धनबाद(DHANBAD): झारखंड के मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कहा है कि बंद औद्योगिक इकाइयों को राज्य सरकार पुनर्जीवित करेगी. झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के कार्य प्रगति की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को कहा कि झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के अंतर्गत वैसी औद्योगिक इकाइयां स्थापित होने के बाद किस कारणवश बंद पड़ी है, उनका सर्वेक्षण करे. बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयों को नए सिरे से आवंटन करें और उन्हें पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त करे. बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयां चालू होगी तो लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है. शुक्रवार को प्रोजेक्ट भवन में उद्योग विभाग के कामकाज की समीक्षा कर रहे थे सीएम. मुख्यमंत्री का यह निर्देश अगर सही में जमीन पर उतर गया तो झारखंड का तो जो भला होगा सो होगा ही, धनबाद बोकारो की किस्मत चमक जाएगी. मुख्यमंत्री को तो कम से कम एक उच्च स्तरीय टीम बनाकर धनबाद और बोकारो भेजना चाहिए. यह पता लगाना चाहिए कि किन कारणों से झारखंड का औद्योगिक क्षेत्र धनबाद आज वीरानी की ओर बढ़ रहा है. कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद यहां हार्डकोक उद्योग पनपे , लेकिन आज इन उद्योग परिसर में सियार लोट रहे है.
उद्योग परिसर में लोट रहे सियार
बरवाअड्डा से लेकर चिरकुंडा तक जीटी रोड के दोनों किनारे उद्योगों की चिमनिया पहले धुआं उगल रही थी, लेकिन आज वह स्थिति नहीं है. उद्योग चलाने के लिए आवश्यक रॉ मैटेरियल नहीं मिलते. उद्योग मालिक कोयले के लिए चिरौरी करते हैं, लेकिन कोयला मिलता नहीं है. झारखंड बनने के बाद ही सिंदरी खाद कारखाना बंद हुआ. यह अलग बात है कि hurl नाम की कंपनी से उत्पादन शुरू हुआ है. लेकिन खाद कारखाने की ख्याति अर्जित करने में इस कंपनी को बहुत वक्त लगेगा. छोटे-छोटे उद्योगों का हाल बेहाल हो गया है. झारखंड बनने के बाद लोगों को भरोसा जगा था कि धनबाद का औद्योगिक विकास होगा, लेकिन हुआ कुछ नहीं. इसके उलट उद्योग बंद होते चले गए. छोटे-छोटे उद्योगों का भी बुरा हाल है. अगर झारखंड सरकार सचमुच औद्योगीकरण की दिशा में आगे बढ़ना चाहती है तो धनबाद के उद्योगों का सर्वेक्षण करना और जरूरी मदद देकर उद्योगों को पुनर्जीवित करना होगा. वैसे धनबाद का इतिहास धान की खेती से शुरू होता है और उसके बाद धीरे-धीरे कोयले की प्रचुरता के कारण यहां कोयला आधारित उद्योग खुलते गए. लेकिन अब चिमनियों से धुंवा निकलना बंद हो गया है.
बिहार के समय से ही शुरू हो गई थी बदहाली
वैसे तो कोयलांचल में उद्योगों की बदहाली बिहार के समय से ही शुरू हो गई थी. उसे समय तर्क दिया जा रहा था कि धनबाद पर बिहार सरकार का ध्यान नहीं है, लेकिन झारखंड बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि धनबाद के औद्योगिक क्षेत्र का विकास होगा, सरकार ध्यान देगी. झारखंड बनने के बाद बाबूलाल मरांडी की सरकार में धनबाद और अगल-बगल के पांच विधायक मंत्री थे. बावजूद धनबाद की हकमरी हुई. एक समय था जब यहां 100 से अधिक हार्ड कोक उद्योग चल रहे थे. रिफ्रैक्टिज उद्योगों की मोनोपोली थी. रिफ्रैक्टिव उद्योग तो धीरे-धीरे काल के गाल में समा गए. हार्डकोर उद्योग चल रहे हैं लेकिन वहां भी अब उत्पादन नाम मात्र का हो रहा है. कोयले के लिंकेज सिस्टम ने उद्योग मालिकों को ऐसा परेशान किया कि अब वह उद्योगों की तरफ से मुंह मोड़ना ही शुरू कर दिए है. यह धनबाद की सेहत के लिए अच्छी बात नहीं है. झारखंड की आर्थिक सेहत के लिए भी ठीक नहीं होगा. मुख्यमंत्री ने पहल शुरू की है तो उसका परिणाम भी निकलना चाहिए. देखना है आगे -आगे होता है क्या.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो