टीएनपी डेस्क(TNP DESK): बिल्कुल अप्रत्याशित फैसला था पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल बनाए जाने का फैसला. जैसे ही लोगों तक यह पहुंचा भाजपा के लोग भी आश्चर्य में पड़ गए. रघुवर दास भी जिस समय फैसला हुआ उस समय इस निर्णय से अनभिज्ञ थे. अब रघुवर दास को झारखंड की राजनीति से किनारा क्यों किया गया है, इसको लेकर राजनीतिक पंडित मतलब और संभावनाएं निकालेंगे ही. सवाल यह उठने लगा है कि झारखंड की सक्रिय राजनीति से रघुवर दास को राज्यपाल का पद देकर किनारा करने की क्या-क्या वजह हो सकती है.
जानिए क्या- क्या हो सकते हैं मायने
वजह कई गिनाए जा रहे हैं. क्या भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को निष्कंटक राजनीतिक जमीन देने के लिए ऐसा किया गया है? क्या बाबूलाल मरांडी पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया गया है? क्या झारखंड में भाजपा के तिकड़ी को तोड़ने के लिए ऐसा किया गया है? क्या ओडिशा में भाजपा की जमीन तैयार करने के लिए ऐसा किया गया है? क्या झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक जांच की आंच को पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया है? क्या धनबाद में सरयू राय की घोषणा का तो कोई असर नहीं है? ऐसे कई सवाल हैं जो हवा में तैर रहे हैं. अभी 2 दिन पहले ही अमर कुमार बाउरी को प्रतिपक्ष का नेता बनाकर भाजपा आला कमान ने सबको चौंकाया था और उसके ठीक 48 घंटे बाद रघुवर दास को राज्यपाल बनाकर उसे भी अधिक लोगों को चौकाया है.
लोकसभा चुनाव में झारखंड में अगर12 से कम सीट आई तो बाबूलाल को पार्टी कर सकती है किनारा
भाजपा की राजनीति को जानने वाले कह रहे हैं कि अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा 12 से कम सीट लाई तो बाबूलाल मरांडी पर भी दबाव बनाकर पार्टी उन्हें भी किनारा कर सकती है. और इसी के लिए युवा चेहरा, दलित फेस अमर कुमार बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है. यानी यह सेकंड लाइन की तैयारी है. अगर 12 से अधिक लोकसभा में झारखंड में सीट आई तो बाबूलाल मरांडी का कद और बढ़ सकता है. ईडी जांच की आंच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंचाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि ईडी जब कोई फाइल खोलती है तो उसके तार 2014 से 2019 के कार्यकाल से जुड़ जाता है. इतना ही नहीं ,रघुवर दास के राजनीतिक प्रतिद्वंदी सरयू राय लगातार रघुवर दास पर हमला कर भाजपा को कभी-कभी बैक फुट पर खड़ा कर देते हैं.
विधान सभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी से भाजपा का उम्मीदवार कौन होगा?
सरयू राय ने अभी धनबाद में घोषणा की थी कि उनका मोर्चा धनबाद , चतरा और पलामू से लोकसभा से चुनाव लड़ेगा. यह तीनों सीट अभी भाजपा के पास है. कहीं यह धमकी तो काम नहीं आ गई है. क्या सरयू राय आहिस्ते-आहिस्ते भाजपा की ओर बढ़ रहे है .विधान सभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी से भाजपा का कौन उम्मीदवार होगा, इसको लेकर भी चर्चा तेज है .यह भी कहा जा रहा है कि ओडिशा में नवीन पटनायक के एकछत्र राज को तोड़ने के लिए तो कहीं भाजपा कोशिश नहीं करेगी? सवाल बहुत सारे हैं, जिनका जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा.
झारखंड में भाजपा ने शुरू की नए ढंग की राजनीति
वैसे झारखंड की सक्रिय राजनीति से रघुवर दास को अलग करना एक बहुत बड़ा फैसला है. इस फैसला का परिणाम किस करवट बैठेगा, यह भी आने वाला वक्त ही बताएगा. अर्जुन मुंडा को केंद्र की राजनीति में सक्रिय कर दिया गया है. बाबूलाल मरांडी फिर से भाजपा में सक्रिय हो गए हैं. इधर, दलित चेहरा अमर कुमार बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया है. यह बात तो तय है कि झारखंड में अब नए ढंग की राजनीति भाजपा ने शुरू कर दी है. बिहार में भाजपा को नुकसान दिख रहा है .ऐसे में वह चाहती है कि झारखंड के कुल 14 सीट पर परचम लहराया जाए और इसके लिए नए-नए प्रयोग पार्टी कर रही है. जो भी हो आला कमान के निर्णय का रघुवर दास ने स्वागत किया है और कहा है कि पार्टी का एक छोटा सा कार्यकर्ता रहा हूं .मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के बाद अब पार्टी ने ओडिशा जैसे महान प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया है. इस जिम्मेदारी का पूरी निष्ठा व ईमानदारी से निर्वाह करूंगा.
भाजपा आला कमान के निर्णय से तेज हो गई राजनीतिक चर्चा
रघुवर दास 4 दशकों से झारखंड की राजनीति में सक्रिय रहे हैं. अलग राज्य गठन के बाद वह झारखंड के पहले श्रम मंत्री बने. फिर भवन निर्माण मंत्री बने. 2005 में वह राज्य के वित्त मंत्री रहे. बीजेपी, झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन सरकार में भी वह उपमुख्यमंत्री रहे. वह 5 साल तक कार्यकाल पूरा करने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने. वह झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. फिलहाल वह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका में थे. लगातार पांच बार विधायक भी चुने जाते रहे. लेकिन 2019 के चुनाव में वह सरयू राय के हाथों पराजित हो गए .लेकिन अभी भी सक्रिय राजनीति में वह थे और हेमंत सरकार के खिलाफ लगातार हमला बोल रहे थे. जो भी हो लेकिन भाजपा आला कमान का यह निर्णय झारखंड के लोगों को चौंकाया जरूर है और एक नई राजनीति दिशा की ओर आगे बढ़ने का इशारा कर रहा है.रिजल्ट के लिए तो वक्त की प्रतीक्षा करनी होगी.