धनबाद(DHANBAD) | दीपावली नजदीक हो और जुआ अड्डों की चर्चा ना हो, ऐसा कभी होता नहीं है. दशहरा के बाद से ही जुआ अड्डा की चर्चा शुरू होने लगती है. लक्ष्मी पूजा के बाद यह धीमी गति से शुरू होती है और उसके बाद जैसे-जैसे दिन बीतता है, इसकी गति तेज होती जाती है. आज 5 नवंबर है, 12 नवंबर को दीपावली है. ऐसे में जुए की चर्चा अब तेज होने लगी है. धनबाद जिले के विभिन्न इलाकों से जुआ अड्डा के संचालन की सूचनाएं मिलने लगी है. झारखंड के अन्य जिलों से भी छापेमारी की खबरें आ रही है. धनबाद में तो जुआ अड्डा व्यवस्थित ढंग से चलाया जाता है. जगह देने वाले, जुआ खेलने वालों को सुरक्षा देने वाले, सबकी राशि निर्धारित होती है. नाल कौन कटेगा और रकम किसकी होगी ,यह सब पहले ही तय हो जाते है. यह अड्डे सूर्यास्त के बाद शुरू होते हैं और सूर्योदय तक बिना किसी विघ्न- बाधा के चलते है.
दशहरा से लेकर दिवाली होता है खेल
धनबाद कोयलांचल का एक बड़ा तबका दशहरा से लेकर दिवाली तक जुए के खेल में मस्त और व्यस्त रहता है. कहीं-कहीं से छापेमारी की भी सूचना आती है लेकिन जिस रफ्तार में जुआ खेला जाता है, कार्रवाई उसे रफ्तार में नहीं होती है. वैसे दीपावली के दिन तो यह पुरे उफान पर रहता है. दिवाली की रात लक्ष्मी पूजन के समय कई तरह की मान्यताएं निभाई जाती है. ज्यादातर लोग लक्ष्मी पूजन के बाद जुआ या पत्ते खेलते है. उनके अनुसार ऐसा करना शुभ माना जाता है. जुआ खेलने का मुख्य लक्ष्य साल भर भाग्य की परीक्षा करना होता है. जो जीतता है ,उसका साल अच्छा बीतता है. ऐसा लोग मानते है. हालांकि जुआ खेलना तो सामाजिक बुराई है और सरकार ने इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा रखा है. जुआ खेलने से जीवन के सभी क्षेत्र में नुकसान ही नुकसान है. जुआ तो कुरीति की जननी है लेकिन जुआ खेलने वाले किसी न किसी सामाजिक सरोकारों से इसे जोड़ लेते है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो