धनबाद(DHANBAD) | बदले कालखंड और आधुनिकता के बीच भी महापर्व छठ का उद्देश्य नहीं बदला. आगे भी बदलने की संभावना बहुत कम है. छठ महापर्व का उद्देश्य लोगों को एक दूसरे से जोड़ना, अपने पैतृक स्थल पर पहुंचकर अपने पूर्वजों के प्रति आस्था व्यक्त करना होता है . देश और दुनिया भर के धार्मिक कार्यक्रमों में छठ पर्व ही एक ऐसा पर्व है, जिसमें कर्मकांड की कोई जगह नहीं है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर यूपी और बिहार की सीमा से गुजरी बांसी नदी एक ऐसी ही नदी है,जो उदहारण बनती है. जहां नदी के एक छोर पर उत्तर प्रदेश के लोग भगवान भास्कर को अर्ध्य देते हैं, तो दूसरी ओर बिहार के लोग सूर्य भगवान को अर्ध्य देते है.
दो राज्यों की सीमा भी चिन्हित कराती है यह नदी
यह नदी उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमा को भी चिन्हित करती है. नदी के इस पार बिहार तो उस पार उत्तर प्रदेश है. देहातों में आज भी कहावत प्रचलित है कि सौ काशी, ना एक बांसी. यानी एक सौ बार काशी के गंगा नदी में स्नान का जो पुण्य मिलता है, उतना पुण्य बांसी नदी में महज एक बार के ही स्नान से प्राप्त हो जाता है. इस नदी का पौराणिक महत्व भी है. त्रेता युग में इस नदी के तट पर मिथिला जाते समय भगवान श्री राम ने विश्राम किया था. मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. उत्तर बिहार के पश्चिमी चंपारण के कई प्रखंड उत्तर प्रदेश और नेपाल से सटे है. वहीं, बिहार के सीतामढ़ी और मधुबनी जिले भी पड़ोसी देश नेपाल के पास ही स्थित है. पुलिस जिला बगहा का मधुबनी प्रखंड उत्तर प्रदेश के पडरौना से सटा है.
यूपी में खरीदारी और बिहार में पूजा
खास बात यह है कि मधुबनी के लोग छठ पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए पडरौना जाते हैं, यानी छठ की खरीदारी करते हैं यूपी में और पूजा करते हैं बिहार में. वैसे सूर्य उपासना की परंपरा दुनिया में वैदिक काल से है. छठ व्रत में मुख्य रूप से सूर्य की ही उपासना की जाती है. आज पूरे विश्व में महापर्व छठ पूरे विधि विधान के साथ परंपरागत तरीके से मनाया जाता है. इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि उगते सूर्य के पहले डूबते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है. इसमें ना कोई कर्मकांड होता और नहीं किसी पुरोहित की जरूरत होती है. हर समुदाय और वर्ग के लोग पूरी आस्था और निष्ठा के साथ इसमें भाग लेते है. जो लोग अपने गांव, खलिहान और शहर से दूर रहते हैं, वह भी इस मौके पर लौट आते है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो