रांची (RANCHI) : झारखंड की राजनीति इन दिनों महिलाओं पर मेहरबान है. चुनावी मौसम क्या आया, मानों आधी आबादी के लिए हर तरफ से सोने की बारिश होने लगी हो. हेमंत सोरेन जी ने सबसे पहले अपनी "मंईयां सम्मान योजना" की सौगात दी, जिसमें हर महीने ₹1000 देने की बात कही गई. महिलाएं अभी इस योजना की तारीफों के पुल बांध ही रही थीं कि भाजपा ने अपनी "गोगो दीदी योजना" लेकर एंट्री मारी. ₹1000 से सीधा ₹2100! वाह, क्या बात है! बाबूलाल मरांडी खुद फॉर्म बांटने निकल पड़े, मानों हर महिला के लिए किसी लॉटरी का टिकट थमा रहे हों.
अब भला झामुमो कैसे पीछे रह जाता? उन्होंने भी तुरुप का इक्का फेंकते हुए ₹2500 का ऐलान कर दिया. ऐसा लग रहा है कि झारखंड की महिलाओं के खाते में पैसे नहीं, बल्कि चुनावी पार्टियों के वोट पड़ने वाले हैं. इस ‘महिला सम्मान’ की दौड़ में अब इंतजार इस बात का है कि अगला कौन सा दल ₹3000 या उससे भी ज्यादा का ऑफर लेकर आएगा.
मूल मुद्दे, रोजगार, पलायन? अरे वो तो कहीं दूर खो गए हैं! फिलहाल तो महिलाओं के लिए बल्ले-बल्ले है, और पार्टियों के लिए फ्री में वोट बटोरने की स्पर्धा!
जिस तरह से झारखंड में पैसे बांटने की होड़ लगी है, इससे साफ है की अन्य मुद्दों के बल पर सभी पार्टियों चुनाव पर नहीं जाने वाली है, बल्कि फ्री की घोषणा और फ्री के पैसे खाते में भेज कर राज्य की सत्ता में काबिज होने में ज्यादा विश्वास कर रही है. चाहें सत्ता पक्ष की बात कर लें या विपक्ष की. झारखंड के मूल मुद्दों से हटकर मुफ्त की योजनाओं पर ज्यादा जोर देने में लगी है
झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा बड़ा है. रोजगार का मुद्दा बड़ा है. पलायन एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन चुनाव में यह तमाम मुद्दे गौण होते दिख रहे. आखिर इन मुद्दों को कौन उठाएगा? जब पक्ष और विपक्ष दोनों मुफ्त की राजनीति की रोटी सेंकने में लगे हैं.