धनबाद(DHANBAD): झारखंड कांग्रेस में क्या नेतृत्व पर संकट उत्पन्न हो गया है, अथवा "मंत्री हटाओ -मंत्री पद पाओ " का खेल चल रहा है. यह बात तो सच है कि झारखंड में कांग्रेस कोटे के मंत्रियों और विधायकों के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. अब तो काम के लिए कमीशन तक की बात सामने आने लगी है. विधानसभा में विवाद तो हो ही रहा है. सार्वजनिक मंचो पर भी विवाद दिखने लगा है. विधानसभा में जिस तरह विधायक दल के नेता प्रदीप यादव और स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी के बीच तकरार लगातार सामने आई है, उससे तो इतना स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है.
कांग्रेस में विवाद अब तो सार्वजनिक मंचों तक पहुंच गया है
सूत्रों के अनुसार यह विवाद केवल सदन तक सीमित नहीं, बल्कि सार्वजनिक मंचों पर भी तीखी बयान बाजी हो रही है. प्रदीप यादव और डॉक्टर इरफान अंसारी के बीच विवाद इतना बढ़ गया था कि विधानसभा अध्यक्ष को भी हस्तक्षेप करना पड़ा. दरअसल, यह विवाह कोई एक दिन का गुस्सा नहीं है. झारखंड में मंत्रिमंडल गठन के बाद से ही असंतोष की बयार बहने लगी थी. कई विधायक मंत्री पद नहीं मिलने के बाद दिल्ली चले गए थे और काफी समझाने के बाद लौटे थे. तभी से ही कांग्रेस के भीतर खींचतान चल रही है. प्रदीप यादव ने अपने विधानसभा क्षेत्र में 25 करोड रुपए की चोरी का सनसनीखेज आरोप लगाया. इस पर स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि किसी तरह की शिकायत थी, तो विधायक दल के नेता पहले व्यक्तिगत रूप से बात करते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
संगठन और सरकार में संवादहीनता को कौन खत्म कराएगा ?
मतलब साफ है कि कांग्रेस के मंत्रियों और विधायक दल के नेता के बीच संवादहीनता की स्थिति है. सवाल यह उठ रहा है कि मंत्री पद नहीं मिलने से कांग्रेस के विधायकों में उपजी नाराजगी अभी खत्म नहीं हुई है. इधर, डॉ इरफान अंसारी न केवल कांग्रेस के मंत्रियों के निशाने पर हैं, बल्कि भाजपा के नेता भी उन पर लगातार निशाना साध रहे है. झारखंड में कांग्रेस नेतृत्व पर बड़ी जवाबदेही है कि मंत्रियों को कैसे एक धागे में बांधकर रख सके. सवाल उठता है कि इसकी पहल कौन करेगा? क्या संगठन से ऊपर कांग्रेस के मंत्री हो गए हैं? क्या इन विवादों का निपटारा भी आलाकमान ही करेगा, तो फिर प्रदेश में संगठन की आखिर क्या जरूरत है? ऐसी बात नहीं है कि विवाद सिर्फ प्रदीप यादव और इरफान अंसारी के बीच ही है. अंदर-अंदर कई तरह की खिचड़ी पक रही है. अभी भी झारखंड में सत्ता की सियासत गर्म ही है.
कांग्रेस के विधायक और मंत्रियों की लड़ाई में चाबुक कौन चलाएगा ?
ऐसे में कांग्रेस के विधायक और मंत्रियों की यह लड़ाई कांग्रेस की झारखंड में बची खुची जमीन को भी न खिसका दे ,इसका ध्यान आखिर कौन रखेगा? बिहार में तो कांग्रेस का लगभग सुपड़ा साफ हो गया है. बंगाल में भी कांग्रेस को कुछ हासिल होने नहीं जा रहा है. झारखंड में कुछ विधायक हैं तो वह सभी आपस में "कुश्ती" कर रहे है. जिला लेवल पर भी अध्यक्ष चयन को लेकर विवाद चल रहा है. कम से कम झारखंड के आधा दर्जन जिलों में जिला अध्यक्ष को लेकर विक्षुब्ध तैयार हो गए है. ऐसे में कांग्रेस झारखंड में अपनी खोई जमीन कैसे हासिल करेगी यह एक बहुत बड़ा सवाल बनकर खड़ा है. वैसे भी झारखंड में सियासत आगे किस करवट बैठेगी, यह कहा नहीं जा सकता है. भाजपा के नेता इशारे- इशारे पर बहुत कुछ बताने की कोशिश कर रहे है. हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा सारे अटकलों को निराधार बता रहा है, लेकिन सवाल अभी भी जिंदा है कि क्या झारखंड में भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार बनेगी?
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
