टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- सियासत में आकांक्षाएं और संभवनाएं दोनों साथ-साथ देखने को मिल ही जाती है. इसकी बिसात में कब प्यादा भी एक दूरी तय कर राजा बना जाता है और कब कोई घोड़े की ढ़ाई आखर की चाल से विरोधियों को चित कर दे, ये कोई नहीं जानता है. दरअसल, यही सियासत है और इसकी तासिर है. जिसने चखा है और जो तजुर्बेकार सियासतन है. वह इसे बखूभी अपने राजनीतिक करियर में देख चुके हैं. लिहाजा, सियासी गलियारों में साइड इफेक्ट की चर्चा होते ही रहती है.
पहले से चल रही किचकिच
यहां बात झारखंड लोकसभा के सीट बंटवारें की करते हैं, जहां इंडिया गठबंधन में जेएमएम और कांग्रेस के बीच पहले से ही सीट बंटवारे को लेकर किचकिच और खटपट चल रही है. 14 लोकसभा सीटों में कांग्रेस सात की जगह नौ सीट पर लड़ना चाहती है. जबकि जेएमएम की हसरते भी सात सीट पर ही लड़ने की है. जबकि, अब लालू प्रसाद यादव की राजद झारखंड में भी अपना वजूद बनाने के लिए लगातार अपनी जमीन तैयार कर रही है. इसी का नतीजा है कि अब वो भी चार सीट पर अपनी दावेदारी कर रहे है.
अगर पिछले चुनाव को झांके तो राजद पलामू सीट पर ही लड़ी थी, जबकि इस बार कोडरमा, गोड्डा , चतरा और पलामू पर दावा ठोका है. इसे लेकर लगातार चुनावी बयार जोर शोर से बहायी जा रही है और जोशीले तकरीरों से आसमान गूंज रहा है.
अकेले चुनाव लड़ सकती है राजद
अंदर खाने से तो इतनी खटपट की खबरें आ रही है कि अगर ये सीटें नहीं मिली, तो फिर इंडिया गठबंधन से किनारा कर लेगी और अकेले भी चुनावी रण में उतर सकती है. घमसान तो लगता है कि होकर रहेगा, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में जेएमएम ने चार सीट औऱ कांग्रेस ने सात सीट पर चुनाव लड़ा था. जबकि, जेवीएम ( अब भाजपा में विलय) दो और राजद एक सीट पर मैदान में थी.
इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा चार की बजाए सात और कांग्रेस सात की बजाए नौ सीट पर दावा ठोका है . दिल्ली में इसे लेकर बैठक भी हुई है, पर सीट शेयरिंग पर अंतिम मुहर नहीं लगी. अब राजद की चार सीटों पर चुनाव लड़ने की हसरत से कुछ न कुछ तो गडबंधन में खोरेंचे आयेगी और शायद बाद में यही कही बड़े घाव में न तब्दील हो जाए.
राजद ने एक सीट पर लड़ा था चुनाव
पिछले लोकसभा चुनाव में राजद,कांग्रेस और जेएमएम ने लोकसभा की 14 सीटों में दो में ही जीत दर्ज की थी. राजमहल में जेएमएम और सिंहभूम में पंजे ने विजय हासिल किया. गौर फरमाने वाली बात ये थी कि राजद ने पलामू में लड़ने के साथ ही चतरा में भी अपना उम्मीदवार उतरा दिया था. जहां कांग्रेस से दोस्तान फाइट कर रही थी. लगता है कि अगर बात नहीं बनीं तो राष्ट्रीय जनता दल अकले भी चुनावी समर में अपने घोड़ा उतारेगी . देखना ये दिलचस्प होगा कि झारखंड में इंडिया गठबंधन खुद को कैसे एकजुट रखती है. क्योंकि यहां चुनौती जनता के बीच वोट मांगने से पहले खुद अपने साथियों के साथ मेल-मिलाप बरकार रखने की हैं.
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह