धनबाद(DHANBAD) : देश की कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया की कोयला खदानों में जितनी भी बड़ी दुर्घटनाएं होती हैं, उनमें 73% पीड़ित ठेका मजदूर ही होते है. ठेका मजदूरों को न कोई प्रशिक्षण दिया जाता, न उनके पास कोई ट्रेनिंग होती. उन्हें सीधे कोयला उत्पादन में झोंक दिया जाता है. नतीजा होता है कि दुर्घटनाओं में वही सर्वाधिक शिकार होते है. यह बात सेफ्टी बोर्ड की बैठक में भी उठी है. यह बैठक कोलकाता में हुई, जिसमें कोल इंडिया के अध्यक्ष सहित डीजीएमएस भी मौजूद थे. बैठक में मुद्दे उठे कि खान सुरक्षा से संबंधित एसओपी का हर हाल में पालन सुनिश्चित किया जाए. ओवरमैन एवं माइनिंग सरदार की कोयला कंपनियों में कमी है, जल्द उस पद को भरा जाए. आउटसोर्सिंग कंपनियों में भी बायोमेट्रिक हाजिरी बने. पंप, नदी किनारे काम करने वाले कोयला कर्मियों को लाइफ सेविंग जैकेट दिया जाए. आउटसोर्सिंग प्रोजेक्ट के मालिक बदलने पर कर्मियों की बदली नहीं हो. भूमिगत खदानों में गैस परीक्षण की व्यवस्था आधुनिक ढंग से की जाये. उपकरणों की कोई कमी नहीं हो.
क्षेत्रीय स्तर पर सेफ्टी कमेटी की बैठक बिल्कुल तय समय पर हो
क्षेत्रीय स्तर पर सेफ्टी कमेटी की बैठक बिल्कुल तय समय पर की जाए. बता दें कि कोल इंडिया चेयरमैन और डीजीएमएस की मौजूदगी में कोल इंडिया सेफ्टी बोर्ड की बैठक कोलकत्ता में हुई. इस बैठक में खान सुरक्षा पर मंथन किया गया. खदान हादसे में ठेका मजदूरों की मौत का मुद्दा भी जोर-शोर से उठा. सूत्रों के अनुसार बैठक में ठेका मजदूरों को जरूरी प्रशिक्षण की मांग की गई. आंकड़ा दिया गया कि बड़ी दुर्घटनाओं में 73% पीड़ित ठेका मजदूर होते है. कोल इंडिया की ओर से भरोसा दिया गया कि खान एवं खनिजों की सुरक्षा को लेकर फंड की कोई कमी नहीं होगी. नियमों पर जोर दिया जाए. बताया गया कि पहले के मुकाबले खान दुर्घटनाओं में कमी आई है. डीजीएमएस ने कोयला खदानों की सुरक्षा व्यवस्था से लेकर कोयलाकर्मियों की नियमित प्रशिक्षण के लिए कोयला कंपनियों को जागरूक रहने का आग्रह किया. उन्होंने यह भी कहा कि खदान के भीतर स्वयं एवं अपने साथियों की सुरक्षा के प्रति कर्मी जागरूक रहे.
कोलियरियों का उत्पादन लगभग आउटसोर्स के हवाले
यह बात भी सच है कि कोलियरियों का उत्पादन अब लगभग आउटसोर्स के हवाले हो गया है. आउटसोर्स कंपनियां नियमों का पालन नहीं करती,ऐसा आरोप हमेशा लगते रहे है. जो मजदूर रखे जाते हैं, उनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं होता. जैसे तैसे कोयले की कटाई होती है. दुर्घटनाएं भी अधिक होती है. कोयला कंपनियां दो या तीन साल के लिए आउटसोर्स कंपनियों के साथ इकरारनामा करती है. इकरारनामा खत्म हो जाने के बाद या तो आउट सोर्स कंपनी को या कंटिन्यू किया जाता है या फिर नई कंपनी को काम दे दिया जाता है. ऐसे में नई कंपनी, जो आती है, वह अपने ढंग से काम कराती है. नए-नए लोगों को रख कोयले का उत्पादन कराया जाता है. अब डीजीएमस इसके प्रति गंभीर हुआ है और सुझाव दिया है कि प्रशिक्षित कर्मचारियों को ही खदान में प्रवेश कराया जाए. देखना है कोल इंडिया डीजीएमएस के इस सकारात्मक पहल का कितना पालन कराती है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो