Ranchi-झारखंड में आईटी से लेकर ईडी, सीबीआई और दूसरी तमाम केन्द्रीय एजेंसियां हर दिन अपनी दौड़ लगाते रहती है. उनके निशाने पर हर दिन कोई ना कोई घोटालेबाज होता है, इन घोटालेबाजों की पहचान के लिए केन्द्रीय एजेंसियां छापेमारी दर छापेमारी करती रहती है. लेकिन तब क्या जाय रांची विश्वविद्यालय के करीबन 20 डिसमिल जमीन पर कोई बरसों से खेती करता रहे और विश्वविद्यालय प्रशासन को इसकी कानों कान भनक तक नहीं लगें.
यह कोई कोरी कल्पना नहीं रांची विश्वविद्यालय की हकीकत है
लेकिन झारखंड में यही हुआ है, यह कोई कोरी कल्पना नहीं है, रांची विश्वविद्यालय की करीबन 20 डिसमिल जमीन पर वर्षों से एक अनजान शख्स अवैध तरीके से खेती कर रहा है. इन सब्जियों को वह स्थानीय बाजार में बिक्री करने के साथ ही विश्वविद्यालय अधिकारियों के घर तक भी पहुंचा रहा है. लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन को इस अवैध खेती की कोई जानकारी नहीं है. यह वही कैम्पस है, जहां अधिकारियों की टीम दिन रात बैठी रहती है, जहां से पूरा प्रशासनिक महकमा चलता है. लेकिन अधिकारियों को यह खेती दिखलाई नहीं पड़ती.
कौन कर रहा था खेती? प्रशासन मौन
जब इस मामले को अधिकारियों को संज्ञान में लाया गया तो पहले तो इस पूरे प्रकरण से अनजान बनने की कोशिश की गयी, गोया यह सब कुछ महज अफवाह हो, लेकिन बाद में यह कहकर बात टालने की कोशिश की गयी कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस बात की जांच करवायेगा कि यह खेती किसके द्वारा करवायी जा रही है.
दरअसल जानकारों का दावा है कि इस अवैध खेती की पूरी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को पहले से ही थी, लेकिन चूंकि इस खेती का एक बड़ा हिस्सा उनकी भेंट चढ़ता है, इसलिए जानबूझ कर इससे अनजान बना रहा गया, उधर उस शख्स को बीच शहर में खेती का एक अच्छा प्लौट मिल गया. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने इस सवाल को रखे जाने के बाद उक्त अवैध कब्जे को हटाने का आदेश दे दिया गया है, लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि इतने वर्षों तक विश्वविद्यालय प्रशासन के नाक ठीक नीचे यह अवैध खेती कौन करता रहा, और उसके इस खेल में किन किन अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था.