धनबाद(DHANBAD): केंद्रीय कोयला मंत्री धनबाद आए,अपनी नंगी आंखों से भूमिगत आग और कोयलांचल की दुर्दशा को देखा. बांसजोड़ा भी गए थे. लोगों की परेशानी भी देखी थी. लोगों की बातें भी सुनी थी. धनबाद के सांसद ढुल्लू महतो भी मौजूद थे. प्रशासनिक अधिकारी भी थे,भारत को किंग कोल लिमिटेड के अधिकारी भी थे. फिर भी बांसजोड़ा की परेशानी दूर नहीं हुई. धरती के नीचे आग और जहरीली गैस से बांसजोड़ा के लोग परेशान है. भू-धंसान की आशंका से रात को लोग सो नहीं पा रहे है. यह अलग बात है कि बांसजोड़ा 12 नंबर तथा 6 नंबर को अग्नि प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से बीसीसीएल मैनेजमेंट ने बरसों पूर्व से ही डेंजर जोन घोषित कर दिया है, लेकिन लोगों का विस्थापन नहीं हुआ. नतीजा हुआ कि आग और जहरीली गैस से स्थिति खतरनाक बन गई है.
शीतला मंदिर परिसर समेत दर्जनों घरों में दरारें पड़ चुकी है
लोग बताते हैं कि क्षेत्र के पक्की सड़क, शीतला मंदिर परिसर समेत दर्जनों घरों में दरारें पड़ चुकी है और गैस रिसाव हो रहा है. बारिश होने के कारण स्थिति और बिगड़ गई है. यहां लगभग 3000 की आबादी रहती है. लोगों के पुनर्वास के लिए कोई जमीनी पहल नहीं की गई है. इलाके में रहने वाले लोग पुनर्वास की मांग कर रहे है. बारिश होने से गैस का प्रकोप और अधिक बढ़ गया है. इलाके में लोगों को गैस की वजह से एक फीट की दूरी भी दिखाई नहीं दे रही है. बीसीसीएल भी इस ओर लापरवाह दिख रहा है. इधर, यह भी जानकारी निकल कर आई है कि बांसजोड़ा कोलियरी में बंद पड़े 6 नंबर चानक में गुरुवार की सुबह से तेजी से गैस रिसाव हो रहा है. गैस रिसाव स्थल के पास दर्जनों कबूतर मृत पाए गए है. लोग कहते हैं कि गैस के रिसाव से कबूतरों की मौत हुई है, हालांकि बीसीसीएल मैनेजमेंट का कहना है कि यह गैस जहरीली नहीं है.
बारिश के कारण पानी वाष्प बनकर निकल रहा
प्रबंधन का कहना है कि कोयले की सिम में लगी आग से बारिश के कारण पानी वाष्प बनकर निकल रहा है. जो एक-दो दिन में खुद बंद हो जाएगा. जो भी हो लेकिन बरसात कोयलांचल के लिए खतरा बनकर आती है. अग्नि प्रभावित इलाके में जब पानी का प्रवेश होता है, तो गैस का रिसाव शुरू हो जाता है. ऐसी बात नहीं है कि पहली बार कोयलांचल में कोयला मंत्री आए है. इसके पहले भी कोयला मंत्री आए है. अधिकारियों ने दौरा किया है. संशोधित झरिया मास्टर प्लान अभी कैबिनेट से अप्रूव होने की प्रतीक्षा में है और इधर धंसान की घटनाएं लगातार बढ़ रही है.104 साल से इंतजार करते-करते सुलगती भूमिगत आग,अब "धधकने" लगी है. 1919 में झरिया के भौरा में भूमिगत आग का पता चला था.यह भूमिगत आग अब "कातिल" हो गई है. वैसे पिछले 25 सालों से वह संकेत दे रही है कि हालात बिगड़ने वाले हैं. लेकिन जमीन पर ठोस काम करने के बजाए हवाबाजी होती रही. नतीजा सामने है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो