टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड हाईकोर्ट ने पेसा कानून को लागू करने में हो रही देरी पर कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है. चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह शपथ पत्र (Affidavit) के माध्यम से बताए कि पेसा कानून को लागू करने में और कितना समय लगेगा तथा इसकी अंतिम समय-सीमा क्या होगी. यह निर्देश आदिवासी बुद्धिजीवी मंच द्वारा दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया गया. मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर को तय की गई है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने बालू और लघु खनिजों के आवंटन पर लगी रोक हटाने की मांग की, लेकिन अदालत ने इस आग्रह को ठुकराते हुए रोक को जारी रखने का निर्णय लिया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सरकार पेसा एक्ट लागू करने की तिथि नहीं बताती, तब तक यह रोक प्रभावी रहेगी.
हाईकोर्ट ने जताई कड़ी नाराज़गी
हाईकोर्ट ने सरकार की धीमी कार्यप्रणाली पर असंतोष जताया. इससे पहले 29 जुलाई 2024 को हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को दो महीने के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था. यह भी कहा गया था कि नियमावली संविधान के 73वें संशोधन और पेसा कानून की मूल भावना के अनुरूप होनी चाहिए. केंद्र सरकार ने वर्ष 1996 में पेसा कानून लागू किया था, जबकि झारखंड सरकार 2019 और 2023 में इसका ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है. जुलाई के आदेश के बावजूद नियमावली अधिसूचित न होने पर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने अवमानना याचिका दायर की, जिस पर अब अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार को समय-सीमा स्पष्ट करने के लिए बाध्य कर दिया है.
आदिवासी हितों की सुरक्षा
पेसा कानून का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के अधिकारों और पारंपरिक शासन प्रणाली को संरक्षण देना है. राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि पेसा नियमावली का मसौदा तैयार किया जा चुका है, जिसे पहले कैबिनेट को-ऑर्डिनेशन कमेटी को भेजा गया था. वहां आपत्तियाँ आने पर मसौदे को संशोधन के लिए ड्राफ्ट कमेटी को लौटाया गया है और संशोधन के बाद इसे पुनः कैबिनेट के समक्ष पेश किया जाएगा.
