रांची(RANCHI): आखिर क्यों झारखंड की जनजातीय लड़कियां समुदाय विशेष के निशाने पर है. और लगातार इनका शिकार बनती जा रही. झारखंड आदिवासी जनजातियों की भूमि के रूप में जाना जाता हैं. यहां की राजनीति और सत्ता जनजातीय कल्याण की भावना ही तय करती है. इस वनप्रदेश की लड़ाई ही जनजातीय लोगों को उनका हक दिलाने के नाम पर लड़ी गई थी तो फिर आज क्यों जनजातीय आदिवासी गरीब लड़कियां अपनी दुर्दशा का शिकार हो रही है. क्यों धीरे धीरे उनको हाशिये पर लाकर रख दिया गया है. आदिवासी लड़कियों के साथ होने वाले अपराधों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है लेकिन हाल में हुए दो घटनाओं ने इस सभ्य समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है की क्या वाकई ये आदिवासियों की हित चाहने वाली सरकार है. इस राज्य मे आदिवासी कार्ड खेल कर सत्ता प्राप्त किया जाता है जिस राज्य में आदिवासियों के कल्याण के लिए बाकाएदा फंड पास किया जाता है. बावजूद इसके आदिवासी लड़कियां एक समुदाय विशेष के निशाने पर आखिर क्यों हैं. क्या कारण है कि इन जनजातीय लड़कियों पर विशेष धर्म के लोग अपनी कुदृष्टि डाल कर लव जिहाद कर रहे. इन लड़कियों के मासूम मन से खेल कर उनका बलात्कार कर जाते हैं. आखिर इतना साहस इनको क्यों हो जा रहा. बता दें साहिबगंज में हुए जघन्य रुबिका हत्याकांड़ ने जहां सबको दहला दिया. वहीं साहबगंज के ही अन्य मामले में पहाड़िया जनजाति की एक युवती के साथ एक विशेष समुदाय के दुकानदार सद्दाम ने दुकान में ही उसके साथ बलात्कार किया.
क्या पहड़िया लड़कियां बन रही सॉफ्ट टारगेट
साहबगंज विवादों के शहर के रूप में अपनी ख्याति बटोर रहा जहां खान घोटाले से लेकर पशु तस्करी और अब विशेष समुदाय द्वारा आदिवासी जनजाति की लड़कियों पर निशाना बनाने को लेकर मामला गर्म है. बांग्लादेश बॉर्डर से नजदीक इस साहब गंज में लगातार जनजातीय पहड़िया लड़कियों के साथ आखिर क्यों हो रहा है ये सब आइए कारण जानते है. रुबिका एक गरीब परिवार की पहड़िया लड़की जिसे एक कबाड़ीवाले दिलदार से प्रेम हो जाता है. दिलदार अपनी बातों में फंसा कर रुबिका के साथ लीव इन में रहने लगता है जबकि दिलदार पहले से शादीशुदा था और उसका एक बच्चा भी था. इसके बाद जब रुबिका के घरवाले हस्तक्षेप करते हैं तब दोनों साहबगंज थाने की शरण में जाते हैं और सारा मामला जानते हुए भी थाना इन दोनों की शादी करवा देता है. रुबिका दिलदार के घर चली जाती है और महज 10 दिन के बाद 50 टुकड़ों में काट दी जाती है. क्या साहेबगंज थाना इतना लापरवाह है कि उसे नहीं समझ आया की दो अलग धर्मों के लोग शादी कर रहे जिसमें एक पहले से शादीशुदा है. क्या थाना ले इस मामले को हल्के में लिया और इसका परिणाम रुबिक की मौत बनकर आई. आखिर क्यों समुदाय विशेष पहड़िया जनजाति की लड़कियों को बना रहा अपना सॉफ्ट टारगेट. क्या इसमें पीछे कोई सामूहिक मंशा है या इनकी नजर में जनजातीय लड़कियां आसानी से उपलब्ध एक वस्तु है. क्या जनजातीय लड़कियों को निशान बनाने का कारण बॉर्डर के पार से हो रहा यदि ऐसी बात है भी तो आदिवासियों की हित चाहने वाली सरकार इनकी सुरक्षा के लिए क्या उपाय कर रही. ये बेहद निराशाजनक है कि एक पहड़िया जनजाति लड़की अपने मोबाईल ठीक करवाने दुकान में जाती है और दुकानदार उसे आदिवासी जनजातीय लड़की देख कर उसके साथ जबरन बलात्कार कर लेता है. अखित इतनी हिम्मत उसे कौन दे रहा की जनजातीय लड़की मसल दी जा रही. ये सवाल आज झारखंड के लोगों के मन में उठ रहा है और इसका जवाब आखिर कौन देगा? सरकार क्या उपाय कर रही जिससे जनजातीय लड़कियां अपने मूल अधिकारों को समझ सके. इनकी शिक्षा और सुरक्षा के क्या उपाय किए जा रहे. और इन उपायों पर किस तरह अमल किया जा रहा. जनजातीय लड़की खरपतवार की तरह उखाड़ दी जा रही. और सरकार प्रशासन मौन है.
क्या कारण है जो आसानी से शिकार बनती है आदिवासी लड़कियां
आखिर क्यों समुदाय विशेष चुन चुन कर जनजातीय लड़की को निशाना बना रहे. झारखंड में जनजातीय लड़कियों की स्थिति अति दयनीय है. यहां इन लड़कियों क स्थित ये है की ये घरों के झूठन साफ कर अपना और परिवार का पेट पालती है. इनके बच्चों को कोई सुविधा नहीं मिलती . ये जनजातीय लड़कियों को महज कुछ रुपयों या मोबाइल दिलाने के नाम पर शोषण कर लिया जाता है. आखिर क्यों झारखंड बनने के इतने वर्षों बाद भी इनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया. गिन चुन कर बची हुई जनजातीय लड़कियां अपनी दुर्दशा के दिन देख रही. आखिर सरकार ने क्या सोचा है इनकी सुरक्षा के लिए. सरकार क्या कदम उठायेंगी ताकि अल्पसंख्यक जनजातीय पहाड़िया लड़की अपने अच्छे बुरे की समझ रख सके. क्या सरकार कभी जमीनी स्तर पर इनकी सुध ले सकेगी. बता दें जनजातीय पहड़िया लड़कियों के साथ लव जिहाद का खेल साहेबगंज में जारी है. समुदाय विशेष वर्ग के द्वारा इनको लगातार निशाने पर लिया जा रहा. हालत इतनी दयनीय है कि छोटी छोटी चीजों को लेकर इनको किया जाता है ब्लैकमेल. मजबूर ये आदिवासी जनजाति शिक्षा से दूर आसानी से इनके सॉफ्ट टारगेट बनती जा रही. ये दुर्भाग्य है इस प्रदेश का जहां आदिवासी कल्याण की राजनीति की जाती है वहीं साहब गंज से आदिवासी जनजाति लड़की की 50 टुकड़ों में लाश बाहर आती है. ये कैसा विकास है ये कैसा उत्थान है जिसमें ग्राउंड लेबल पर केवल चीखपुकार मची हुई है. साहेबगंज, सीएम हेमत सोरेन पर लगातार सवाल खड़े कर रहा है. मामला अवैध खनन का हो या 50 टुकड़ों में कटती हुई जिंदा पहड़िया लड़की की, बात पशु तस्करी की हो या मोबाईल दुकान में अपनी अस्मत लुटाती एक पहाड़िया लड़की की, ये साहेबगंज निरंतर सवाल खड़े कर रहा है. राज्य सरकार पर कि आखिर क्यों एक आदिवासी सीएम के होते हुए भी आदिवासियों के साथ इतनी बर्बरता बरती जा रही और सबसे बड़ी बात समुदाय विशेष की नजरों में क्यों चढ़ी हुई है आदिवासी जनजातीय लड़कियां.