सिमडेगा:- हम भले मजहब के नाम पर लड़े-मरे,कटु वचन बोले. लेकिन, कोई भी धर्म या मजहब इंसानियत का ही पाठ पढ़ाता है. इससे बड़ा तो कोई धर्म है ही नहीं. आज बेशक धर्म के नाम पर सियासत हो रही हो, इसी के नाम पर बंटने और बांटने का खेल चला रहा हो. लेकिन, इंसानियत तो अजर-अमर है. जो हमेशा हम सबके सामने खड़ी रहेगी और बोलेगी मेरे से बड़ा कोई धर्म नहीं है.
मुस्लिम के घर से हिन्दू बेटी की अर्थी
ऐसी एक नजीर झारखंड के सिमडेगा जिले में दिखने को मिली, जहां एक अनाथ हिंदू बेंटी शिवकाशी देवी एक मुस्लिम परिवार के यहां दो दशक से ज्यादा वक्त तक रही . उसने कभी भी धर्म का फर्क भी नहीं समझा. इस मुस्लिम परिवार ने छत तो दिया ही. इसके साथ ही आखिरी सांस तक उसे यह समझने नहीं दिया कि . वह परायी है या फिर अनाथ है. जब उसकी सांसे छूटी तो भी इस मुस्लिम परिवार ने पूरी विधि-विधान से और हिन्दु रिती-रिवाज से उसकी अर्थी सजायी, सर मुडवाया और मुखाग्नि दी . सोचिए और समझिए ऐसी इंसानियत की मिसाल से इस मुस्लिम परिवार ने पेश किया औऱ दुनिया को जतला गये कि मानवता आखिर क्या होती है . चलिए हम आपको इसकी पूरी कहानी तफसील से बताते हैं.
अनाथ थी शिवकाशी देवी
दरअसल, कोलेबिरा चौक के करीब रहने वाले अब्दुल रहीम रोजी-रोटी 20 साल पहले बिहार के वैशाली जिले स्थित हरिप्रसाद जमदाहा गांव से यहां आये थे. उनके साथ उनकी बूढ़ी मां जैतून बीबी, पत्नी और बेटा कुर्बान के अलावा अनाथ शिवकाशी देवी भी आयी थी. मां जैतून बीबी के निधन के बाद भी शिवकाशी को एक परिवार के सदस्य की तरह रखा. किसी भी चिज की कमी नहीं होने दी . शिवकाशी हिन्दु धर्म होने के नाते हिन्दु देवी-देवाताओं के प्रति आस्था रखने और छठ पूजा में शामिल होने के लिए कभी रोक-टोक नहीं किया.
जब अर्थी निकली तो रो पड़ी महिलाएं
अब्दूल बताते है कि जमदाहा में उनका घर और शिवकाशी का घर अगल-बगल था. उसके माता-पिता की मौत के बाद वह अनाथ के जैसे रह रही थी. तब मां जैतून बीबी ने उसे अपना लिया था और उसे बेटी की तरह पालने लगी थी. रविवार की देर रात शिवकाशी के निधन के बाद अब्दुल रहीम ने इलाके की मुखिया को इसकी सूचना देते हुए बहन की हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार की इजाजत मांगी. इसके बाद उन्होंने पंडित नवीन पंडा से पूरे विधान के साथ बहन के अंतिम संस्कार की तैयारी के लिये गुजारिश की . 62 साल की शिवकाशी के लिए भाई जैसे अब्दुल रहीम और भतीजे कुर्बान ने आश्रूपूरित नेत्रों से बांस की अर्थी सजाई, सिर मुंडवाया और पूरा हिन्दू रिती रिवाज से कोलेबिरा डैम तट पर दाह संस्कार किया. बताया जाता है कि जब शिवकाशी देवी की अर्थी निकली तो महिलाएं बिलखने लगीं. अंतिम संस्कार में कोलेबिरा में कई गणमान्य लोग शामिल हुए.
एक मुस्लिम परिवार का इतना बड़ा तप और धर्म कोमी एकता की मिसाल पेश करता है . समाजिक सोहार्द का उदाहरण दिखाता है. अब्दुल रहीम का परिवार ने जो किया, उसे हमेशा याद किय़ा जाएगा.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह