड देते हुए जल लेकर बाबाधाम आने की शक्ति प्रदान करता है.दंडी बम भी मानते है की बाबा की अनुकंपा के बगैर यह कठिन यात्रा संभव नहीं है.इस कठिन यात्रा में इन्हें बहुत परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है लेकिन भोलेदानी कैसे अपने भक्तों की परेशानी हर लेते है ये दंड देने वाले शिव भक्तों को भी महसूस नहीं होता.तभी तो 105 किलोमीटर की कठिन यात्रा 30 से 40 दिन में ही संपन्न हो जाती है.
रिपोर्ट-रितुराज सिन्हा