रांची(RANCHI):झारखंड गठन के बाद से दूसरी बार राज्य के लोगों को स्थिर सरकार मिली.रघुवर दास सरकार के बाद हेमन्त सोरेन सरकार अपने पांच वर्ष पूरे करने के बेहद करीब है.लेकिन हेमन्त सरकार बनने के साथ ही कई चुनौती से जूझ रही है.सरकार बनते ही राज्य में कोरोना की लहर आई.कोरोना के बाद राज्य में केंद्रीय ऐजेंसी सक्रिय हो गई. ED ने राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध खनन के खेल को उजागर किया.इसके बाद अब जमीन घोटाले में जांच कर रही है.अवैध खनन में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से पूछताछ हुई उसके बाद दूसरी बार जमीन घोटाले में पूछताछ को लेकर समन जारी कर दिया.इस समन को लेकर राज्य में सियाशी पारा चढ़ा हुआ है.CM को समन के बाद भाजपा पर सवाल खड़ा होने लगा.सूबे के मुखिया हेमन्त सोरेन खुद खुले मंच से कई बार कहा कि सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है. CM ने यहां तक कह डाला की भाजपा के लोग जेल भेजने में लगे है.जनता के द्वारा नकारे जाने के बाद अब केंद्रीय ऐजेंसी को आगे कर सरकार गिराने में लगी है.
इसी दौरान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन कोल्हान के सुदूरवर्ती इलाके गुवा में करोड़ो रूपये की योजनाओं की सौगात क्षेत्र के लोगों को दी.उस दौरान CM ने कहा कि विपक्ष वालों को 20 साल मखमल के खाट में सोने की आदत रही है. इसलिए आज इन्हें भारी तकलीफ हो रही है. राजनीतिक ताकत तो इनकी जीरो हो चुकी है इसलिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर यह येन-केन-प्रकारेण सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगे रहते हैं.हमारे पीछे भी संस्थाओं को इन्होंने लगा रखा है कि किसी तरह इसे जेल भेजो.
चिंता मत करो, जब तक तुम हमको जेल भेजने का षड्यंत्र करोगे, हम झारखण्ड के लोगों को इतना मजबूत कर देंगे कि फिर जेल का जवाब भी लोग तुमसे ही लेंगे.
1932 और सरना को भाजपा ने लटकाया
अपने शहीदों का बदला हमारे पुरुखों ने बड़ी शिद्दत से लिया है. कोई सपने में नहीं सोचता था कि अलग राज्य मिलेगा? मगर अलग राज्य मिला.कोई सपने में नहीं सोचता था कि आदिवासी मुख्यमंत्री बनेगा, मगर बना और आपके सामने खड़ा है.
भाजपा ने 20 सालों में दो-दो आदिवासी मुख्यमंत्री बनाये मगर किसी को 5 साल पूरा नहीं करने दिया. आदिवासी, दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक विरोधी लोग हैं भाजपा वाले। इन्हें चिढ़ है आदिवासी, दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक से। इसलिए इन्होंने न कभी सरना धर्म कोड पारित कराया न कभी 1932 खतियान पारित कराया, न ओबीसी को 27% आरक्षण दिया.और न यहां के लोगों को इन्होंने कभी हक-अधिकार दिया.