धनबाद(DHANBAD): कोयलांचल के पब्लिक स्कूल और किताब दुकानदारों के गठजोड़ में क्या कोई तीसरा धन पशु भी शामिल है .यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि दुकानदारों के पास इतनी पूंजी और ताकत कहां से आती है कि वह मनमानी करते हैं. स्कूल मैनेजमेंट से सांठगांठ कर अभिभावकों को दोनों हाथों से लूटते हैं. हालांकि यह लूट कोई नई बात नहीं है लेकिन इस बार दुकानों की मनमानी बर्दाश्त से अधिक होने के कारण अभिभावक भी आक्रोशित हैं. दुकानदार तो अभिभावकों से ऐसे व्यवहार कर रहे हैं मानो वह उनके कस्टमर नहीं बल्कि बंधुआ मजदूर हैं. लेना है तो लीजिए, नहीं तो जाइए, परेशान होकर फिर यहीं आइएगा. मतलब साफ है कि दुकानदारों को ना किसी का डर है और नहीं वह किसी कार्रवाई से भय खा रहे हैं. दुकानदारों की मनमानी का नमूना यह है कि पहली क्लास के लिए कॉपी की कीमत निर्धारित कर रखी है ₹830 तो जिल्द की कीमत गर्दन मरोड़ कर ली जा रही है ₹481. पांचवी कक्षा की कॉपी व किताब के जिल्द के लिए गार्जियन को ₹477 का भुगतान करना पड़ रहा है ,जबकि कॉपी के लिए ₹1075 देने पड़ रहे हैं. जिल्द नहीं लेने पर दुकानदार किताब नहीं दे रहे हैं. मजबूरन अभिभावक किताब और जिल्द खरीद रहे हैं. यह जिल्द दूसरी दुकानों में 70 से ₹80 में उपलब्ध है .फर्क सिर्फ इतना है कि जिल्द पर स्कूल का नाम प्रिंट नहीं है.
नया सेशन क्या शुरू हो रहा है, अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है. स्कूल वाले तो एनुअल चार्ज ,डेवलपमेंट फीस समेत अन्य मद में पैसा ले ही रहे हैं ,ऊपर से दुकानदारों से सांठगांठ कर अभिभावकों को चूना लगा रहे हैं. बात सिर्फ इतनी ही नहीं है ,इसके अलावा अभिभावकों को ड्रेस ,जूता समेत अन्य खरीदारी करनी पड़ेगी. अंदाज लगा सकते हैं कि अगर एक परिवार में दो या तीन स्कूल गोइंग बच्चे हैं तो उस अभिभावक की आर्थिक हालत कैसी होगी.
एडमिशन और किताब के नाम पर अभिभावकों का शोषण
सोशल मीडिया पर तो किताब दुकानदारों के खिलाफ प्रतिक्रिया मिल रही है. कहा जा रहा है कि एडमिशन और किताब के नाम पर अभिभावकों का जमकर शोषण होता है ,लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. शिकायतों के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होती है. इसलिए अभिभावक भी किताब दुकानदारों की मनमानी सहने को मजबूर है, वहीं जिला शिक्षा अधीक्षक का कहना है कि अभिभावकों की ओर से इस मनमानी के संबंध में कोई शिकायत नहीं की गई है. शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी, तो क्या शिक्षा विभाग अभिभावकों की लिखित शिकायत का इंतजार कर रहा है. सोशल मीडिया से लेकर अखबारों में ताबड़तोड़ खबरें छप रही है. ऐसे में क्या जांच शुरू नहीं हो जानी चाहिए. शिक्षा विभाग को भी अपने को पाक साफ साबित करने के लिए जांच शुरू कर देनी चाहिए. जांच नहीं होने का मतलब साफ है कि शिक्षा विभाग को भी अभिभावकों की आर्थिक सुरक्षा से कोई मतलब नहीं है. शिक्षा विभाग को तो तुरंत टीम गठित कर इसकी जांच करानी चाहिए. और अगर किताब बेचने वाले, स्कूल प्रबंधन अथवा किसी धन पशु की संलिप्तता मिलती है तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए. शिक्षा को अगर व्यवसाय बना लिया गया है तो इसे तोड़ना भी तो शिक्षा विभाग का ही काम है. देखना है इतना होने के बाद भी क्या सब कुछ सामान्य ढंग से चलता है अथवा कोई कार्रवाई होती है.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह