रांची(RANCHI): IAS अधिकारी नाम सुनते ही लोग सोचते है कि बड़े हकीम है, तेवर वाले होंगे, बड़ा बंगला, नौकर - चाकर फिर सुरक्षा में भारी भरकम पुलिस वाले और भी बहुत कुछ. खासतौर पर गरीब और लाचार लोगो के लिए बड़े साहब से मिलने का ख्वाब इन्ही बातो के सोच के साथ दब जाती है. साधारण सोच तो यही है की बड़े अधिकारी तो बड़े लोगों से मिलते है, गरीबों को तो सटने भी नहीं देते, लेकिन इन बातो से इतर झारखंड में एक ऐसा IAS अधिकारी है जो सच में दुसरो से एकदम अलग, साधारण, संवेदनशील जो दिखावे से दूर मानवीय मूल्यों की इज्जत करने वाला, पद और प्रतिष्ठा की गरिमा रखते हुए जरुरत मंदो खासतौर पर गरीब और लाचार के लिए हमेशा मदद को तत्पर किसी मसीहा से कम नहीं. कभी गरीबी को करीब से देखा, लाचारी को महसूस किया मेहनत और लगन के बाद ज़ब आईएएस अधिकारी बने तो पुराने दिनों को नहीं भुला. जी हाँ हम बात कर रहे है चतरा जिले के उपायुक्त और आईएएस अधिकारी रमेश घोलप की.
आईएएस से मिलने गढ़वा से पहुंची एक वृद्ध
दरअसल रमेश घोलप से मिलने एक वृद्ध दादी झारखंड मंत्रालय पहुंची.गढ़वा से 250 किलोमीटर दूर रांची पहुंच कर अपने साहब को खोजने लगी.खोजते खोजते वह झारखंड मंत्रालय पहुंच गई.जहां आखिर कार उनकी मुलाकात IAS अधिकारी रमेश घोलप से हो गई.इस वृद्ध की जान पहचान रमेश घोलप से गढ़वा में हुई थी.जब गढ़वा में रमेश घोलप, उपायुक्त थे और किसी काम से मिलने उनके दफ्तर गई थी . बाद में रमेश घोलप का तबादला रांची हो गया. फिर पिछले दिनों नोटिफिकेशन जारी हुआ कि वह चतरा के उपायुक्त बनाए गए है.
इसी बीच गढ़वा की वही वृद्ध महिला यानि दादी माँ उनसे मिलने रांची पहुंची, काफ़ी खोजबीन के बाद वो अपने साहब से मिल पायी. वृद्ध रमेश घोलप से विशेष स्नेह रखती थी आयी तो अपने साथ एक किलो पेड़ा भी लेक आयी, रमेश घोलप से दादी की ज़ब मुलाक़ात हुई तो वो भावुक हो गई खूब स्नेह किया, खूब आशीर्वाद दिया. ज़ब वो वापस गढ़वा जाने के लिए निकली तो दादी का लाडला बन चुके आईएएस रमेश उन्हें छोड़ने के लिए खुद गाड़ी के पास खडे थे, वो दादी को गाड़ी में बिठा खुद स्टेशन छोड़न गए. दादी का रांची पहुंचना फिर उनसे मिलना, गढ़वा वाली दादी से आत्मीय मुलाकत की कहनी आज खुद रमेश घोलप ने अपने सोशल हैंडल पर साझा किया. पढ़िए क्या लिखा रमेश घोलप ने "
"हमारा साहब है, मिलेगा ही हमको.....!
"बेटा, आज सुबह से भोजन पानी त्याग दिए थे! कहे थे कि तुमको मिलेंगे तभी खाएंगे-पियेंगे। बहुत महीनों से मन था तुमको मिलने का।आज लगे रहा था कि भेट होगा की नहीं। लेकिन अब मिल लिए।"
रांची के मंत्रालय (प्रोजेक्ट बिल्डिंग) में खोजते-खोजते मेरे ऑफिस में रांची से 220 किमी दूर गढ़वा जिले के सुदूरवर्ती रंका अनुमंडल से मिलने आयी आदिवासी दादी सोनमति कुंवर जी चाय पीते हुए बोल रही थी। उनकी आंखे भर आयी थी। मेरे ऑफिस की जो स्टाफ चाय-नाश्ता लेकर आयी उसको बोल रही थी, "बोले थे ना आपको बाहर की, हमारे नाम का काग़ज़ दे दीजिए साहब को और बोलिए की गढ़वा से आए है, वो तुरंत बुला लेगा हमको!" उसके यह कहने से मेरे चेहरे पर आयी मुस्कान देखकर बोली, "तो सही तो कहे! हमारा साहब है, मिलेगा ही हमको!"
वो हक से बोलती रही और मैं सुनता रहा। पिछले साल मैं गढ़वा में जिलाधिकारी था तब कुछ काम से मेरे पास आती थी। काम सही था तो आदेश किया भी था। उनके साथ मांझी जी भी थे।वह पहली बार मंत्रालय आयी थी।आते वक़्त मेरे लिए गढ़वा जिले के धुरकी प्रखंड का फेमस पेड़ा और अपनी तरफ से ढ़ेर सारी दुआएं भी लायी थी।
ऑफिस से निकलते वक़्त उनको भी अपनी गाड़ी में लेकर स्टेशन के नजदीक छोड़ा। वो मना कर रही थी, फिर भी जिद करके खाना खाकर जाने को बोलकर कुछ पैसे दिए।बोली मेरा नंबर रखिए अपने मोबाईल में। कितने सीधे लोग है। हक से और सीधा दिल से बोल रही थी।उनको छोड़कर घर की तरफ जाते वक़्त मेरी भी आँख भर आयी थी। सर्विस में ट्रांसफर से जगह बदल जाती है लेकिन कुछ जगहें,लोग हमेशा दिल में बस जाते है।
"दुआएँ रद्द नहीं होती,
बस बेहतरीन वक़्त पर कबूल होती है...!"
जोहार दादी! ईश्वर आपको खुश रखे।🙏"