रांची(RANCHI):झारखंड में आदिवासी महोत्सव मनाया जा रहा है. कार्यक्रम काफी बड़ा है,हर तरफ आदिवासी महोत्सव की धूम है. लेकिन इस खुशी में मणिपुर का दर्द झलक रहा है. मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपने संबोधन में मणिपुर के दर्द को लोगों के साथ साझा किया. कहा हमें एक जुट होकर स्वाभिमान कर लिए खड़ा होने की जरूरत है.
आदिवासियों की अनूठी कहानी और परंपरा का दर्शन
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि आदिवासी महोत्सव हर्षोल्लास और धूम धाम के साथ मनाया जा रहा है. पिछले बार के मुकाबले इस बार और बेहतर महोत्सव मनाया जा रहा है. CM ने कहा दो दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में विभिन्न राज्य से आये हुए आदिवासी ग्रुप पारंपरिक निर्त्य दिखाएंगे. साथ ही विभिन्न आदिवासी के मामलों पर चर्चा किया जाएगा.
आदिवासी समाज कोयला बेचने को मजबूर
सीएम हेमंत ने अपने सम्बोधन में कहा जिस समाज की कोि जाति नहीं होती उसे आदिवासी कहा जाता है . आज आदिवासी को पीटा जा रहा है, कहीं पेशाब किया जा रहा है. इसे लेकर हमे संघर्ष करने की जरूरत है. संघर्ष हमें हमारे परम्परा को नष्ट करने वाले के खिलाफ करना है. आज हम विभिन्न धर्मों में बंटे हुए है,हम एक होकर इसके खिलाफ लड़ेंगे. केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा आज तक आदिवासी के उठान के लिए कोई काम नहीं किया. हमारे समाज के लोगों को बिना पुर्नवास किये कोयला कंपनी को जमीन दी गई,झरिया कोयला की भट्टी में जल रहा है लेकिन केंद्र सरकार कान में तेल डाल कर सोयी हुई है.आज हमारे आदिवासी साइकल पर कोयला बेचने को मजबूर है.
भाषा और संस्कृति धीरे-धीरे हो रही खत्म
आदिवासी समाज के लोग अंग्रजो से लेकर कई दमन कारी तंत्र से लड़ रही है.लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है. हमारी भाषा संस्कृति को छीना जा रहा है. आदिवासी अपनी पहचान के लिए बोलने का प्रयास कर रहा है तो उसे कुचलने की कोशिश की जा रही है. ऐसे लोग है कि नहीं चाहते कि हामरी पहचान बन सके. हमें टुकड़ो में बाटने का काम किया गया. हम शुरू से क्रांतिकारी रहे है.देश में सभ्यता सांस्कृतिक को गढ़ने में आदिवासी का बड़ा हाथ है. लेकिन आज देश में सबसे गरीब, अशिक्षित का दंश झेल रहे है.
हम शोषित है,क्योंकि हम कई टुकड़ों में बटे हुए हैं : सीएम
आदिवासी एक स्वाभाविक कौम है. हम कभी भीख नहीं मांगते है,खुद मेहनत मजदूरी कर कमाते हैं. हमें सिर्फ जंगल में रहने वाला नहीं बोलना चाहिए. हम देश के मूलवासी है. आज हम शोषित है,क्योंकि हम कई टुकड़ों में बटे हुए हैं,इसका उदाहरण मणिपुर, मध्यप्रदेश है.जब बात स्वाभिमान की आजाए तो टकराना जरूरी है.एक जुट हो कर आदिवासियों के खिलाफ खड़े होने वाले को सबक सिखाने की जरूरत है.
रिपोर्ट: समीर