धनबाद(DHANBAD): धनबाद में उपभोक्ता संरक्षण की ऐसी- तैसी हो रही है. कम से कम दो मामले तो ऐसे हैं, जिनमें साफ-साफ यह दिखता है कि उपभोक्ताओं की बिलकुल हित रक्षा नहीं होती. पहला उदाहरण तो हम कह सकते हैं कि डॉक्टरों और दवा दुकानदारों का गठजोड़ है और दूसरे उदाहरण के रूप में किताब की दुकानों और स्कूल मैनेजमेंट के गठजोड़ को गिनाया जा जा सकता है. दोनों ही मामलों में उपभोक्ता लुट रहे है. धनबाद के डॉक्टर, जो प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं ,उनकी दवा केवल खास दुकानों में ही मिलती है. या यूं कहिए कि वह दवा वही लिखते हैं, जो उस दुकानदार के पास मौजूद रहती है. जाहिर है ऐसा क्यों होता होगा. धनबाद में कम से कम वही दवा की दुकान अधिक चलती है, जिनके यहां अच्छे डॉक्टर बैठते है.
मरीजों की नहीं, डॉक्टरों की चलती है मर्जी
नर्सिंग होम में तो डॉक्टर दवा दुकान ही खोल लिए है. कई जगहों पर तो पैथोलॉजी क्लिनिक भी चलती है. मतलब मरीजों को सुविधा के नाम पर उनका आर्थिक दोहन किया जाता है. मरीज अथवा उनके परिजन के मर्जी के अनुसार नहीं, डॉक्टरों की मर्जी पर पैथोलॉजी जांच होगी. जहां से डॉक्टर चाहेंगे, वहीं से आपको दवा भी लेनी होगी. दूसरे उदाहरण की हम चर्चा करें तो किताब दुकानदार और स्कूल प्रबंधन का गठजोड़ तो इस कदर हावी है कि अभिभावक प्रताड़ित भी होते हैं, परेशान भी होते हैं, अधिक पैसे भी खर्च करते हैं फिर भी चुपचाप सब बर्दाश्त करते है. बच्चों के भविष्य को लेकर कुछ बोलने की स्थिति में नहीं होते. नतीजा है कि स्कूल प्रबंधन और किताब दुकानदार दोनों हाथों से लूटते है.
अभिभावक संघ भी हो जाता लाचार
धनबाद में मजबूत और संगठित अभिभावक संघ भी है, पदाधिकारी भी जुझारू है, बावजूद गठजोड़ नहीं तोड़ पा रहे है. धनबाद जिले में बरसाती मेंढक की तरह किताबों की दुकानें अभी खुल गई है. इन दुकानों में निजी स्कूलों से सांठगांठ कर किताब रखी जा रही है. जाहिर है यह सब यूं ही नहीं होता होगा, यह सब करने के पीछे कुछ खास मकसद होता होगा. किताब दुकानदार अंकित अधिकतम मूल्य पर किताब बेच रहे है. पब्लिशर भी किताबों के मूल्य को लेकर सवालों के घेरे में है. कहा जा सकता है कि किताब दुकानदार, स्कूल प्रबंधन और प्रकाशको का अपवित्र गठबंधन अभिभावकों का आर्थिक दोहन कर रहा है. चिन्हित दुकानों पर ही किताब, कॉपी, कवर, स्टेशनरी मिलती है. मूल्य भी अलग तरह के होते है. वैसे किताबों के मामले में तो रियायत की कोई बात ही नहीं होती. दुकानदार डंके की चोट पर कहते हैं कि किताब लेना है तो ले, नहीं तो चले जाएं, घूम फिर कर तो फिर उन्हें यही आना पड़ेगा. यही हाल स्कूल ड्रेस के मामले में भी है. धनबाद में सिर्फ कोयला माफिया ही नहीं है, स्कूल माफिया,दूकानदार माफिया भी है. यह शिकायत हर साल अभिभावकों की रहती है.
शिक्षा विभाग के अधिकारी केवल भरोसा देते हैं
शिक्षा विभाग के अधिकारी कार्रवाई करने का भरोसा देते हैं लेकिन होता कुछ नहीं है. स्कूल चलाने वाले तो यहां अभिभावकों को कुछ समझते नहीं है. कोरोना काल में सरकार ने भुगतान का जो आदेश दिया था, उसको भी नहीं मानते. यह आदेश सरकार ने 25 जून ,2020 को जारी किया था. सोमवार को कोयला नगर के डीएवी स्कूल में इसी बात को लेकर हंगामा भी हुआ. बच्चों के सामने माता -पिता को फीस डिफाल्टर सुनना पड़ रहा है. ऐसी बात नहीं है कि ऐसा सिर्फ धनबाद में ही हो रहा है, राज्य सरकार के स्तर पर चाहिए कि इसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करें ,जो सभी जिलों की जांच पड़ताल करें और स्कूल की मनमानी, दवा दुकानदारों की करनी की जांच करें और दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई हो ,जिससे उपभोक्ताओं का हित रक्षा हो सके. इधर ,झारखंड अभिभावक महासंघ का कहना है कि मनमानी और एकाधिकार पर अविलंब लगाम नहीं लगाया गया तो सड़क पर आंदोलन करेंगे.
रिपोर्ट : धनबाद ब्यूरो