धनबाद (DHANBAD): कोल इंडिया और इसकी अनुषंगी इकाइयों में संचालित मान्यता प्राप्त श्रमिक संगठन सवालों के घेरे में है. क्या श्रमिक संगठनों के दो चेहरे हैं ? एक चेहरे प्रबंधन के सामने होते जबकि दूसरे चेहरे मजदूरों के बीच होते. कोयला श्रमिकों के प्रश्न का अब मजदूर संगठन के नेताओं को जवाब नहीं जुट रहा है. यह सब केंद्रीय कोयला मंत्री के एक पत्र से हुआ है. यह पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. हालांकि इसकी पुष्टि The Newspost नहीं करता है. लेकिन सूत्र इस पत्र को सही होने का दावा कर रहे है. यह पत्र केंद्रीय कोयला मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा सांसद संजय सिंह को लिखा है.
पत्र ऐसी साल 18 मार्च को लिखा गया है
पत्र 18 मार्च 2025 को लिखा गया बताया जाता है. पत्र में सबसे बड़ी बात का जिक्र यह है कि कोल इंडिया और उसकी अनुषंगी इकाइयों में अनफिट मामले में नौकरी पर रोक कोल इंडिया की संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में विचार के बाद लिया गया है. बैठक में केंद्रीय ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. पत्र के अनुसार एनसीडब्ल्यूए के खंड 9.4.0 के क्रियान्वयन के मामले पर 27 जून 2024 को कोल इंडिया की शीर्ष संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक हुई थी. इसमें इस मुद्दे पर विचार किया गया था. इस बैठक में कोल इंडिया, सहायक कंपनियों के प्रबंधन और कोयला उद्योग के केंद्रीय ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि मौजूद थे. कई तरह की चर्चा के बाद निर्णय लिया गया कि स्थाई रूप से विकलांग कर्मियों के आश्रितों को रोजगार प्रदान करने के लिए एनसीडब्ल्यूए के खंड 9.4.0 को लागू करना संभव नहीं है.
चिन्हित बीमारियों से पीड़ित कर्मचारियों को आधा वेतन मिलता रहेगा
हालांकि दसवें वेतन समझौता के खंड 6.5. 2 के तहत निर्दिष्ट बीमारियों से पीड़ित कर्मचारियों को उनके वेतन का 50% तब तक मिलता रहेगा, जब तक उन्हें मेडिकल रूप से फिट घोषित नहीं कर दिया जाता. बता दें कि कई सालों से मेडिकल अनफिट के नाम पर नियोजन कोल इंडिया में नहीं मिल रहा है. इसके लिए लगातार मांग उठ रही है. आश्चर्य की बात है कि कोल इंडिया की शीर्ष संयुक्त सलाहकार समिति की बैठक में नौकरी नहीं देने का निर्णय लिया गया था और यह निर्णय पिछले साल जून महीने में ही ले लिया गया था. बावजूद इसकी जानकारी यूनियन नेताओं ने मजदूरों को नहीं दी. यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि मेडिकल अनफिट के नाम पर नौकरी सहित अन्य सुविधाओं की वजह से कोल इंडिया में नौकरी करने के प्रति लोगों में झुकाव था. लेकिन अगर मैनेजमेंट ने ऐसा निर्णय ले लिया है तो यह कर्मियों के लिए बहुत बड़ा झटका है. मजदूर संगठनों के लिए भी बहुत बड़ा झटका है.
पहले से ही सवालों के घेरे में थे मजदूर संगठन
यह बात तो पहले से ही कहीं जा रही है कि कोयला उद्योग के मजदूर संगठन अब मैनेजमेंट के सामने हथियार डाल दिए है. मजदूरों के बीच उनकी जो आवाज निकलती है, वह प्रबंधन के सामने नहीं निकल पाती. नतीजा होता है कि मजदूरों को मिलने वाला लाभ अब धीरे-धीरे कमता जा रहा है. देखना है कोयला मंत्री के वायरस इस पत्र के बाद कोयला मजदूरों में क्या प्रतिक्रिया होती है. सूत्र तो यह भी बताते हैं कि कोयला मंत्री का यह पत्र वास्तविक है. यूनियन नेताओं को इस बात की जानकारी थी. लेकिन वह सार्वजनिक नहीं कर रहे थे. इधर, आपसी प्रतिद्वंद्विता की वजह से यूनियन नेताओं ने इस पत्र को वायरल कर दिया है. इस पत्र के वायरल होने के बाद मजदूर संगठन कठघरे में खड़े है. उनका दोहरा चरित्र भी सामने आ गया है. ऐसे में अब मजदूरों के बीच उनकी "मठाधीशी राजनीति" पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो