धनबाद(DHANBAD) | अभी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद एक है, लेकिन जब अलग-अलग थे, तब लालू प्रसाद का ही कहना है कि नीतीश कुमार के पेट में दांत है. पलटू राम नाम नीतीश कुमार का लालू प्रसाद ने ही दिया था. यह बात तो सच है कि नीतीश कुमार घाघ पॉलीटिशियन है और कब कहा किसे फिट करना है, यह बखूबी जानते और समझते है. अभी हाल फिलहाल में उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह के जदयू छोड़कर भाजपा में जाने के बाद नीतीश कुमार ने केसी त्यागी जैसे वरिष्ठ नेता को कुछ खास जिम्मेवारी देकर "स्पेशल मिशन" में लगाया है. नीतीश कुमार फिलहाल विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हुए है. इससे यह सवाल उठता है कि क्या जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद जिस प्रकार मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने थे, उसी प्रकार नीतीश कुमार के मन में भी क्या कोई लड्डू फूट रहा है. वह बिहार की राजनीति छोड़कर जीवन की अंतिम पारी में केंद्र की राजनीति करना चाहते हैं और वह भी बड़े पद पर. इसको लेकर लगातार प्रयास कर रहे है.
पिछले एक साल की राजनीति में बिहार में कई उलटफेर हुए
पिछले एक साल की राजनीति में बिहार में कई उलटफेर हुए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़कर महागठबंधन के साथ हो लिए. इस दौरान आरसीपी सिंह जेडीयू में साइड लाइन होते गए और उन्होंने पार्टी छोड़ दी. आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके है. जेडयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार का साथ छोड़कर बीजेपी के पाले में चले गए है. इन सब से घबराए बिना नीतीश कुमार अभी भी 2024 के लोकसभा चुनाव फतेह की ओर लगे हुए है. राजनीतिक पंडित कहते हैं कि केसी त्यागी को विपक्षी दलों की तकरार खत्म करने और 2024 में सब को साथ लाने की जिम्मेवारी दी गई है. मतलब नीतीश कुमार जमीन तैयार करेंगे और केसी त्यागी अंतिम टच देंगे. हालांकि यह दूर की कौड़ी है. इसमें कितनी सफलता मिलेगी, यह कहना भी जल्दबाजी होगी, क्योंकि सपा,टीएमसी और आप को लेकर सवाल दर सवाल उठ रहे है. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद कांग्रेसी क्रिच वाला कुर्ता निकाल लिए है.
कर्नाटक के बाद बदल गया है कॉंग्रेसियों का बॉडी लैंग्वेज
उनका बॉडी लैंग्वेज भी बदल गया है. ऐसे में कॉन्ग्रेस क्या किसी दूसरे को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार स्वीकार करेगी या फिर कांग्रेस को दूसरे विपक्षी दल प्रधानमंत्री के रूप रूप में स्वीकार करेंगे, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके उत्तर पर ही निर्भर करेगा की विपक्षी एकता चुनाव तक खड़ी रहेगी अथवा बीच में ही लड़खड़ा कर गिर जाएगी. इसबीच नीतीश कुमार के मन में फूट रहा लड्डू भी कुछ कर दे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. वैसे भी राजनीतिक पंडित कहते है कि नीतीश कुमार ने राजद से इसी शर्त पर समझौता किये है कि 2025 के बाद वह बिहार में अपनी सल्तनत तेजस्वी को सौप देंगे ,अगर यह सही है तो मोरारजी देसाई बनने का उनका सपना भी स्वाभाविक ही कहा जा सकता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो