धनबाद(DHANBAD) जिनके बूते झारखंड अलग राज्य बना, वही अब सरकार के खिलाफ हो गए है. उनका कहना है कि पिछले 2 साल से उनकी पेंशन नहीं मिल रही है. हेमंत सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद पहली कैबिनेट में घोषणा हुई थी कि झारखंड आंदोलनकारियों की राशि में ₹500 की बढ़ोतरी की जाएगी, लेकिन यह लागू नहीं हुई. बढ़ोतरी तो नहीं ही मिली ,साथ ही हर महीने ₹3000 की मिलने वाली राशि को भी रोक दिया गया है. झारखंड आंदोलनकारियों को इस बात की भी तकलीफ है कि उन्हीं को आंदोलनकारी माना गया है, जो जेल गए थे.
मुक़दमा झेलने वालो को भी माना जाये आंदोलनकारी
लेकिन ऐसे हजारों -हजार लोग हैं, जो जेल तो नहीं गए , लेकिन मुकदमा लड़ते-लड़ते उनकी जगह- जमीन बिक गई. परिवार बर्बाद हो गया. सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों की सूची बनाकर उन्हें भी झारखंड आंदोलनकारी माना जाए. झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा, धनबाद जिला के नेता जगत महतो ने कहा कि झारखंड आंदोलनकारियों की लड़ाई से अलग राज्य बना, लेकिन अलग राज्य बनाने में शहीद हुए लोगों के परिवार को आज कोई पूछने वाला नहीं है. एक तो पेंशन की राशि मात्र 3000 मिलती है,वह भी रुकी पड़ी है. आंकड़ा दिया गया कि पूरे झारखंड में 40 से 50 हजार आंदोलनकारी हैं, सिर्फ धनबाद में 250 आंदोलनकारी है. जगत महतो ने यह भी याद दिलाया कि धनबाद झारखंड मुक्ति मोर्चा की जन्मस्थली है और यहां के झारखंड आंदोलनकारी ही परेशानी झेल रहे है. यह कतई उचित नहीं है.
कम से कम दस हज़ार की जाये पेंशन की राशि
उन्होंने सरकार से मांग की कि छत्तीसगढ़, उत्तराखंड की तरह झारखंड के आंदोलनकारियों को भी पेंशन की राशि कम से कम ₹10000 की जाए और उसका नियमित भुगतान हो. मोर्चा के नेताओं ने कहा कि इस मुद्दे को लेकर अभी हाल- फिलहाल में ही उन लोगों ने झारखंड के शिक्षा मंत्री (अब स्वर्गीय) जगरनाथ महतो से मिले थे. मंत्री ने उनकी बातों को वाजिब बताते हुए तुरंत इस पर आदेश भी पारित किया था, लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ और उनकी राशि का भुगतान नहीं हुआ. मोर्चा के नेताओं का कहना है कि कोई 1932 की बात कर रहा है, कोई 1985 की तो कोई 1960 की. लेकिन जिनके जिनकी लड़ाई की बदौलत अलग राज्य हुआ, उनको आज पूछने वाला कोई नहीं है.
रिपोर्ट -शाम्भवी सिंह के साथ संतोष