टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हिंदू धर्म के अनुसार कुल 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा की जाती है. जिसमें भगवान विष्णु धरती को संचालित करते हैं. भगवान विष्णु इस धरती के रचयिता हैं जिनकी पत्नी माता लक्ष्मी हैं. भगवान बिष्णु ने धरती से पाप को मिटाने के लिए ना जाने कितने ही राक्षसों का वध करने धरती पर अलग-अलग अवतार लिया. जिसमें त्रेता युग में उनका छठा अवतार भगवान परशुराम को माना जाता है.
वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि मनाई जाती है जयंती
जिसको हर साल वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान परशुराम की जन्म उत्सव के रुप में मनाया जाता है. इस पावन दिन को अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. आज 22 अप्रैल शनिवार के दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम की जयंती है. भगवान परशुराम भारद्वाज गोत्र के कुल गुरु भी माने जाते हैं. इसके साथ ही परशुराम भार्गव गोत्र के गॉड ब्राह्मण से संबंध रखते हैं. भगवान परशुरामजी की जयंती हर वर्ष वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. इसे अक्षय तृतीया का पावन पर्व भी कहते हैं. विधि विधान से भक्त भगवान परशुराम की पूजा अर्चना करते हैं.
कुल 21 बार क्षत्रिय समाज के वंश का किया संहार
इस दिन भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना के साथ अस्त्र और शस्त्र की भी पूजा की जाती है. क्योंकि भगवान परशुराम को वीर और बल का प्रतीक माना जाता है. जिन्होंने अपने बल से 21 बार इस धरती से क्षत्रिय समाज के वंश का कुल 21 बार इस धरती से संहार किया. और इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था. इसका उल्लेख हमारे पुराणों में भी देखने को मिलता है.
वीरता और बल से जुड़ी कथा
भगवान परशुराम के पराक्रम और वीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं. कि एक बार भगवान परशुराम ने अपनी माता की पुकार पर इस धरती से पूरे क्षत्रिय जाति का नाश 21 बार किया था. एक बार की बात है सहस्त्रार्जुन जंगल से होता हुआ कहीं जा रहा था. लेकिन अपनी थकान मिटाने के लिए जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम के लिए गया. जहां महर्षि जमदग्नि ने आश्रम में मेहमान समझकर खूब आदर सत्कार किया. लेकिन सहस्त्रार्जुन दुराचारी और अत्याचारी और लालची था. उसकी नजर जमदग्नि के पास देवराज इंद्र से प्राप्त कामधेनु गाय पर पड़ी. वो उस गाय की मांग करने लगा.
कुल 21 बार धरती से क्षत्रिय समाज का विनाश किया
मना करने पर सहस्त्रार्जुन ने भगवान परशुराम के पिता को धमकाने लगा. तभी परशुरामजी ने भगवान शिव से मिले महाशक्तिशाली फरसे के साथ सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मति पहुंचे. और सहस्त्रार्जुन को अपने प्रचंड बल से उसकी भुजाएं और धड़ काटकर उसका वध कर दिया. और पिता के आदेश पर पाश्चाताप करने के लिए तीर्थ यात्रा पर निकल गए. लेकिन तभी मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने अपने सहयोगी क्षत्रियों की मदद से जमदग्नि और उनके आश्रम पर हमला कर दिया. और महर्षि जमदग्नि को सिर काट कर उनका वध कर दिया. आश्रम को जला दिया.
पिता के कटे सिर पर 21 घाव को देखकर काफी क्रोधित हुए
तभी माता ने अपने पुत्र परशुराम को रोते हुए मदद के लिए पुकारा पहुंचकर परशुराम ने देखा कि उनकी पिता की मौत के बाद माता विलाप कर रही हैं. अपने पिता के कटे सिर पर 21 घाव को देखकर काफी क्रोधित हुए.और मन ही मन क्षत्रिय समाज के नाश का संकल्प लिया. और ऐसा माना जाता है कि परशुराम ने कुल 21 बार इस धरती से क्षत्रिय समाज का विनाश किया हैं.
देवघर में धूमधाम से मनाया जाती है परशुराम की जयंती
बाबा बासुकीनाथ धाम में ब्राह्मण समाज एवं पंडा पुरोहितों के द्वारा हर्षोल्लास के साथ भगवान परशुराम की जयंती मनाई गई वही इस अवसर पर पंडा पुरोहितों ने कहा कि हम लोग भगवान परशुराम से पूरे विश्व की मंगल कामना करते हैं परशुराम जयंती के महत्व के बारे में बताते हुए वैदिक पंडित राजू झा ने कहा कि परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था.