टीएनपी डेस्क(tnp desk):-अगर किसी चिज की लगन और मन में इसके प्रति लालासा बैठ जाए तो फिर खुद ब खुद ख्वाहिशे हकीकत में बदल जाती है. दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री विश्व विद्यालय से संस्कृत में बीएड कर रहे जामताड़ा निवासी रबिलाल हांसदा ने कुछ ऐसा ही किया. हाल ही में हनुमान चालीसा का ओलचिकी (संथाल आदिवासियों की लिपि) में अनुवाद किया है. जिसका विमोचन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करेगी. पांच दिसंबर को प्रस्तावित दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगी.
जामताड़ा निवासी हैं रबिलाल
जामताड़ा जिले के कुंडहित स्थित जादूडीह गांव के रहने वाले रबिलाल हांसदा बचपन से ही धार्मिक स्वभाव के रहें हैं. भगवान राम हनुमान भोलेनाथ माता दुर्गा समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा शुरु से करते आ रहे हैं. उन्होंने कई हिंदू धर्मग्रंथों और धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन भी किया है. वह कहते हैं कि हनुमान वनवासी थे, उनकी भक्ति, संस्कार और उनका पराक्रम हर वर्ग के भारतीय जनमानस के लिए एक प्रेरणा और उदाहरह है. उनकी दिली इच्छा थी कि संथाली भाषा जानने वाले आदिवासी समाज के लोग भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकें. उन्हें इस बात की खुशी है कि उनकी इच्छा पूरी हो गई. इस उपलब्धि के बाद उनका अगला मिशन बहुत जल्द ही संथाली भाषा में रामायण और महाभारत का भी अनुवाद करने का है.
सनातन संस्कृति का अंग
रबिलाल की माने तो आदिवासियों की परंपरा आदि काल से ही सनातनी रही है. हिंदू धर्मग्रंथों के कई प्रसंग का वर्णन है, जो सनातनी होने का गौरव प्रदान करते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि समाज में यदि किसी के घर बच्चे का जन्म होता है तो उसे तेल लगाकर नाइकी हड़ाम बच्चे का नामकरण करते हैं, यह परंपरा सनातन संस्कृति का ही अंग है. इसी की तरह मृत्यु के बाद 12 दिनों के बाद विधि-विधान से श्राद्ध कर्म की भी आदिवासियों में परंपरा है. आदिवासी परंपराएं सनातन की मूल अवधारणा का ही प्रतिरूप है. मेरी कोशिश है कि आदिवासी समाज जागरूक और विकसित बनें
सुंदरकांड पढ़ने के दौरान बढ़ा हनुमान जी से अनुराग
रबिलाल बताते है कि कुंडहित के सिंहवाहिनी प्लस टू स्कूल में वैकल्पिक विषय के रूप में संताली के शिक्षक नहीं थे. लिहाजा विकल्प के तौर पर संस्कृत विषय का चयन किया. शिक्षक उमेश कुमार पांडेय ने संस्कृत विषय से पहली बार साक्षात्कार करवाया. धीरे-धीरे उनकी संस्कृत को लेकर इतना दीवानपन और प्यार उमड़ गया कि आगे इसी सबजेक्ट को लेकर पढ़ाई करने की ठानी. अपने संस्कृत के पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई बार रामायण व महाभारत को भी कई बार पढ़ा. वे जब सुंदरकांड पढ़ रहे थे तो मन में वीर हनुमान के प्रति अनुराग बढ़ा. इसके बाद हनुमान चलिसा अनुवाद करने की ठानी और छह महीने के अथक प्रयास के बाद इसे कर डाला .
रबिलाल ने बताया कि संथाली भाषा ओलचिकी लिपि में लिखी गई है, जिसकी खोज पंडित रघुनाथ मुर्मु ने 1925 में की थी. इस लिपि का संबंध प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनि की अष्टाध्यायी से है. इस कारण संथाली भाषा में संस्कृत के अनेक शब्द समाहित हैं.