टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- चंपई सोरेन सरकार में मंत्रिमंडल का विस्तार तो हो गया औऱ विभागों को भी बंटवारा कर दिया गया . इस दरम्यान कांग्रेस के अंदर ही मंत्री पद के लिए किचकिच हुई, किसी तरह मान मनोव्वल के बाद विधायक शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे. 12 मंत्री पद पहले से रख गया था, लेकिन कांग्रेस विधायकों के बगावत के चलते ऐन वक्त पर लातेहार से जेएमएम विधायक बै राम मंत्री पद की शपथ लेते-लेते रह गये. अंतिम वक्त मे उनका नाम कट गया और मंत्री बनने से चुक गये.
बैधनाथ राम नहीं बन सके मंत्री
हाथ आया , लेकिन मुंह न लगा की कहावत यहां देखने को मिली . बेचारे बैद्यनाथ राम मन मार कर, बेआबरू होकर, इस अपमान का घूंट पिया. इससे इतने तिलमिला गये की पार्टी छोड़ने का बड़ा फैसले लेने की सोचने लगे और झारखंड मुक्ति मोर्चा को ही दो दिन का समय दे दिया. अगर कुछ समाधान नहीं निकला, तो फिर निर्दलीय ही चुनाव लड़ने की बात कही. मंत्री बनने की ख्वाहिश बैद्यनाथ राम को थी ही, उनके समर्थकों को भी आस थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका .इससे बौखलाए बैद्यनाथ राम तो अपनी नाराजगी मीडिया के सामने जाहिर की और इस राज्य की अनुसूचित जनजाति का अपमान बताया
आखिर अंतिम समय क्यों कटा पत्ता ?
बताया जा रहा है कि कांग्रेस की आंतर्कलह बैद्यनाथ राम को मंत्री पद से दूर कर दिया. मंत्रियों की लिस्ट में उनका नाम भी शुमार था और 12वें मंत्री के तौर पर शपथ भी लेने ही वाले थे. दरअसल, कहानी ये है कि कांग्रेस और झामुमो के बीच 12वें मंत्री पद को लेकर हेमंत सोरेन सरकार से ही विवाद चल रहा था . लेकिन, हेमंत की जमीन घोटाले में आरोप के बाद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ तो नये सिरे से मंत्री बनने की बात हुई , तो कांग्रेस ने गठबंधन के अंदर दबाव बनाने में जुट गई. आखिरकार एन वक्त पर कांग्रेस की नराजगी ने सारा खेल पलट दिया. ऐसा लगा कही फिर मंत्रिमंडल विस्तार टल न जाए . ऐसे में बीच का रास्ता यही निकला की 12वां मंत्री बनाया ही न जाए जिसके चलते बैद्यनाथ राम के अरमानों पर पानी फिर गया .
भारतीय जनता पार्टी के साथ बैद्यनाथ राम लंबे समय तक रहे . यही बीजेपी बैद्यनाथ के पक्ष में खड़ी हुई दिखाई पड़ी और इसे अन्याय बताते हुए चंपई सरकार को घेरा और इसे राज्य के दलितों का अपमान बताया. आगे इस पर क्या होगा ये तो देखने वाली बात होगी . वैसे , बैद्यनाथ राम ने तो साफ और दो टूक लहजे में कह दिया है कि , उनके राजनीतिक करियर में ऐसे हालत कभी नहीं आए.
भाजपा छोड़ जेएमएम का थाम था दामन
मंत्री नहीं बनने से बैद्यनाथ मर्माहत तो है ही , इसके साथ ही उन्हें अपने पुराने दिनों की भी याद आ रही होगी, क्योंकि भाजपा छोड़कर ही जेएमएम से बैद्यनाथ राम जुड़े थे. लेकिन, यहां ऐन वक्त पर हुए फरेब से उनके मन में कहीं न कहीं ये बात तो सामने आ ही रही होगी, कि उनके साथ तो इंसाफ नहीं किया गया, बल्कि धोखेबाजी ही कई गई . बैद्यनाथ राम को ये भी महसूस हो रहा है कि इस सियासत की डगर में सबकुछ अपने मन से नहीं होता, क्योकि इसकी डगर में खुशियां, गम और धोखे भी है.
दो दशक से ज्यादा वक्त तक सियासी पिच पर अपनी पारी खेल रहे बैद्यनाथ राम एक मंजे हुए राजनेता है. जो झारखंड की राजनीतिक को समझने के साथ ही बेहद करीब से देख रहें हैं और अपने सियासी सफर में कई बार अलग-अलग विभाग में मंत्री भी रह चुके हैं . साफ है कि इस मुश्किल और मुसिबत का हल निकलाना बखूबी उन्हें आता है.
शिक्षक से सियासत का सफर
जब झारखंड वजूद में आया था तब ही बैद्यनाथ राम ने अपने सियासी सफर का आगाज जेडीयू से किया था. 2000 में शिक्षक की नौकरी छोड़कर चुनाव लड़े औऱ विजयी हुए थे. और पहली बार में ही खेल मंत्री भी बनें. साल 2005 में बैद्यनाथ राम ने जेडीयू छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए, और लातेहार से चुनाव जीतकर शिक्षा मंत्री बने. हालांकि, 2009 में उन्हें बीजेपी ने दोबारा टिकट दिया. लेकिन हार गये . 2019 में बैद्यनाथ को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो आखिर समय में जेएमएम से जुड़ गये और जीत भी दर्ज कर ली . अब एकबार फिर उनका मंत्री बनना तय था. लेकिन ऐन वक्त पर उनका पत्ता कट गया .
बैद्यनाथ राम एक मंझे हुए अनुभवी राजनेता है. इसमें तो कोई शक नहीं, झारखंड की राजनीति के रग-रग से वाकिफ है. उन्हें मालूम है कि कौन से मोहरे कब चलना चाहिए और कब कैसे जवाब देना चाहिए. लिहाजा, देखने वाली बात यही है कि, उनका जेएमएम छोड़ने की धमकी का क्या असर होता है. अगले दो दिन का उनके अल्टीमेटम पर झारखंड मुक्ति मोर्चा कुछ सुनवाई करती है या फिर बैद्यनाथ राम अलग रास्ता देखेंगे.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह