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देवघर में इलेक्ट्रोल बांड सार्वजनिक करने की मांग लेकर कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन, आरोप लगाया कि एसबीआई की सांठगांठ से बीजेपी के पास है पूंजीपतियों का काला धन

देवघर में इलेक्ट्रोल बांड सार्वजनिक करने की मांग लेकर कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन, आरोप लगाया कि एसबीआई की सांठगांठ से बीजेपी के पास है पूंजीपतियों का काला धन

देवघर(DEOGHAR):सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर भी इलेक्ट्राल बांड एसबीआई द्वारा निर्धारित समय पर सार्वजनिक नहीं करने से साफ जाहिर होता है कि बीजेपी का सांठगांठ एसबीआई के साथ है.इसी साठ-गांठ के खिलाफ देवघर के बजरंगी चौक स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की बाजार शाखा के सामने कॉंग्रेस पार्टी द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया.प्रदर्शन में जिलाध्यक्ष उदय प्रकाश,जिला 20 सूत्री उपाध्यक्ष सहित बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता और नेता शामिल हुए.  

 बीजेपी नहीं चाहती की चुनाव से पहले इलेक्ट्रोल बांड सार्वजनिक हो-कांग्रेस

 सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्ट्रोल बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने में गलत ठहराते हुए इसे अवैध माना गया तथा सभी चंदादाता की सूची सार्वजनिक करने के लिए कोर्ट ने 6 मार्च का तय किया था.देवघर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी की सारे कारगुजारी का पता नहीं चले इसके लिए एसबीआई ने 30 जून यानि पांच माह का लम्बा समय मांगा जा रहा है.कांग्रेस ने कहा कि  लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कारगुजारी का पर्दाफाश नहीं हो सके और अपने को पाक-साफ दामन साबित करने वाली पार्टी बनी रहे, इसलिए इसे छिपाने के लिए एसबीआई बैंक पर दबाव बना कर समय सीमा बढ़ाने पर तुली है,लेकिन कांग्रेस का हरेक सिपाही इस चाल को जगजाहिर कर के रहेगी.कांग्रेस न्यायालय के इस फैसले का देशभर में काले धन के खिलाफ निर्णायक कदम के तौर पर व्यापक स्वागत किया गया.चुनावी बांड योजना की प्राथमिक लाभार्थी होने के नाते सत्तारूढ़ बीजेपी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद असुविधा का सामना करना पड़ रहा है.   

राजनीतिक दलों को सामूहिक रूप से 212,000 करोड़ रु से अधिक प्राप्त हुए

 2017 में चुनावी बांड योजना की शुरुआत के बाद से राजनीतिक दलों को सामूहिक रूप से 212,000 करोड़ रु से अधिक प्राप्त हुए. जिसमें अकेले भाजपा को 86,566.11 करोड़ प्राप्त हुआ है,जो कि कुल राशि का 55% है।देवघर कॉंग्रेस जिलाध्यक्ष ने कहा कि यह स्पष्ट है कि भाजपा दानदाताओं के बारे में जानकारी सार्वजनिक होने के बाद चुनिंदा कॉरपोरेट्स के साथ अपने संबंधों के संभावित जोखिम को लेकर चिंतित है. यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि मोदी सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक पर जानकारी साझा न करने का दबाव डाला है. चुनावी बांड की विवरण साझा करने में देरी संदिग्ध है.क्योंकि देश के सबसे बड़े और पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत बैंक को चुनावी बांड के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए पांच महीने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए.इससे यह पता चलता है कि एसबीआई का इस्तेमाल बी.जे.पी. की वित्तीय अनियमितताओं और काले धन के स्रोत को छिपाने के लिए किया जा रहा है। देश की जनता यह जान चुकी है कि किस तरह सरकारी एजेंसियों और संस्थानों पर दबाव डालकर सच्चाई को छुपाया जा रहा है.चंदा दाता की सूची जारी होने से आसन्न लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से सूपड़ा साफ हो जाएगा.यह डर सताने लगी है.  

रिपोर्ट-रितुराज सिन्हा

Published at:07 Mar 2024 03:41 PM (IST)
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